कोई हरामी धोखा दे तो सिर काट लेना मेरा। शर्त लगा सकता हूं
किसी हरामी के खून में नहीं होती दगाबाजी, आप खुद समझदार हैं
हरामजादा आप किसे जोड़ रहे, मां की ओर से या बाप की तरफ?
आओ बेटियों। 8 मार्च को हरामत्व का सोल्लास अभिषेक करो
कुमार सौवीर
लखनऊ : लेकिन इसके पहले मैं कुछ और बातें खास तौर पर कहना चाहता हूं। हरामत्व का निंदक हूं, लेकिन मेरा सवाल है कि आखिर हरामी और हरामीपन पर सवाल क्यों उठाया जा रहा है? हराम शब्द तो नाजायज का पर्यायवाची है नाजायज और नाजायज के बीच का फर्क किसने तय किया? समुदाय और समाज ने ही ना? समाज-समुदाय की इकाइयों ने बहुमत से तय किया कि क्या स्पृश्य है और अस्पृश्य। लेकिन इसमें मानव का चयन कैसे हो गया, मेरी समझ में ही नहीं आता है। जो मानवीय और प्राकृतिक रिश्ते हैं, आप उसे कैसे गाली दे सकते हैं, यह स्पष्ट होना चाहिए।
माना कि यह सामुदायिक-सामाजिक सुरक्षा और नैतिकता-शुचिता से जुड़ा हुआ है, लेकिन उसकी ताड़ना तो केवल महिला के खाते में ही दर्ज होती है। हालत यह है कि हरामी ही नहीं, बल्कि बेहूदे-अश्लील शब्दों का खुला इस्तेमाल तो आपको कई समाजों में खुलेआम दिख जाएगा। लेकिन यह नहीं कि यह समाज बहुत चिंतक-बहुल है, बल्कि हकीकत यह है कि पुरूष की नैतिकता से जुड़े ऐसे शब्दों को अनजाने में ही महिलाओं के दिल-दिमाग में पुरूष ने ही थोप डाला है।
जितने भी हरामी आपको मिले, या मिलेंगे, आप क्या साबित कर सकते हैं कि वे मानवता के विरूद्ध थे, अनैतिक थे, अराजक थे, अपराधी या ध्वंसकारी थे? ऐसे किसी हरामी ने आप समेत समाज-समुदाय का कोई कुछ बिगाड़ा? किसी हरामी ने किसी को धोखा दिया? क्या किसी हरामी ने किसी का कत्ल किया? क्या किसी ने कोई अनैतिक संदेश दिया? क्या किसी हरामी से कभी किसी भी समुदाय-समाज या आपको कोई खतरा महसूस हुआ? नहीं न? क्योंकि उनमें ऐसा कुछ घटियापन जैसा कुछ था ही नहीं।
लेकिन मैं साबित कर सकता हूं कि जितने भी ज्ञात हरामी हुए हैं इस सृष्टि में, वे सब के सब महान मानव, श्रेष्ठ दिशा-निर्देशक, सर्वोच्च नीति-नियंता, और मानव-सेवी रहे हैं। उन्होंने समाज से कुछ लिया नहीं है, बल्कि इतना दे दिया है समाज को कि पूरी दुनिया उनके सैकड़ों-हजारों बरस बाद उनकी स्तुति कर रही है।
और आने वाली लाखों-हजारों पीढि़यां सदियों तक उनकी जयजयकार होती ही रहेगी। वजह यह कि उन्होंने ही समाज को एक अनोखी दिशा, दर्शन, कर्म, दायित्व, आदर्श और चिन्तन दिया है, जो गैर-हरामियों के वश की बात ही नहीं थी।