वक्‍त का तकाजा है दोलत्‍ती डॉट कॉम

बिटिया खबर

: सर्वाधिक शरीफ, सीधे और असहाय प्राणियों का इकलौता अस्‍त्र होती है उनकी दोलत्‍ती, आतंकी एक ही वार में चारों-खाने चित्‍त : नया कलेवर, नया तेवर, नया अंदाज। आप तक खबरें पहुंचाना बहुत महंगा होता है, कृपया धन से भी सहयोग करें :
कुमार सौवीर
लखनऊ : जिन्‍होंने मेरीबिटिया डॉट कॉम को पढ़ा-समझा है, वे खूब जानते हैं कि पोर्टलों की दुनिया में यह अपने विषय और प्रस्‍तुतिकरण को लेकर लाजवाब और बेमिसाल है। हां, पहले कई लोगों को इस वेब-पोर्टल के नाम व उसके तेवर के बीच सामंजस्‍य न होने पर ऐतराज था। उन लोगों का कहना था कि नाम तो महिलाओं-बच्चियों पर है, लेकिन खबरें हैं तेज-तर्रार। नाम और काम के बीच में आपस में कोई तारतम्‍यता ही नहीं दिखती है लोगों में। अक्‍सर कई सज्‍जन तो नाम सुनते हैं मुंह बिचका देते थे:- अरे छोड़ो यार, औरतों वाला कोई आइ‍टम होगा इस पोर्टल में।
अब ऐसे में हम क्‍या करते? सिवाय इसके कि मैं अपनी सफाई देता था, लेकिन इसके बावजूद कुछ लोग मानने को तैयार ही नहीं होते थे। जो मान भी लेते थे, उनकी भंगिमा-भाव और अंदाज ऐसा लगता था कि:- सुन तो लिया है, लेकिन मैं मानूंगा नहीं।
इसके अलावा कोई रास्‍ता भी तो नहीं था मेरे पास।
मैं मूलत: स्‍त्रीवादी व्‍यक्ति हूं। केवल इसी तर्क पर नहीं कि मेरी दो बेटियां हैं। बल्कि इसलिए भी, कि मैं महिलाओं को प्राथमिकता तौर पर सम्‍मान करता हूं। उनके अधिकारों को लेकर चिंतित और सक्रिय भी रहता हूं। कम से कम, तब तक तो जरूर ही, जब तक हमारा समाज स्‍त्री और पुरूष के बीच परस्‍पर अधिकार-जनित बराबरी तक नहीं पहुंच जाए। औरतों के प्रति पुरूषों को लेकर कोई दुराग्रह न बचे हों। चाहे वह पैदाइश का मामला हो, भ्रूण के लिंग-परीक्षण और कन्‍या-भ्रूण हत्‍या का मामला हो, समाज में दोयम यानी दूसरे दर्जे की मानसिकता हो, प्रत्‍यक्ष आय उपार्जन करने वाले पुरूष की ही तरह परोक्ष आय उपार्जन में जुटी तथा दिन-रात घर-परिवार में खटने वाली महिला को समाज व घर-परिवार में सम्‍मान देने की बात हो, सड़क पर आवागमन का मसला हो, वस्‍त्र और विन्‍यास पर बातचीत हो, शिक्षा की बात हो, परिवार के पुरूषों के साथ बच्चियों की बराबरी की चर्चा हो, या फिर बात-बात पर स्‍त्री के अंग-प्रत्‍यंग को घसीटने की गालियों की बात हो रही हो।
इसी संकल्‍प के साथ मेरी बिटिया डॉट कॉम मेरी कल्‍पनाओं के फलक से उतर कर जमीन पर आ गया। तय किया कि महिलाओं के विषयों पर ही यह पोर्टल चलाऊंगा। लेकिन आर्थिक संकट भारी था। सच बात तो यही थी कि मैं ही स्‍त्री-विषयों के लिए जरूरी खबरों का जुटा ही नहीं पा रहा था। कैसे नये फैशन की खबरें लाता, कैसे महिलाओं से जुड़ी खबरों को जुटाता, कैसे उनका इंटरव्‍यू करता, कैसे उनके लिए आवश्‍यक फोटोज मंगवाता। जेब-टेंट में पैसा ही नहीं था, इसलिए काम भी नहीं हो पा रहा था। फिर महिलाओं के विषयों के साथ ही दीगर खबरों पर भी हाथ-पांव फैलाया। बेहिसाब मेहनत की, लेकिन कई बरस तक खटने के बावजूद उसमें सफल नहीं हो पा रहा था। कारण था, मेरी आर्थिक दुर्दशा। मेरीबिटिया डॉट कॉम के लिए नौकरी खोजने का रास्‍ता भी भूल गया। विज्ञापन और चंदा कोई देता नहीं। मैंने भिक्षा और दक्षिणा मांगना शुरू किया। लेकिन चंद लोगों के अलावा बाकी सारे लोग रास्‍ते से हटने लगे। मुझे देखते ही लोग मुंह छिपाने लगे, रास्‍ता काटने लगे। मानो मैं इंसान नहीं, काली बिल्‍ली हूं। किसी के सामने हाथ फैलाया भी, तो कुछ लोगों ने ऐसा जवाब दिया मानो मैंने उनसे दक्षिणा-भिक्षा नहीं, बल्कि उनसे सीधा प्राण ही ले लिया हो।
आर्थिक संकट तो बना ही रहा, लेकिन दिमागी तौर पर उससे मैं ओवर-कम होने लगा। वजह था वह संकल्‍प, कि चाहे कुछ भी हो, पत्रकारिता नहीं छोडूंगा। आपको मुझे आर्थिक मदद नहीं करनी है तो मत कीजिए। कम से कम खबर तो पढ़ने लगिये। और मुझे खुशी है कि मेरा इस फ्री-फण्‍ड वाला ऑफर लोगों को भा गया, और पाठकों की संख्‍या बढ़ने ही लगी।
कुछ लोगों ने इसमें शुरूआती दौर में मदद जरूर की थी।
मगर नाम का झंझट बना ही रहा, मेरी बिटिया डॉट कॉम। मुझे भी लगातार लगता ही रहा है कि इस पोर्टल के नाम और उसकी खबरों के चरित्र के साथ घालमेल करके मैं शायद काफी अन्‍याय कर रहा हूं।

