: नीस के हादसे से आईएसआईएस ने पूरी दुनिया को नई दिशा दी है, जरा सतर्क रहियेगा : अधिकांश भारत में सोल्लास मनाया जाता है भोलेनाथ को जल अर्पित करने का त्योहार : देश में 12 ज्योतिर्लिंगों ने पूरे भारत को सदियों से धार्मिक आस्थाओं से सराबोर रखा है :
कुमार सौवीर
लखनऊ : हमला किसी भी जगह हो सकता है, किसी भी ओर से हो सकता है और उसका माध्यम कोई भी हो सकता है। उसका नतीजा कुछ भी निकल सकता है। बस ऐसे ही सवाल सुरक्षा का जिम्मा सम्भाले सरकारी विभागों के दिल-दिमाग में श्रावण यानी सावन के महीने में गूंज रहे हैं। फ्रांस के नीस शहर में पिछले हफ्ते हुए भयानक नर-संहार ऐसे-वैसे किसी हादसे की आशंका को लेकर खुफिया एजेंसियों की जान सूख रही है।
सावन आज से शुरू हो चुका है। हिन्दू मतावलम्बियों के लिए यह अवसर सर्वाधिक महत्व का होता है। कुल 12 ज्योतिर्लिंग समेत देश भर में फैले शिवालों में इस महीने में अपार भीड़ जुटती है। आसपास की नदियों से जल लेकर भक्तजन उसे भोलेनाथ पर अर्पित करते हैं। इसके लिए यह लोग अक्सर सैकड़ों मील का रास्ता नापते हैं। आस्थाओं का तकाजा है कि यह सारा का सारा रास्ता पैदल ही पूरा किया जाता है। और यह सारे भक्त जल लेकर अपने कांधे पर कांवड़ लेकर निकलते हैं। इसीलिए इन भक्तों को कांवडि़या कहा जाता है। पूरे सावन के महीने में देश भर की प्रमुख सड़कों पर कांवडि़यों का साम्राज्य होता है। सारे के सारे राष्ट्रीय राजमार्ग पर आधा हिस्सा कांवडि़यों के लिए ही आबंटित कर दिया जाता है।
इन कांवडि़यों की सुरक्षा और उनके साथ कोई हादसा रोकने के लिए पुलिस सारी सड़कों पर बैरीकेडिंग कर देती है, ताकि कांवडि़यों और सामान्य यातायात को एकसाथ न मिलाया जा सके। वरना कोई भी हादसा हो सकता है। इसके बावजूद कई बार ऐसा हो ही जाता है कि कांवडि़यों की झड़प सड़क पर हो ही जाती है।
लेकिन इस बार का मामला कुछ ज्यादा ही संवेदनशील है। हालांकि अभी तक खुफिया विभागों को कोई पुख्ता खबर नहीं मिली है, लेकिन आतंकियों की हरकतों पर नजर गड़ाये विभागों और पुलिस अधिकारी सावन की तैयारियों में उन खतरों की आशंकाओं को सूंघ रहे हैं, जो पिछले हफ्ते फ्रांस के नीस शहर में हुआ था। इस हादसे में एक आतंकी ने नीस शहर की सड़क पर एक भारी ट्रक दौडा दी थी, जिसमें एक सौ से ज्यादा नागरिक कुचल कर मारे गये थे।
गौरतलब है कि सावन के दौरान शिव-भक्तों का रेला अपने अराध्य तक पहुंचने के लिए सड़क पर निकल पड़ता है। असीम श्रद्धा का जो जोश-खरोश इस मौसम में होता है, अन्यत्र कहीं भी नहीं। कोई ढोल-तामाशा बजाता है तो कोई बम-बम का गुगनचुम्बी नारे लगाता है। अब तो काफी लोग शिव-भक्ति के कैसेट बजाते हैं, डीजे चलता है। सड़क पूरी की पूरी उत्सव नुमा हो जाती है। बेहिसाब शोर भी होता है। कहीं-कहीं तो ऐसा माहौल हो जाता है कि कानों कुछ सुनाई ही नहीं पडता। ताजा वैश्विक घटनाओं ने ऐसे अवसरों के लिए नये-नये खतरे खड़े कर दिये हैं।
अब खुफिया और पुलिस के अफसर इस मामले में क्या-क्या रणनीति अपनायेंगे, यह उनका काम है, करते रहें। लेकिन जन-सामान्य और खासकर कांवडि़यों तक यह संदेश तो पहुंचा ही दिया जाना चाहिए कि सड़क पर कांवड़ लेकर चलते वक्त उन्हें अपनी सुरक्षा खुद ही देखनी होगी। सूंघ पड़ेगा कि उनके आसपास कौन से लोग हैं। आपकी-हमारी सुरक्षा केवल हमारे आपकी कोशिशों से ही मुमकिन होगी।
तो जब भी कोई खतरा आपको दिखायी पड़े, सीधे पुलिस से सम्पर्क कीजिएगा।