पत्रकारों से लल्‍लो-चप्‍पो करने वाले नेतागण विद्याप्रकाश की तेरहीं भूल गये

सैड सांग

: 40 साल तक पत्रकारिता करने वाले विद्या जी पर भारी भीड़ जुटी, मगर जनप्रतिनिधि एक भी नहीं :  60 बरस पर हुआ देहावसान, पूरा जीवन पत्रकारिता को समर्पित रहा : गुरूवार को पत्रकारिता जगत के स्वयंभू और कथित माई-बाप का दूरी बनाये रखना बहुत अखरा :

आहत  पत्रकार

जौनपुर : वरिष्ठ पत्रकार सच्चे अर्थों में सरस्वती पुत्र स्व. विद्या प्रकाश श्रीवास्तव की गुरुवार को तेरहवीं थी. जिसने अपनी जिंदगी के 66 वर्षों में से 40 साल से भी ज्यादा सच्चे कलमकार के रूप में पत्रकारिता जगत की श्रीवृध्दि और समाजहित में खपा दिया. लेकिन उनकी देहावसान के बाद आयोजित उनके त्रयोदशी कार्यक्रम में एक भी जनप्रतिनिधि ने हिस्‍सा नहीं लिया। जबकि यही सब नेता अपनी हर छोटी-बड़ी सूचना छपवाने के लिए पत्रकारों की खुशामद करते दिख जाते हैं।

विद्याप्रकाश श्रीवास्‍तव ने अपनी पत्रकारीय-जिन्‍दगी दैनिक तरूणमित्र से शुरू की थी। बाद में वे दैनिक मान्‍यवर आदि अखबारों से भी जुड़े रहे। अंतिम वक्‍त में वे डीएनए से सम्‍बद्ध थे। इसके अलावा में कई सामाजिक और जन संगठनों में भी पूरी तरह सक्रिय थे। मित्रता उनके जीवन का एक अभिन्‍न अंग हुआ करता था।

हालांकि विद्याप्रकाश श्रीवास्‍तव उस पीढ़ी के पत्रकार नहीं थे, जो पत्रकारिता को चमक-दमक के तौर पर तौलते थे। उनके लिए उनकी पत्रकारिता एक मिशन थी, आम आदमी के प्रति आस्‍था और समर्पण का एकमेव मकसद हुआ करती थी। दिखावे की पत्रकारिता से दूर निर्विकार व्यक्तित्व।  पत्रकारिता के ऐसे मनीषी के जीवनयात्रा की चर्चा करने के अंतिम कार्यक्रम से भी जनप्रतिनिधियों, समाज के ठेकेदार स्वयंसेवी संगठनों से जुड़े लोगों और खुद उन्हीं की बिरादरी अर्थात पत्रकारिता जगत के स्वयंभू और कथित माई-बाप का दूरी बनाये रखना बहुत अखरा.

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पत्रकार पत्रकारिता

सगे-संबंधियों और मोहल्ले के पड़ोसियों के अलावा गिनती के पत्रकार ही उनके चित्र पर श्रद्धा के दो पुष्प चढ़ाने पहुंचे. हालांकि उनके मित्र और आजकल मुम्‍बई में पत्रकारिता कर रहे कुमार वैभव इस तेरहवीं संस्‍कार में शिरकत करने के लिए मुम्‍बई से सीधे जौनपुर आ गये थे। इतना ही नहीं, दो दिन पहले ही वैभव ने उस परिवार में इस संस्कार की तैयारियों में हिस्‍सा भी बंटाया।

 

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हर सू जौनपुर

आपको बता दें कि विद्याप्रकाश जी को थाने-चौकी या अधिकारियों के यहां बैठकबाजी वाली पत्रकारिता से सख्‍त परहेज था. जनप्रतिनिधियों और राजनीति के रसूखदारों के यहां चापलूसी या संपर्क लाभ उठाने की मंशा से दरबार लगाने से भी सख्त परहेज था. आज के दौर में एेसे पत्रकारों के कद्रदान हैं भी कहां? ऐसे में जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति दर्ज न कराना बहुत चौंकाने वाला नहीं रहा. अलबत्ता विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों से जुड़े तथाकथित समाजसेवियों का न पहुंचना जरूर अखरा. वजह यह थी कि बिना किसी लाभ, उपहार या समाज में पहचान की प्रत्याशा में वह एेसे संगठनों व उनसे जुड़े लोगों के हर कार्यक्रमों पर सकारात्मक लेखनी चलाते रहे. भले ही चंद गरीबों को कंबल बांट कर फोटो खिंचाने वाले ही समाजसेवी क्यों न रहे हों.

लानत है ऐसे जन प्रतिनिधियों और समाज सेवियो पर

जिले मे BJP के दो सांसद डा के पी सिंह और राम चरित्र निषाद । इसके अलावा 9 मे 5 बीजेपी गठबन्धन के तीन सपा और एक बसपा के हैं। शहर विधायक गिरीश यादव नगर विकास राज्य मंत्री भी है ! आश्चर्य यह है कि 22 मई से मंत्री गिरीश यादव जिले के कार्य क्रमो में भाग लिये! कल 25 मई को भी दिन भर शहर मे ही रहे लेकिन उनके इर्द गिर्द मडरा रहे चमचो ने शायद पत्रकार विद्या प्रकाश जी के निधन की सुचना तक उन्हे नही दी!

किसी शायर ने लिखा है

वो पास से ही गुजरे और हाल तक न पूछें, हम कैसे मान लें वो दूर जाके रोयेंगे

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