: बुद्धि समृद्ध करना चाहें तो शिखंडी पढि़ये : दरअसल, असामान्य यौनप्रवृत्ति कोई आधुनिक या पश्चिमी बात नहीं : हिन्दुत्व की विशाल मौखिक और लिखित परम्पराओं में असामान्य यौनप्रवृत्ति की कई कथाएँ उपलब्ध : शिखण्डी ही नहीं, महादेव और चूडाला जैसे भी चरित्र भी हमारी बौद्धिकता को समृद्ध करते हैं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अभी एक किताब बांच कर निबटा हूं। नाम है:- शिखण्डी। मानव शरीर यानी स्त्री, पुरूष और सामान्य तौर पर हिजड़ा माने जाने वालों के आकार-प्रकार, आचरण, विचार आदि के साथ ही साथ इसमें पौराणिक कथाएं भी दर्ज हैं। जाहिर है कि ज्यादातर बोरिंग, अविश्वसनीय और सूचनाओं का भाण्डार तक सिमट गयी। लेकिन इसके बावजूद यह पढ़ने लायक है। बहुत परिश्रम किया है देवदत्त पट्टनायक ने। शब्दों का चयन भी बहुत अच्छा किया है। इसके मर्म को आप इसके समर्पण-वाक्य से समझ सकते हैं कि, “यह उन सबको समर्पित है जो यहां, वहां और बीच में हैं।”
ऐसा नहीं है कि यह कोई अद्भुत पुस्तक हो, लेकिन इसमें कुछ चीजें वाकई आंख खोल डालने लायक है। मसलन, इसका पहला पन्ना, जिसमें लिखा है:-
“उस देश से सावधान रहें, जहां ब्रह्मचारी पुरूष तय करते हैं कि अच्छा सहवास क्या होता है।”
दरअसल, असामान्य यौनप्रवृत्ति कोई आधुनिक या पश्चिमी बात नहीं है। दो हज़ार वर्षों से भी पुरानी हिन्दुत्व की विशाल मौखिक और लिखित परम्पराओं में असामान्य यौनप्रवृत्ति की कई कथाएँ और उदाहरण पाए जाते हैं। मसलन, महाभारत में शिखण्डी एक करेक्टर दीखता है, जो अपनी पत्नी को सन्तुष्ट करने के लिए पुरुष बना था। या फिर वह महादेव, जो इसलिए स्त्री बने ताकि अपने भक्त के बच्चे को जन्म दे सकें। इतना ही नहीं, हमारे पास चूडाला जैसे भी चरित्र मौजूद हैं, जो अपने पति को ज्ञान देने के लिए पुरुष बनी।
कम से कम भारत में ऐसे करेक्टर हमारे समाज में जहां-तहां खूब दिख जाते हैं। ऐसे विषयों के तौर पर यह हमारे पास हैं, ताकि हम विश्लेषण की प्रकर्ष धारा में खुद को समृद्ध करते रह सकें। यह और ऐसी अनेक कथाएँ इस पुस्तक में प्रस्तुत हैं। दिलचस्प और हृदयस्पर्शी, यहाँ तक कि उद्विग्नता पैदा करने वाली, ये कथाएँ इस बात की साक्षी हैं कि हमारे देश में असामान्य यौनप्रवृत्ति की कितनी पुरानी परम्परा है। देवदत्त पट्टनायक पौराणिक विषयों के जाने माने विशेषज्ञ हैं।
आपको बता दें कि शिखंडी महाभारत का एक पात्र है। महाभारत कथा के अनुसार भीष्म द्वारा अपहृता काशीराज की ज्येष्ठ पुत्री अम्बा का ही दूसरा अवतार शिखंडी के रूप में हुआ था। प्रतिशोध की भावना से उसने शंकर की घोर तपस्या की और उनसे वरदान पाकर महाराज द्रुपद के यहाँ जन्म लिया उसने महाभारत के युद्ध में अपने पिता द्रुपद और भाई धृष्टद्युम्न के साथ पाण्डवों की ओर से युद्ध किया।
