छुटके ने यूं हौंका, कि बड़ा दारोगा ऐसा गो, वेन्‍ट, गॉन हुए कि केमै नॉट

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: अभी तक अंग्रेजियत नहीं उतरी है बड़ा दारोगाओं में, छुटकों को गुलाम समझते हैं : इलाहाबाद के धूमनगंज के थानाध्‍यक्ष से पैसा मांग रहा था तब का एसएसपी जुनेजा : हाईकोर्ट में सवाल उठा तो प्रतिनियुक्ति में निकल गये बड़ा दारोगा : पुलिस में दहकती अंतर्कथा-एक :

कुमार सौवीर

लखनऊ : बड़ा दारोगा, यानी आईपीएस अफसर। पुलिस की रंगबाजी में कहें तो कप्‍तानी सम्‍भालने वाला हाकिम, जिसका दारोमदार पुलिस महकमे को दुरूस्‍त करना होता है। मतलब पुलिस विभाग का भगवान। जाहिर है कि भगवान हमेशा दयालु और विनम्र और सदाशयी ही होता है, ल‍ेकिन अनुशासन-प्रिय होने के चलते उसका जिम्‍मा इस बात का भी होता है कि वह किसी अराजक अंग को यथोचति दण्डित भी करे। लेकिन ऐसे दण्‍ड उसके दुराचार के बजाय, उस अंग के साथ ही साथ विभाग और समाज  के प्रति सदाशयतापूर्ण ही हो।

लेकिन दुख इस बात का है कि विभाग में कई ऐसे छोटे-बड़े भगवान भी हैं, जो विभाग और वर्दी में तो बड़ा कद परम्‍परागत तरीके से हासिल कर लेते हैं, लेकिन हैरतनाक तरीके से खुद को किसी घटिया जीव-जन्‍तु से भी गये-बीते हो जाते हैं। जिन लोगों को बरसात के मौसम के दौरान रात में सोते वक्‍त अपनी चमड़ी में किसी कीड़े के तेजाबी पेशाब स्राव से उभरे फफोलों की पीड़ा महसूस कर ली हो, वे समझ सकते हैं कि ऐसे बड़ा दारोगा की एक हरकत भी कितनी घटिया और नराधम होती है। यह ते भव भार भूता मृगाश्‍चरांति की तरह पूरे सिस्‍टम को तबाह कर देने की क्षमता रखते हैं।

हैरत की बात है कि ऐसे लोगों की करतूतों को उनके बड़े अफसर भी अपने कैडर और सॉलिडिटी के सवाल पर चुप्‍पी साध लेते हैं। बड़ा दारोगा अपनी मनमर्जी से किसी भी छोटे दारोगा का शोषण करता है, उसे प्रताडि़त करता है, उसे अनावश्‍यक रूप से दण्डित कर और सार्वजनिक तौर पर अपमानित करता रहता है, लेकिन उसके सीनियर्स उस मसले पर पूरी चुप्‍पी ही साधे रहते हैं। नतीजा यह कि आहत छोटा दारोगा के ऊपर बड़े दारोगा का आतंक-प्रताड़ना नाक के ऊपर हो जाता है, तो वह अदालत में अर्जी लगा देता है। कहने की जरूरत नहीं, कि जब अदालत से उस दारोगा को राहत मिलती है, तो फिर उस दारोगा का हौसला बढ़ जाता है। इस हालत को बड़ा दारोगा अपने खिलाफ छोटे दारोगा को अराजक और अनुशासनहीन करार देने पर आमादा हो जाता है। लेकिन जो ठीक से अदालतों से रगड़े जा चुके होते हैं, वे मैदान छोड़ कर भाग जाते हैं।

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बड़ा दारोगा

प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम आपको ऐसी ही कतिपय घटनाओं से रू-ब-रू कराना चाहता है, जो हकीकत में पुलिस विभाग में अनुशासन की अलहदा परिभाषाएं बनती जा चुकी हैं। यह कहानी अब हम श्रंखलाबद्ध तरीके से आपके सामने पेश करेंगे। यानी धारावाहिक ढंग से। कोशिश रहेगी कि आप तक यह स्‍टोरीज रोज ब रोज मिलती ही रहें। तो इसकी पहली कड़ी में पेश है एक आईपीएस पी जुनेजा की कहानी, जिनकी करतूतों के चलते एक छोटे दारोगा को हाईकोर्ट की राह पकड़नी पड़ी।

एक चर्चित मामला इलाहाबाद जिले का है जहाँ धूमनगंज थाने में तैनात रहे दरोगा केके मिश्र ने एसएस पी दीपेश जुनेजा के खिलाफ प्रताड़ना और थानेदारी के लिए पैसे मांगने का आरोप लगाया। इस दारोगा ने जब उस एसएसपी की इस आपराधिक मांग पर साफ इनकार कर दिया, तो उस दारोगा को प्रताडि़त किया जाने लगा। इतना ही नहीं, उस दारोगा को इस बड़े दारोगा ने उसी थाने में सेकेंड अफसर बना दिया, यानी डिमोट कर दिया।

कहने की जरूरत नहीं कि यह अपमान की पराकाष्‍ठा ही थी। यह पीड़ा वह दारोगा सहन नहीं पाया और सीधे उच्च न्यायालय में गुहार लगा गया। उसने एक याचिका दाखिल की, जो आज भी विचाराधीन है। लेकिन हाईकोर्ट ने उसे अंतरिम आदेश जरूर दिया कि आखिर इस दारोगा को गैरकानूनी तरीके से क्‍यों प्रताडि़त किया गया। कहने की जरूरत नहीं कि इस मामले में दीपेश जुनेजा को हटा दिया गया।

आरोपों का सामना न कर पाये जुनेजा प्रतिनियुक्ति पर चले गए और तब से वापस नहीं लौटे।

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