गुरूजी ! पानी लाया हूं, अब तो मुंह धो लो – चार
: अपनी जान दे दी उस जांबाज शिक्षक ने, पर दायित्व नहीं छोड़ा : पूर्वांचल में शिक्षा जगत की सबसे समृद्ध थी चक्के कालेज की लैबोरेट्री : हत्यारे को एक मंत्री ने बचाया, शिक्षक, नेता, वकील, जनता सब खामोश :
कुमार सौवीर
लखनऊ :– यह बारह साल पहले की बात है। वाराणसी मार्ग पर बने चक्के कुटीर स्नातकोत्तर महाविद्यालय में परीक्षाएं चल रही थीं। शायद अप्रैल या मई का महीना था। परीक्षा की निगरानी कर रहे एक शिक्षक ने एक क्लामस में एक छात्र को नकल करते देख लिया। लेकिन उसे झिड़कने या धमकी देने के बजाय उस शिक्षक ने उस शिक्षक से वह पुर्जा छीन लिया। साथ ही यह भी नसीहत दी कि:- बेटा, अभी तुम्हारी उम्र काफी है, मंजिल दूर है, और जिन्दगी का मकसद विशाल। ऐसे में अगर तुम नकल करोगे, तो यह आदत तुम्हें खत्म कर देगी। यह कह कर शिक्षक वापस जाने लगा, तो छात्र ने उसे ललकारते हुए कहा कि:- मास्टर साहब, नसीहत नहीं, मुझे वह पुर्जा वापस चाहिए। वरना इसका अंजाम खतरनाक होगा।
शिक्षक ने उसकी ओर देखा। बोला कुछ नहीं, सिर्फ हंस दिया और वापस लौट गया। लेकिन अगली दोपहर जलालपुर रेलवे क्रासिंग पर वह शिक्षक जब अपने कालेज की दूसरी पाली पर जा रहा था, पीछे से उसे गोली मार दी गयी। घायल शिक्षक को तत्काल बनारस ले जाया गया, फिर लखनऊ और बाद में दिल्ली। जहां उस शिक्षक की मौत हो गयी।
इस शिक्षक का नाम था डॉ अजीत सिंह। पास के ही मडियाहूं रोड पर रहने वाला था यह शिक्षक। माइक्रोबायोलॉजी का विभागाध्यक्ष अजीत ने अपनी लैबोरेट्री को इतना समृद्ध कर लिया था कि पूरे पूर्वांचल में उसका कोई सानी नहीं था। नौकरी में आने के बाद से ही चक्के महाविद्यालय का नाम डॉ अजीत के नाम पर मशहूर हो गया। देश-विदेश के वैज्ञानिक अजीत के काम को देख कर दंग थे। उस हत्या ने पूरे विज्ञान जगत को सकते में डाल दिया था। जब अजीत को लखनऊ में लाया गया था, तो मैंने फोन पर अजीत से बात की। मैंने कहा कि आपको अपना दायित्व निभाने की कीमत देनी पड़ी है, कैसा लग रहा है? आपको पता था कि वह छात्र अपराधी है, आपको डर नहीं लगा?
अजीत का जवाब सुन लीजिए गुरू जी, तो मेरा दावा है कि आपकी छींकें निकल जाएंगी। अजीत बोले:- मैं एक शिक्षक हूं। मेरा काम है शिक्षा को सुधारना। यह शिक्षक ही ऐसा कर सकता है, ऐसे में अगर मैं अपनी इस जिम्मेदारी पूरी नहीं करता, तो फिर कौन करता। शिक्षक का काम छात्रों को दिशा देना है, अगर हम ही भयभीत हो जाएंगे तो बच्चों को कैसे सुधारा जा सकेगा। मुझे गर्व है कि मैंने अपने दायित्वों को पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाया, और उसका मूल्य भी चुका रहा हूं। यह भी हर्ष की बात है किसी भी शिक्षक के लिए।
लेकिन इस हत्या पर पूर्वांचल के शिक्षक समुदाय पर कोई भी फर्क नहीं पड़ा। बात-बात पर हंगामा करने पर आमादा शिक्षक समुदाय इस हत्या पर खामोश रहा। नेता तो इधर-उधर सटक गये। विधायक-मंत्री झांकने तक नहीं आये। कुछ ऐसा लगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं। हां, अजीत की तेरहवीं में बाहुबली धनन्जय सिंह समेत करीब दो हजार लोग शामिल हुए। सब के सब, तोप-तमंचा, बंदूक-कट्टा से लैस। ललकार रहे थे कि इस हत्या का बदला लिया जाएगा। दावे करने वालों ने राजपूत आन-बान-शान को बरकरार रखने का संकल्प लिया। लिया कुछ नहीं। बल्कि तब भी नहीं हुआ, जब हत्या में शामिल एक अपराधी को जिले के एक प्रभावशाली नेता के कहने पर पुलिस ने हवालात से छोड़ दिया।
आप शिक्षक संघों के बारे में बात पूछ रहे हैं क्या? तो आपको बता दें कि शिक्षक तो पूरे पूर्वांचल में पढाई के लिए नहीं, बाकी सारे काम करने के लिए ही नौकरी करता है। एक पदाधिकारी बोले:- जो मर गया, उसके बारे में क्या किया जा सकता है।
मैंने बातचीत का सिरा आगे और सरकाया। पूछा कि जिला अस्पताल में दो हफ्तों से बलात्कार पीडित एक बच्ची अस्पताल, पागलखाना और अब नारी निकेतन में पड़ी सड़ रही है, उस पर क्या कर सकते हैं आप।
मास्टर साहब बोले:- अरे छोडि़ये सौवीर साहब। यह बताइये कि शाम का क्या प्रोग्राम है?
और गुरू जी, इस हालत के असली जिम्मेदार तो तुम खुद हो। मैं पानी ले आया हूं गुरू जी, जाओ, अपना मुंह धो लो।
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