आम आदमी की दोलत्‍ती को जानने-समझने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर कुमार सौवीर का वीडियो देखने का कष्‍ट करें:-
आम आदमी की दोलत्‍ती, तैयारी शुरू की जाए

ऐसे में मैंने तय किया कि एक नया नाम खोजा जाए, जिसे मेरी बिटिया डॉट कॉम से क्‍लब कर दिया जाए। बहुत कोशिशों के बाद नया नाम खोजा:- दोलत्‍ती डॉट कॉम। यह भी मेरी बिटिया की ही तरह डॉट कॉम, यानी पोर्टल है। नाम खोजा मैंने, और उसे तैयार करने की पूरी कवायद की फिलहाल अमेरिका में न्‍यूयार्क के पास एक शहर में बसे अतुल पाण्‍डेय ने, जो कम्‍प्‍यूटर की दुनिया के ही महारथी और मूलत: संवेदनशील हैं। शायद इसलिए क्‍योंकि वे दिल को सम्‍भालने वाली मशीनों को डिजाइन कर हृदयरोगियों को जीवन-दान करने में अपना योगदान कर रहे हैं। यकीनन, मेरे एक घनिष्‍ठ मित्र और एसबीआई के एजीएम रहे स्‍वर्गीय वीपी पाण्‍डेय के इस इकलौते पुत्र अतुल ने बहुत मेहनत की। और नतीजा यह है कि अब यह नया www.dolatti.com आपके सामने है। यह पोर्टल भी www.meribitiya.com के साथ-साथ ही चलेगा।
हां, फिलहाल कई दिक्‍कतें आ रही हैं इसमें। इनमें आर्थिक और तकनीकी ही ज्‍यादा है। ऐसे में मुझे यकीन है कि इसमें आर्थिक पक्ष आप हमारे पाठक सम्‍भाल लेंगे, और रही बात तकनीकी दिक्‍कतों की, तो अतुल इसमें जुटे ही हैं। देखिये यह दोनों ही मसलों का समाधान कैसे और कब तक निपट पायेगा। कलेवर का लफड़ा जल्‍दी ही निपटेगा, और श्‍वेतपत्र का परिचय भी आपको किसी निजी पारिवारिक सदस्‍य की तरह दिखायी पड़ेगा। बेहद अपनापन और आपकी जरूरतों के मुताबिक ही।
यकीन है कि आपका सहयोग हमें हमेशा की तरह मिलता ही रहेगा। और हम आप तक अपनी धारदार और अनोखी खबरें बेहद अलहदा और रोचकता के साथ ही साथ पर्याप्‍त आक्रामक अंदाज में पेश करते ही रहेंगे।
दोलत्‍ती डॉट कॉम हमारा धर्म है, और मेरी बिटिया डॉट कॉम हमारे जीवन का ध्‍येय। लेकिन फिलहाल तो दोलत्‍ती डॉट कॉम पर ही हम पूरा ध्‍यान दे पायेंगे। मगर इसके साथ ही सााि हम आपको विश्‍वास जरूर दिलाते हैं कि एक न एक दिन मेरी बिटिया डॉट कॉम को हम पूरी तरह महिलाओं को ही समर्पित कर ही डालेंगे। बस, थोड़ा आर्थिक हालत सुधरने दीजिए, और कुछ आप भी मदद करते रहियेगा।
हमें आपके समर्थन और आर्थिक सहयोग की सख्‍त जरूरत है। तो जरा हमारा सहयोग भी कीजिए। मन से तो आप हमारे साथ हैं ही, अब जरा धन से भी हमारा हौसला बढ़ाइये। कम से कम इतना तो हो जाए कि हम आपके आक्रोश को जुबान दे सकें, और आपके खिलाफ उठने वाली किसी भी आवाज और हरकत पर एक जोरदार दोलत्‍ती मार सकें।

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