: पुलिस का काम था जांच करना, अब वह अपराधियों से कराती रही डील : कुशीनगर के होटल सिद्धार्थ-इन में रात भर हुआ था एक युवती से सामूहिक बलात्कार : दोषियों को दबोचने के बजाय पुलिस ने पीडित बच्ची को ही तीन दिनों तक हिरासत में रखा : कथित डील के तहत सौंपी गयी कुछ रकम, पुलिस की जेब गरम और आइन्दा मुंह न खोलने की धमकी : पूरी तरह नंगी हो गयी पुलिस की सारी बेशर्म कार्रवाई :
कुमार सौवीर
लखनऊ : ठीक यही बेशर्म हरकत कुशीनगर के पड़रौना में हुई। आपको बता दें कि पडरौना के एक बड़े होटल सिद्धार्थ-इन में करीब पांच दिन पहले एक युवती रात भर बेहोशी में एक होटल में रही। जब उसे सुबह होश आया तो उसने पाया कि वह पूरी निर्वस्त्र हैं और उसके शरीर पर नोंचने के निशान हैं। होटल के उस कमरे का दरवाजा रात भर खुला ही था। सुबह होटल मालिक ने उसे ढाई सौ रूपये देकर उसके घर जाने को कहा, लेकिन चूंकि वह चल नहीं पा रही थी, इसलिए होटलमालिक ने उसे अपने बेटे और एक कर्मचारी के साथ उस युवती को अपने वाहन से भेजा। लेकिन रास्ते में ही वह युवती महिला थाना का बोर्ड देख कर गाड़ी से कूद कर थाने की ओर भागी।
वहां भी यही किस्सा दोहराया गया। यहां तो महिला थाना और कोतवाली थाना पुलिस ने उस बच्ची को थाने से भगा दिया था, लेकिन जब नागरिकों की भीड़ जुटी तो पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज की, लेकिन वह भी तोड़मरोड़ कर ही। इस रिपोर्ट में दर्ज ही नहीं किया गया कि उस बच्ची के साथ होटल में बलात्कार हुआ था। अब पुलिस के पास कोई जवाब नहीं है कि आखिर किन हालातों में वह बच्ची रात भर उस होटल में बेहोश पड़ी रही और जब उसे होश आया तो वह पूरी तरह निर्वस्त्र थी और उसके पूरे शरीर में नोंच-खसोट के निशान थे। पुलिस को इस सवाल को खोजने की जरूरत नहीं समझी कि इस बच्ची के साथ क्या कोई दुराचार हुआ भी या नहीं।
जानकार बताते हैं कि जब इस बच्ची को होटलवाले अपनी गाड़ी से लेकर उसे उसके घर छोड़ने जा रहे थे, उस समय उसने पुलिस थाने का बोर्ड देख कर गाड़ी से छलांग मार दिया था। और दौड़ कर महिला थाने में चल गयी थी। उस समय वह बहुत अशक्त तो थी ही, बदहवास भी थी। महिला थाने से भगाये जाने के बाद वह कोतवाली पहुंची। वहां भी उसको भगाया गया। उस वक्त भी वह बच्ची बदहवास थी। यानी वह उन लोगों से बचना चाहती थी जो उसे अपनी गाड़ी से लेकर जा रहे थे। लेकिन बेशर्मी पर आमादा पुलिसवालों ने उस बच्ची की हालत पर तनिक भी तरस नहीं किया और एक भी कोशिश नहीं कि जिससे उससे न्याय मिल पाने की राह मजबूत हो सकती।
हैरत की बात है और सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब यह बच्ची बदहवास थी, तो फिर उसे किसी महिला चिकित्सक से उसकी जांच करानी चाहिए थी, ताकि यह भी पता चल पाता कि उस बच्ची के साथ क्या-क्या अनर्थ-अनाचार हुआ था। उसके स्राव की स्लाइड्स बनायी जानी चाहिए थी। और उसके कपड़ों को सील कर उसे लेबोरेट्री भेजना चाहिए था। इतना ही नहीं, यह पुलिस की भी जिम्मेदारी थी, कि वह तत्काल उस होटल के कमरे को सील करते और वहां तफतीश करते ताकि यह पता चल पाता कि वहां क्या-क्या हादसा हुआ। वहां के बिस्तर, तकिया, तौलिया आदि को सील किया जाता। फर्श पर वहां पड़े हर सामान की बारीक जांच की जानी चाहिए थी।
लेकिन पुलिस ने सब के सारे तथ्य घोंट लिये। इतना ही नहीं, यह ईत्मीनान करने के बाद ही पुलिस ने उस बच्ची को पुलिस थाने से रिहा किया कि उसके शरीर पर उस कथित सामूहिक बलात्कार का एक भी निशान या प्रमाण खत्म हो जाए।
इस पूरे दौरान पुलिस-व्यवस्था की उस अवधारणा और औचित्य का गला घोंट दिया गया जिसमें मानव और खास कर पीडि़त महिला की सुरक्षा सर्वोच्च होती है। खास कर उस पर हमला या बलात्कार जैसी आशंकाओं को लेकर पुलिस को अधिक चौकस और सतर्क रहना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
एक विश्वस्त सूत्र के अनुसार इस हादसे में पीडि़त बच्ची और उसकी मां की आवाज का दम घोटने के लिए पुलिस और शहर के कई बड़े व्यवसायियों और नेताओं ने पूरा आसमान उठा रखा था। मकसद यह था कि इस हादसे के अभियुक्तों ककिसी भी कीमत पर बचा लिया जाए। सूत्र बताते हैं कि कुशीनगर जिला समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष राम नरेश यादव इस हादसे की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद खासे सक्रिय थे।(क्रमश:)
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