इटावा: सामाजिक दायित्‍व की गंगा प्रवाहित की पुलिस ने

सक्सेस सांग

: बच्‍चे का हठ उसकी निजी ख्‍वाहिशों के लिए होता है, जबकि अभिभावकों का कदम सामूहिक : हर ख्‍वाहिश पूरी कर पाना हर बाप के वश की बात नहीं होती : इटावा का यह बड़ा दारोगा न होता, तो यूं ही चलता रहता ढर्रा :

कुमार सौवीर

लखनऊ : यह नया दौर है जनाब। वरना सोचिए तनिक, कि पहले का कोई बच्‍चा अपने पिटने के बाद कहीं किसी से शिकायत करने की सोचता था। अजी, वह या तो टेसुए बहाता है, और बाद में अपने दोस्‍तों के साथ घर से पैसा चुरा कर अपनी ख्‍वाहिशों को पूरा कर लेता है। वह मान बैठता था कि अगर बाप ने उसे पीटा है, किसी आग्रह को टाल दिया है, या उसे खारिज कर दिया है, तो वह उसका बदला लेकर ही मानेगा। जाहिर है कि उसका यह फैसला प्रतिशोध के स्‍तर पर होता था, और जाहिर है कि उसमें उसका निजी-पन ही हावी होता था।

लेकिन इटावा में ऐसा नहीं हुआ। एक मासूम बच्चे पर जब उसके पिता ने उसकी जिद पर पीटा डाला, तो इस बच्‍चे ने इस मामले को निजी झगड़े के बजाय उसे सामाजिक स्‍तर पर पहुंचाने और उसका निदान खोजने की पहल छेड़ दी। वह सीधे थाने पर पहुंचा। बेधड़क निसंकोच। बोला कि मुझे पिता परेशान कर रहे हैं। परेशानी का आशय उसके शब्दों में यह था कि उसके पिता उस की अपेक्षाएं-इच्‍छाएं पूरी नहीं कर रहे हैं। वह चाहता था कि उसके पिता उसको नुमाइश घुमाने ले जाएं। और अगर ऐसा न भी हो सके, तो कम से कम ऐसा कर दें ताकि वह नुमाइश की सैर कर सके। लेकिन आखिरकार अगर ऐसा किसी भी हालत में मुमकिन न हो पा रहा हो, तो वह चाहता था कि ऐसा न करने पर उसके बाप की पिटाई हो जाए, उसे हवालात पर बंद कर दिया जाए।

सामान्य तौर पर बच्चे के ऐसे किसी हठ को केवल उसके अभिभावक ही नहीं, बल्कि आस-पड़ोस और दूरदराज के लोग भी उसकी जिद के तौर पर देखते हैं। साथ ही साथ, इतना जरुर साबित हो जाता है कि वह बच्चा पूरी तरह अराजक और बदमाश हो चुका है, जिसे औकात में लाकर खड़ा कर देना वक्त की सख्त जरूरत होती है। उनका अटूट विश्‍वास हो चुका होता है कि अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो उस बदमाश बच्‍चे की ऐसी ख्वाहिशें सामाजिक तन्‍तुओं को तबाह कर देंगी। अभिभावकों का जीना हराम हो जाएगा और समाज ऐसे अराजक बच्चों की भरमार से बिखर जाएगा। ऐसे लोगों का मानना होता है कि बच्‍चे की ऐसी जिद का कोई इलाज नहीं होता। सिवाय छड़ी अथवा तमाचे, लात-घूंसे।

मगर ऐसा हुआ नहीं। थाने में पुलिसवाले ने अपनी परंपराओं को तोड़ दिया। अपनी मूंछ को नीचा कर दिया, डंडा दूर फेंक दिया, राइफल की सारी गोलियां निकालकर बिखेर दिया, जुबान की कड़वाहट को धो दिया, और दिल-दिमाग में मिश्री ही नहीं, बल्कि उसे गंगाजल-आबेजमजम से पवित्र भी कर दिया। कुछ इस तरह, ताकि जीवन भर यह बच्‍चे उसे भूल नहीं सकेंगे।

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इटावा की पुलिस ने इस बच्चे में अपने दिल में अपने ही बच्चे को बचपन को जगा दिया और इस पूरी बातचीत वीडियो बनाकर वायरल कर दिया। इटावा का बड़ा दरोगा इस मामले में अपनी अफसरी छोड़ उस बच्‍चे की भावनाओं को सहलाने और उसे संतुष्‍ट करने लगा। लेकिन इस बात की भी पूरी कोशिश की कि उसका यह कदम केवल भावुकता से प्रेरित न हो, बल्कि उसे दूरगामी नतीजे भी अपनी अमिट छाप डाल दें। जिला का बड़ा दारोगा और उसकी पुलिस टीम ने इस घटना को एक सरल, निष्पाप और प्रगतिशील पिता के तौर पर देखा-समझा और क्रियान्वित कर डाला।

वैभव कृष्ण। जी हां, इटावा का बड़ा दरोगा, जिसे वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कहा जाता है। वैभव कृष्‍ण के इस कदम ने इस मासूम के प्रति अपनी भावनाओं का समंदर उछाल दिया। इस बच्चे की ख्वाहिश को पूरी कर डाला। नतीजा यह हुआ कि पुलिसवाले उसके घर गए, और उसके मां-बाप को समझाया। इतना ही नहीं, आसपास के हमउम्र बच्चों को भी इकट्ठा किया और फिर यह पूरा रेला एक मेटाडोर पर लद कर पहुंचा दिया गया प्रदर्शनी स्‍थल तक, जहां इन बच्चों ने प्रदर्शनी का लुत्‍फ लिया, जहां-तहां झूला-झुलनी किया, विभिन्‍न खेलों का आनंद लिया। और सबसे बड़ी बात यह इस दौरान पुलिस वाले बच्चों के चाचा, मामा, मौसा, फूफा की भूमिका में मुस्‍तैद रहे। पुलिसवालों ने इन बच्‍चों के लिए आइसक्रीम से लेकर उनकी हर पसंदीदा चीजें मुहैया करायीं।

मगर साथ ही साथ, इन बच्‍चों को यह भी पूरे प्‍यार-दुलार के साथ यह भी समझा दे दिया कि मां-बाप की हैसियत की भी एक सीमा होती है। दुनिया की हर ख्‍वाहिश पूरी कर पाना हर बाप के वश की बात नहीं होती है। पुलिसवालों ने भी इन बच्‍चों के मां-बाप को भी यह समझाया कि वे अपने बच्‍चे के साथ किस तरह का व्‍यवहार करें। ( क्रमश:)

यह घटना केवल इसलिए महत्‍वपूर्ण नहीं है कि इसमें पुलिसवालों ने सिर्फ उस बच्‍चे को संतुष्‍ट किया। बल्कि यह घटना इस लिए महान बन गयी है, क्‍योंकि पुलिसवालों ने इस बच्‍चे की निजी समस्‍या को सामाजिक समस्‍या की तरह देखा, और उसका सामूहिक तौर पर समाधान खोजने की कोशिश की है। इस मामले में हम इटावा के बड़ा दारोगा को सैल्‍यूट करते हैं। इसके साथ ही साथ इस पूरे मसले को बाल एवं मनो-सामाजिक मसले के तौर पर उसका विश्‍लेषण करने की कोशिश करने जा रहे हैं। यह श्रंखलाबद्ध आलेख तैयार किया है हमने। इसकी बाकी कडियों को देखने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

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