: चुनाव-परिणाम इस बार भाजपा की गोदी में आने जा रहा : मोदीज्म ने की वरिष्ठों और कार्यकर्ताओं की भारी उपेक्षा : सपा ने अराजक फैलायी, भाजपा ने मुख्तार अंसारी को क्लीन-चिट दे डाली : अब रोपी जाएगी भाजपा में अहंकारवाद की नयी अमरबेल :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अब हम एक ऐसे मोड़ पर पहुंच चुके हैं, जहां बस पांच-छह घंटों के भीतर ही उत्तर प्रदेश की सियासत का ताज किसी न किसी राजनीतिक दल के सिर पर पहनाया जाना है। ऐसी हालत में अब जरूरत इस बात की है कि हम उन कारणों पर भी एक नजर डाल लें जिनके चलते यूपी की राजनीति ने किसी सांप की तरह लहर ले ली। बिना किसी खास दम के ही आ गया यह पेंच-ओ-खम। सच बात तो यही है कि यह चुनाव बेमिसाल है, और उसके बेहद गम्भीर परिणाम निकलने हैं। जाहिर है कि आम आदमी को यह चुनाव-परिणाम गहरे तक प्रभावित कर जाएगा।
कहने की जरूरत नहीं कि यह चुनाव-परिणाम इस बार भाजपा की गोदी में आने जा रहा है। लेकिन खास बात यह है कि भाजपा ने इस चुनाव के लिए कोई भी रणनीति नहीं बनायी। बस, फसल ही काटने में जुटे रहे हैं भाजपा के कर्णधार। बिना कुछ किये-धरे ही बसपा और सपा ने जो पैंतरे चले थे, उसकी खाद-पानी ने 10 साल में खासी लहलहाती फसल तैयार कर ली। जो कुछ बचा था, उसे किसी कीटनाशक स्प्रे की तरह पहले राज्यपाल रामनाइक ने छिड़का, और कुछ हाईकोर्ट के फैसलों ने यूपी में भाजपा की जड़ों को मजबूती दे डाली।
किसी को सूखी रोटी भी सुकून से खाने का मौका मिल जाए, वह कोई भी शख्स उसे अपनी किस्मत मानता है। लेकिन कानून-व्यवस्था के सवाल पर समाजवादी पार्टी ने जो-जो करतूतें कीं, उसने आम आदमी को यूपी में सांस लेने तक में मुश्किल आ गयी। उसके पहले मायावती की सरकार ने कानून-व्यवस्था पर तो सख्त नजर रखी, लेकिन पत्थरी कार्यशैली से अवाम बिदकने लगा। नतीजा यह कि बसपा को सपा ने रौंद डाला। मगर सपा ने सत्ता में आने के बाद से ही अपराध के विस्तार को अपनी प्राथमिकता रखी, और अपराधियों के लिए यूपी को नर्सरी में तब्दील कर दिया। आम आदमी यह मानता है कि अखिलेश सरकार ने आगरा एक्सप्रेस-से जैसी अनावश्यक योजना केवल इसलिए शुरू की, ताकि सैफई तक यादव-खानदान की सरल पहुंच हो सके। आम आदमी को इससे कोई भी लाभ नहीं मिलने वाला है। हां, अमीरों की लॉटरी भले ही खुल जाए।
इसके अलावा लखनऊ की गोमती नदी को रिवर-फ्रंट की तौर पर विकसित करने की सपाई कवायद भी निहायत बेहूदी साबित हुई। यह योजना गांधीनगर में नर्मदा नदी की तर्ज पर बनायी गयी थी, लेकिन लखनऊ में इसके चलते गोमती का दम घुटने लगा, पानी में सड़ांध बढ़ी, और प्राकृतिक स्रोतों को हमेशा-हमेशा के लिए इस ने तबाह कर डाला। बाकी कैंसर इंस्टीच्यूट और स्टेडियम जैसी योजनाओं के लिए आम आदमी के लिए तनिक भी लाभदायक नहीं बन पायीं।
रही बात राजनीति को निजी प्रापर्टी में तब्दील करने की कवायद, तो इसमें भी सपा अव्वल रही। बाप-बेटे, बहू, चाचा, भाई, सौत, सौतेला भाई में सरेआम झोंटा-नुचव्वर करने जैसी निहायत घटिया हरकतों ने तो समाजवादी पार्टी को हमेशा-हमेशा के लिए कलंकित कर दिया।
इसका नुकसान सपा को तो बेहद गम्भीर होने वाला है। साथ ही साथ, अखिलेश यादव ने खुद के साथ ही राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को भी जमकर किसी कुशल धोबी की तरह छियो-राम, छियो-राम की आवाज निकाल-निकाल कर खूब धोया-पटका और निचो़ड़ डाला। इस बार के नतीजे साबित करेंगे कि 2019 के चुनाव में कांग्रेस यूपी में क्या करेगी। बसपा और उसकी मुखिया मायावती को तो पहले सीबीआई ने, और उसके बाद नोटबंदी ने बुरी तरह दहला दिया।
लेकिन हैरत की बात रही कि अपने पूरे पांच साल की सरकार में अखिलेश ने अपराधियों को खूब प्रश्रय दिया, बलात्कारियों-हत्यारों को खुली छूट दी, लेकिन मुख्तार अंसारी की शिवपाल और अमर सिंह की अटूट दोस्ती में पलीता लगाने के तिए खुद को अपराध-विरोधी होने का ऐलान कर दिया। लेकिन आज मतगणना के नतीजे साबित करेंगे कि अखिेलेश की यह झूठी कहानी को आम आदमी ने किस तरह खारिज किया है।
इसका लाभ सिर्फ और सिर्फ भाजपा को ही मिला। बिना कुछ किये धरे हुए भी। इतिहास गवाह है कि पिछले पांच बरसों में भाजपा ने एक भी आंदोलन नहीं छेड़ा। सड़क पर उतरने का हौसला किसी भी भाजपा नेता ने नहीं दिखाया। इतना ही नहीं, कोई बड़ा बयान तक जारी नहीं किया। सच बात तो यह है कि सपा की फैलायी सड़ांध में भाजपा अपने लिए उर्वर जमीन मानती रही। लेकिन ऐन वक्त पर इसी भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को लात मार कर किनारा किया और ज्यादातर ऐसे लोगों को टिकट दे दिया, जो दूसरी पार्टी से पाला-बदल कर आये थे। अपराधी चेहरे वालों को भी भाजपा ने खूब टिकट बांट डाले। बनारस में श्यामदेव राय चौधरी को किनारे-ठिकाने लगाने की कवायद ने साबित कर दिया कि भाजपा-नेतृत्व में राजनीतिक समझ नहीं, बल्कि उसके सिर पर सिर्फ मोदीज्म का कीड़ा ही कुलबुलाता रहा।
इतना ही नहीं, खुद को शुचिता और सच बोलने वाली भाजपा ने जानबूझ कर ही मुख्तार अंसारी के बेटे की जीत सुनिश्चित कराने के लिए भाजपा ने उसके खिलाफ अपना कोई टिकट तक नहीं दिया।
इसके बावजूद कि आज यूपी का ताज अब भाजपा के सिर पर जाने की तैयारी में है, लेकिन उपरोक्त घटनाएं और तर्क कम से कम इतना तो साबित कर ही रहे हैं कि भाजपा की यह जीत सिरे से एक कलंकित जीत ही होगी। क्योंकि उसके बाद से अब भाजपा में अहंकारवाद की नयी अमरबेल को रोपने की प्रक्रिया शुरू होने वाली होगी।