पुराना बड़ा दारोगा था “कभी खुशी कभी गम”, नयी वाली “लेडी-सिंघम”

सैड सांग

: अब तो मंजिल सैनी से पूछना चाहिए कि आखिर पत्रकार से हुई फोन-बातचीत कैसे वायरल हुई : लखनऊ आने से पहले ही पत्रकारों से बोल दिया था कि मैं इटावा रह चुकी हूं, सब जानती हूं : गजब पत्रकारिता है आज के दौर की, जो अपराधी के साथ दुबई का लुत्‍फ लूटता है : पुलिस का तेल लगाती पत्रकारिता- तीन :

कुमार सौवीर

लखनऊ : लेकिन इसी बीच यह आइडिया कैच कर लिया वाट्सअप की पत्रकारिता करने लोगों ने। यह लोग तो पारम्‍पारिक पत्रकारिता से भी कई कदम आगे थे। कई मामलों में शातिर भी। वे किसी को भी दलाल करने का अभियान छेड़ सकते हैं, किसी भी स्‍याह को सफेद साबित कर सकते हैं और किसी भी सफेद को काला-गंदा साबित कर सकते हैं। उन्‍हें पता चल चुका था कि उनकी रीच मोबाइल के वाट्सअप ग्रुप्‍स तक थी। इधर गप्‍प से लिखा, और हच्‍च से रिलीज हो गया। हाथों में मोबाइल में सन्‍न-सी आवाज हुई और अंगूठों ने उसे खंगालना शुरू कर दिया। पारम्‍पारिक पत्रकारिता से ज्‍यादा प्रभावी साबित होती जा रही थी। सच का पता तो बाद में पता चल पायेगा, दूकान तो चल ही जाएगी।

हाल ही लखनऊ में यही हुआ। मुख्‍य सचिव के घर से चोरी हुए करीब डेढ़ करोड़ के हार को लेकर चली बमचक के दौरान जब तब के बड़े दारोगा राजेश पाण्‍डेय पर गिरी। राजेश पाण्‍डेय की छवि कभी खुशी कभी गम टाइप थी। उनकी जगह सीधे मंजिल सैनी को लखनऊ का बड़ा दारोगा बनाया गया। आते ही मंजिल सैनी से पत्रकारों ने जब पूछा कि लखनऊ में कानून-व्‍यवस्था को वे कैसे निपट पायेंगी, तो मंजिल सैनी ने मुस्‍कुराते हुए जवाब दिया कि मुझे प्रशासन खूब पता है। मैं अनजान नहीं हूं, सीधे इटावा से आ रही हूं। कहने की जरूरत नहीं कि मंजिल सैनी तब इटावा की पुलिस प्रमुख थीं। गजब है, सैनी का यह कमाल का पॉलिटिकल जवाब था।

चलिये, कोई बात नहीं। कामधाम चलता रहा। इसी बीच साधना टीवी नामक चैनल के पत्रकार अभिषेक मिश्र ने एक शातिर धोखेबाज शाजी की तारीफ करते हुए फोन किया, जो वह वजीरगंज थाने में पांच करोड़ के फर्जीवाड़े में आरोपित है। इतना ही नहीं, कई मामलों में उसका पासपोर्ट तब जब्‍त हो चुका है, लेकिन अभिषेक ने मंजिल सैनी को फोन करके शाजी की तारीफ के पुल बांध दिये, उसके खिलाफ कार्रवाई रोकने की पैरवी की, और शाजी के एक विरोधी नातिक खान के खिलाफ जमकर विष-वमन किया। यह तक ठीक था, लेकिन हैरत की बात रही कि अभिषेक मिश्र की मंजिल सैनी से हुई बातचीत अगले एक घंटे में ही वायरल हो गयी। आरोप लगाने वाले तो यहां तक कहते हैं कि अभिषेक ने इस बातचीत  का ऑडियो शाजी के हाथों बेच दिया था। कहने की जरूरत नहीं कि शाजी ने ही अभिषेक को दुबई तक कई दिनों तक की सैर करायी और वहां की रंगीनियों का लुत्‍फ लुटवाया था। ( क्रमश:)

पुलिस और आम आदमी के बीच एक अटूट रिश्‍ता होना चहिए। लेकिन हैरत की बात है कि ओछे स्‍वार्थों ने इस रिश्‍ते को आज तक पनपने की कोशिश नहीं की। कभी नेताओं की ख्‍वाहिशें ने इस सपने को चकनाचूर किया, तो कभी पुलिस के बड़े-छोटे अफसरों ने इसका नाजायज लाभ उठा लिया। रही-सही कचूमर निकाल दिया पत्रकारों ने, और जो जरा-सा तनिक खुरचन बड़ी थी, उसे वाट्सापियों ने सत्‍यानाश कर दिया। आइये, निहारिये इस मसले पर तैयार रिपोर्ट-श्रंखला। इसकी सारी कडि़यों को पढ़ने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:- पुलिस को तेल लगाती पत्रकारिता

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