सर यह गुजारिश है, आप न मानेंगे तो हुक्‍म

मेरा कोना

: चालीस साल पहले जो हिम्‍मत दिखायी थी इस अफसर ने, आज है किसी में वैसा दम : अति पर आमादा केन्‍द्रीय मंत्री का काफिला रोक दिया था उन्‍नाव प्रशासन ने : तब अंसारी और गोपीनाथ दीक्षित के बीच ठनी हुई थी अस्तित्‍व की जंग : लो देख लो बड़ाबाबू की करतूतें- 22 :

कुमार सौवीर

लखनऊ : “यह काफिला क्‍यों रोक दिया है?

सर। आप इससे आगे नहीं जा सकते। धारा 144 लगी हुई है।

लेकिन लोगों को तो पता ही नहीं कि तुमने धारा-144 लागू कर दी है?

सर इसकी तामीला पब्लिक कैसे की जा सकती है? वह तो बतायी जाती है। हां, ब्‍लॉक, थाना वगैरह के नोटिसबोर्ड पर चस्‍पां हो चुकी है।

तुम मुझ पर धारा 144 तामील कर रहे हो?

नहीं सर। आपकी सुरक्षा तो हमारी जिम्‍मेदारी है। इसके लिए हमारे पास पूरी एक कम्‍पनी पीएसी और बाकी पुलिस मौजूद है। लेकिन आपके साथ चल रहे काफिले को हम आगे कैसे आगे जा सकते हैं?

यह हुकुम है तुम्‍हारा या गुजारिश?

नहीं सर। यह गुजारिश है आपसे।

और अगर मैं तुम्‍हारी गुजारिश न मानूं तो?

तो फिर मेरी यही गुजारिश मेरा हुक्‍म हो जाएगा।”

यह किस्‍सा और हुई यह बातचीत करीब चालीस साल पहले की है। तब उन्‍नाव में केंद्रीय उद्योग राज्‍य मंत्री हुआ करते थे जियार्उरहमान अंसारी और यूपी में सहकारिता मंत्री थे गोपीनाथ दीक्षित। अंसारी पुरवा से सांसद थे, जबकि दीक्षित बांगरमऊं से विधायक। दोनों में खूब दुश्‍मनी थी।

सन-76 में सफीपुर के एक बाजार में बने एक नये ब्‍लॉक आफिस का उद्घाटन होना था। गोपीनाथ दीक्षित को बतौर सहकारिता मंत्री वहां आना था। सभा के तौर पर। दरख्‍वास्‍त पड़ी, तो उसे मंजूर कर लिया गया। लेकिन इसी बीच केंद्रीय मंत्री अंसारी के भी आने की खबर मिली। यह कार्यक्रम अलग-अलग होने थे, लेकिन वक्‍त एक ही और स्‍थान भी एक। यानी हंगामा की आशंका। प्रशासन के हाथ-पांव फूल गये।

लखनऊ तक हड़कम्‍प मच गया। निदान खोजने की कोशिशें शुरू हो गयीं। मनाया-फुसलाने की कवायदें भी परवान चढ़ने लगीं। अचानक गोपीनाथ दीक्षित को समझ में आ गया और उन्‍होंने अपना दौरा निरस्‍त कर दिया। शर्त यह कि अब कोई भी कार्यक्रम उस दिन वहां नहीं होगा। लेकिन अब अंसारी जी अड़े हुए थे। मानने को तैयार नहीं। यह बड़ी दिक्‍कत की बात थी।

आखिरकार प्रशासन ने इस मामले पर कड़ा रवैया अपनाने का फैसला किया। भारी पुलिस बल और एक कम्‍पनी पीएसी के साथ बांगरमऊ के एसडीएम को मौके पर भेजा गया जब अंसारी का काफिला रवाना हो गया। एसडीएम ने अपनी सारी गाडि़यां उस नहर की संकरी सड़क पर लगा दिया, जहां से अंसारी के काफिले को आना था। अचानक हुई इस रोकटोक से हंगामा हो गया। लेकिन लम्‍बी नोंकझोक के बाद अंसारी को वापस आना ही पड़ा।

लेकिन अगले ही दिन पूरा उन्‍नाव प्रशासन को लखनऊ पहुंचने का हुक्‍म हुआ। पेशी हुई आईएसएस मुख्‍य सचिव मकबूट बट के सामने। मकबूल बट ने बनावटी झिड़की के साथ बातचीत की, कहा कि अगर तुम्‍हें यही करना था तो फिर उस मंत्री को जेल में ही भेज देते।

फिर हंसे, बोले:- अब तुम्‍हारी बारी है। बोलो, कहां जाओगे, फैजाबाद भेज दूं।

चूंकि इस अफसर की पत्‍नी मातृत्‍व-भाव में लखनऊ के एक मैटरनिटी होम में थीं, इसलिए तय हुआ कि यह सम्‍मानजनक तैनाती बाराबंकी में होगी। (क्रमश)

यूपी की ब्यूरोक्रेसी से जुड़ी खबरों को अगर देखना-पढ़ना चाहें तो कृपया इसे क्लिक करें

बड़ा बाबू

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *