: हे भगवान, वकीलों की शीर्ष संस्थानों में इतनी अराजकता : कौंसिल को अपनी निजी जागीर बना डाला था पूर्व अध्यक्ष अनिल प्रताप सिंह ने : किसी बिगड़ैल राजा की तरह बार का खजाना लुटाया, कूड़ेदान में फेंक डाली बार कौंसिल की गरिमा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यह छीछालेदर को जंगल के कानून में भी नहीं होती है, जो यूपी के बार कौंसिल में हो गया। गनीमत रही कि जूतम-पैजार नहीं हुआ, लेकिन उससे भी ज्यादा गम्भीर हालात तक दो चार हो गया अधिवक्ताओं का पढ़ा-लिखा समझा जाने वाला समुदाय। बेहिसाब मनमर्जी चली, संविधान को ताक पर रख दिया गया, वित्तीय अनुशासन की चिंदियां उधेड़ डाली गयीं, कानून को जूती के नोंक पर रख दिया गया, और सबसे बड़ा अपराध तो यह हुआ कि बार कौंसिल की गरिमा को तहस-नहस कर डाला गया।
इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है, जब यूपी बार कौंसिल पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उंगली उठायी है। यह भी पहली बार ही हुआ है कि आम अधिवक्ता बार की कार्यशैली को लेकर खुले तौर पर गालियां देने तक के स्तर पर उतरने लगे हैं। इतना ही नहीं, बेईमानी के आरोप में बार कौंसिल के अध्यक्ष ने अपने ही निवर्तमान अध्यक्ष पर वित्तीय मामलों में गड़बड़ी करने का आरोप लगाया है, और कहा है कि सचिव की करतूतों की जांच करायी जाएगी। लेकिन इसके पहले ही बार कौंसिल ने अपने सचिव पर वित्तीय और कानूनों का अपमान करने के आरोप में उन्हें उनके पद से हटा कर एक पूर्व अपर जिला जज को कौंसिल के सचिव के पद पर मनोनीत कर दिया है।
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मिली खबरों के अनुसार पूरा झगड़ा बार कौंसिल के अध्यक्ष और सचिव पद से हटाये गये अनिल प्रताप सिंह और डॉ रामजी सिंह यादव को लेकर है। लेकिन उसमें भी सबसे बड़ी दिक्कत तो बार के अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पैदा हुई। हुआ यह कि नये अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गयी थी। 16 जुलाई को मतदान होना था। पर्चे दाखिल हो चुके थे, समीक्षा हो चुकी थी, मतदान से ठीक पहले तक की सारी प्रक्रिया समाप्त हो चुकी थी। कि अचानक अनिल प्रताप सिंह ने अपने सचिव को आदेश दे दिया कि वे इस मतदान की प्रक्रिया को खत्म कर पूरी प्रक्रिया को निरस्त कर दें।
एक पूर्व यूपी बार कौंसिल अध्यक्ष बताते हैं कि चुनाव प्रक्रिया में चुनाव अधिकारी होते हैं बार के सचिव। अध्यक्ष को इस बारे में किसी भी तरह का कोई अधिकार नहीं होता है। लेकिन अनिल प्रताप सिंह ने ऐसा कर ही डाला, और सचिव ने चुनाव निरस्त करने का आदेश जारी कर दिया। फिर क्या था, मामला सीधे हाईकोर्ट में पहुंचा दिया गया। सुनवाई की दो जजों की बेंच ने, जस्टिस थे तरूण कांत और अग्रवाल। सुनवाई में ही इन जजों ने बार की कार्यशैली पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और निरस्त चुनाव के आदेश को खारिज करते हुए समय पर ही चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया। नये चुनाव में पीआर मौर्या अध्यक्ष के पद पर जीत गये।
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लेकिन जब 25 जुलाई-17 को मौर्या ने अपना नया कार्यभार सम्भाला तो फिर हंगामा खड़ा हो गया। नये पदाधिकारियों ने हल्ला किया कि अनिल प्रताप सिंह और डॉ रामजी यादव ने कार्यकारिणी की बैठक के बिना ही 65 लाख रूपयों का कर्जा विभिन्न लोगों में बांट दिया। इसी बीच यह भी पता चला कि अनियमित रूप से इन दोनों पदाधिकारियों ने 35 लाख रूपयों से भी ज्यादा की रकम अनावश्यक और अराजक मदों में खर्च कर दी हैं।
अब नयी कार्यकारिणी ने उस समय के सचिव डॉ रामजी सिंह यादव को निलम्बित कर दिया और उनका पदभार एक सेवानिवृत्त अपर जिला जज को दे दिया है। नये सचिव पूरे मामलों की जांच भी करेंगे।