दुनिया के जितने भी ज्ञात हरामी थे, सब के सब महानतम

सक्सेस सांग

अन्‍तर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च पर विशेष लेख-श्रंखला- एक
: दुनिया के जितने भी ज्ञात हरामी थे, सब के सब महानतम : आओ बेटियों। हरामत्व का सोल्लास अभिषेक किया जाए : अपने आसपास टटोलिये, हरामी हो सकते हैं श्रेष्ठ कर्मण्य लोग : सार्वजनिक तौर पर होना चाहिए हरामत्व का आराधन, वंदन :

कुमार सौवीर

लखनऊ : झारखण्ड में हमारी एक ताजा-ताजा मित्र हैं। नाम है डॉक्टर राजदुलारी। बेहद विदुषी, शालीन, चिंतक। रूप-रंग से ही नहीं, शब्दों  और अभिव्यक्तियों से भी बेहद सौम्य। लेकिन अभी कुछ दिन न जाने अचानक बहुत बुरी तरह भड़क गयीं। किसी ने उनके इनबॉक्स में ऐसे शब्‍द लिख भेजे, कि उनके भेजा का थर्मामीटर मर्यादा तोड़ कर बाहर निकल बह गया। उस शख्स की चैटिंग का स्क्रीन-शॉट चस्पां करते हुए डॉ राजदुलारी ने बहुत गुस्से  में लिख मारा:- “यह महा हरामी है। “

इस हादसे से बहुत खफा थीं यह विदुषी। मैंने उनके हवन-कुण्ड में शान्ति का होम डालने का प्रयास किया। लिखा:- “नहीं। यह हरामी नहीं हो सकता है। हरामी होता तो कर्ण की तरह ज्यादा नैतिक होता। यह तो दोगला-चौगला-सौगला,-कोटिगला है।” मेरे इस कमेंट पर कई लोगों ने मेरी बात का समर्थन किया। डॉ राजदुलारी का खौलता गुस्सा भी शान्त हो गया। खैर…

अरे जनाब। हरामीपन की इम्तिहा नहीं होती है। जरा सा भी विरोध हुआ, लोग कह देते हैं कि यह यह पक्‍का हरामी है। अब देखिये न, कि लोग मेरे बारे में क्‍या-क्‍या नहीं कहते हैं। मसलन, ” कुमार सौवीर बाकायदा बुढा गया है, देखो ना, कि क्या-क्या अंट-शंट लिखता रहता है। साला, पक्‍का हरामी है।” लेकिन जो मुझे महसूस कर चुके हैं, वे जानते हैं कि मुझमें सक्रियता ऐसी है कि अच्छे -अच्छे जवान पानी भरने लगें। जैसे कोई सिंह-शावक, मृग-छौना कुलांचे भरता हो। और यह मेरा साहस है, जिसे लोग मेरे हरामीपन से जोड़ लेते हैं।

पता नहीं, कि मुझे डर क्यों नहीं लगता? जहां भी गलत या बुरा होता देखता हूं, टप्प, से टपक जाता हूं। बचपन से ही यही करतूत मेरे रजिस्टंर में दर्ज होती रही है। मेरे साहस और मेरी अतिशय सक्रियता को देख कर मेरी मां अक्सर भ्‍ड़क जाती हैं। प्रेम-मिश्रित गुस्से में झिड़की दे देती हैं। बोलती हैं:- हर्ररामजादा नहिं कै।

पहले कोई जब ऐसी कोई गाली देता था, तो मैं भ्‍ड़क जाता था। लेकिन अब नहीं। वजह यह कि मैं हरामत्व, हरामीपना, और कमीनापन के बीच के किनारों-पाटों के बीच का फर्क बखूबी समझ चुका हूं। यकीन मानिये, यह तो मेरे लिए जीवनी-अमृत लगता है। क्योंकि मैं समझ गया हूं कि दुनिया के जितने भी ज्ञात हरामी हैं या थे, सब के सब महानतम हैं। जब मेरी मां मुझे हर्र्ररामजादा कहती हैं तो मैं उनके प्रति अतीव प्रेम-स्नेह से पग जाता हूं, और जब मेरे विरोधी मेरे पीठ-पीछे मुझे हरामजादा कहते हैं, तो मेरी छाती फूल जाती है गर्व से। मुझे लगता है कि मेरी कोशिशें सफलीभूत होती जा रही हैं और यह गाली-भक्कड़ उसी हरामीपन का प्रतिबिम्ब है। इसीलिए मुझे सहर्ष विश्वास है कि यह परम्परा लगातार आगे बढ़ती ही रहेगी।

तो आओ मेरी बेटियों।

8 मार्च को अंतर्राष्ट्री़य महिला दिवस है ना। तो उसे जोश-ओ-खरोश के साथ मनाने की तैयारी में हम भी उन महिलाओं का वंदन-अभिवंदन करने का संकल्प ले लें जिन्होंने अपनी कोख से महानतम हरामी को जन्म दिया। इस मौके पर आप और हम हरामत्व का सोल्लास अभिषेक करें ताकि सर्वश्रेष्ठ हरामी को उसका यथोचित ओहदा और सम्मान दिया जा सके।

उन स्त्रियों का सम्‍मानित कीजिए जिन्‍होंने संतानों को जन्‍म दिया। गौर से देखिये, कि इनमें से जो भी शख्‍स आपके सामने किसी हरामी के तमगे लटकाये दिखाया जा रहा है, वह कितना महान है। इसमें उस हरामी या स्‍त्री का दोष कैसे। दोष और शर्म तो उनके चेहरे पर चस्‍पा होना चाहिए जो ऐसे प्राकृतिक रिश्‍ते को हरामी कह कर पुकारते हैं।

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