शिखंडी के रूप में अंबा का पुनर्जन्म हुआ था। अम्बा काशीराज की पुत्री थी। उसकी दो और बहने थी जिनका नाम अम्बिका और अम्बालिका था।। विवाह योग्य होने पर उसके पिता ने अपनी तीनो पुत्रियों का स्वयंवर रचाया। हस्तिनापुर के संरक्षक भीष्म ने अपने भाइ विचित्रवीर्य के लिए जो हस्तिनापुर का राजा भी था, काशीराज की तीनों पुत्रियों का स्वयंवर से हरण कर लिया। उन तीनों को वे हस्तिनापुर ले गए। वहाँ उन्हें अंबा के किसी और के प्रति आसक्त होने का पता चला। भीष्म ने अम्बा को उसके प्रेमी के पास पहुँचाने का प्रबंध कर दिया किंतु वहां से अंबा तिरस्कृत होकर लौट आइ। अम्बा ने इसका उत्तरदायित्व भीष्म पर डाला और उनसे विवाह करने पर जोर दिया। भीष्म द्वारा आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने की प्रतिज्ञा से बंधे होने का तर्क दिए जाने पर भी वह अपने निश्चय से विचलित नहीं हुई। अंततः अंबा ने प्रतिज्ञा की कि वह एक दिन भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी। इसके लिए उसने घोर तपस्या की। उसका जन्म पुनः एक राजा की पुत्री के रूप में हुआ। पुर्वजन्म की स्मृतियों के कारण अंबा ने पुनः अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए तपस्या आरंभ कर दी। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उसकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया तब अंबा ने शिखंडी के रूप में महाराज द्रुपद की पुत्री के रूप में जन्म लिया।
शिखण्डी का जन्म पंचाल नरेश द्रुपद के घर मूल रूप से एक कन्या के रूप में हुआ था। उसके जन्म के समय एक आकशवाणी हुई की उसका लालन एक पुत्री नहीं वरन एक पुत्र के रूप मे किया जाए। इसलिए शिखंडी का लालन-पालन पुरुष के समान किया गया। उसे युद्धकला का प्रक्षिक्षण दिया गया और कालंतर में उसका विवाह भी कर दिया गया। उसकी विवाह रात्री के दिन उसकी पत्नी ने सत्य का ज्ञान होने पर उसका अपमान किया। आहत शिखंडी ने आत्महत्या का विचार लेकर वह पंचाल से भाग गई। तब एक यक्ष ने उसे बचाया और अपना लिंग परिवर्तन कर अपना पुरुषत्व उसे दे दिया। इस प्रकार शिखंडी एक पुरुष बनकर पंचाल वापस लौट गया और अपनी पत्नी और बच्चों के साथ सुखी वैवाहिक जीवन बिताया। उसकी मृत्यु के पश्चात उसका पुरुषत्व यक्ष को वापस मिल गया।
प्रतिज्ञान पूर्ति और भीष्म का अंत कुरुक्षेत्र के युद्ध में १० वें दिन वह भीष्म के सामने आ गया, लेकिन भीष्म ने उसके रूप में अंबा को पहचान लिया और अपने हथियार रख दिए। और तब अर्जुन ने अंबा के पीछे से उनपर बाणों की बौछर लगा दी और उन्हें बाण शय्या पर लिटा दिया। इस प्रकार अर्जुन द्वारा भीष्म को परास्त किया गया, जिन्हें किसी भी अन्य विधि से परास्त नहीं किया जा सकता था।
लेकिन सच बात तो यह है कि देवदत्त पट्टनायक ने शिखण्डी जैसा एक चरित्र उठाया और उसे विश्लेषित किया है, जिसके चलते यह तब तक उपेक्षित ही रहा यह चरित्र अचानक ही प्रकर्ष तक पहुंच गया।