कचेहरी में कुटम्‍मस: यह बेर्इमानी वाली रोटी का संघर्ष है मेरी जान

सैड सांग

: जो पढ़-लिख गया, वह अफसर बन कर बेईमान हो गया। और जो कम पढ़ा, वह झपटमार है : वकीलों की जमात की शक्‍ल पर अब विद्वता नहीं, किसी शातिर हमलावर का मुखौटा दीखता है : कई पीसीएस अफसर तो भरी कोर्ट में बेईमानी करने पर आमादा रहते हैं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : अफसरों का दावा है कि वकीलों की बेईमानी और भ्रष्‍टाचार को रोकने के लिए जब एसडीएम ने हस्‍तक्षेप किया तो वकीलों ने उन पर हमला बोल दिया। आक्रामक वकीलों के झुण्‍ड ने कचेहरी में तोड़-फोड़ कर डाली, और जब  एसडीएम को बचाने के लिए कचेहरी में मौजूद एडीएम पहुंचे, तो वकीलों ने एक महिला समेत तीन अपर जिला मैजिस्‍ट्रेट को जमकर पीट दिया। उधर वकीलों का आरोप है कि कचेहरी में अफसर से लेकर चपरासी तक के सारे लोग केवल घूस की ही भाषा बोलते हैं। इन वकीलों का कहना है कि जब ऐसे अफसरों की बेईमानी पर अंकुश लगाना शुरू किया गया, तो उन भ्रष्‍ट अफसरों-कर्मचारियों ने न्‍याय-प्रिय वकीलों को जमकर पीट दिया। इतना ही नहीं, इन अफसरों ने इनमें से कुछ वकीलों के मोबाइल फोन छीन लिये और तीन सौ रूपया भी छीन लिया।

यह आरोप-प्रत्‍यारोप किसी झोंपड़पट्टी में झगड़ते लोगों या शराबियों के बीच नहीं, बल्कि समाज में अत्‍यन्‍त सम्‍मानित माने जाने वाले आभिजात्‍य समाज से सम्‍बद्ध लोगों में चल रहा है। अब दोनों ही एक-दूसरे के खिलाफ अपनी तलवारें-नेजे चमका रहे हैं। दोनों ही धमकी दे रहे हैं कि इस बार तो आर-पार होगा। चल रहा है घमासान और कुकुरझौंझौं। दोनों ने ही एक-दूसरे के खिलाफ मुकदमे दर्ज कर दिये हैं। वकील कहते हैं कि वे अदालतों में न्‍यायिक पारदर्शिता स्‍थापित करने के लिए समर्पित हैं, और अफसर कहते हैं कि जब तक उपद्रवी वकीलों पर सख्‍त कार्रवाई नहीं होगी, वे शांत नहीं होंगे और कलमबंद हड़ताल करेंगे। यह हड़ताल कल सोमवार, यानी 19 दिसम्‍बर से शुरू होगी।

लेकिन सच तो यही है कि यह पूरा प्रकरण बेहद शर्मनाक है। इन दोनों ही समाजों के बीच ऐसे-ऐसे द्वीप-महाद्वीप बन चुके हैं, जहां अलग-अलग नैतिकता और अनैतिकता के स्‍तम्‍भ स्‍थापित होते जा रहे हैं। अभी 30-35 बरस पहले तक इन दोनों ही समाजों में अपने पेशे और दायित्‍वों को लेकर एक निहायत गम्‍भीरता का माहौल बना रहता था। तब इक्‍का-दुक्‍का शख्‍स ही बेईमान हुआ करता था, और जो बेईमान होता था उसे सभी लोग सरेआम गरियाते रहते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब जो बेईमान नहीं है, वह मूर्ख माना जाता है। इतना बड़ा मूर्ख, जिसे बेईमानी करने की तमीज तक नहीं होती। सत्‍य मेव जयते नामक एक टीवी सीरियल में एक सवाल उठाया गया कि जब कोई किसी को भ्रष्‍ट कहता है तो आरोपित व्‍यक्ति उसका विरोध नहीं करता कि, नहीं नहीं मैं बेईमान नहीं हूं। बल्कि पलट कर सवाल दाग देता है कि क्‍या तुम बेर्इमान नहीं हो।

कुछ भी हो, इस घटना ने इतना तो मौका दे दिया है कि इन दोनों की करतूतों का खुलासा कर दिया जाए।

लखनऊ की एक एडीएम सन्‍ध्‍या श्रीवास्‍तव की चेतावनी है कि अब ऐसे माहौल में नौकरी कर पाना पीसीएस अफसरों के वश में नहीं है। मेरी बिटिया डॉट कॉम की टीम इस एडीएम सन्‍ध्‍या श्रीवास्‍तव समेत इस हादसे से दुखी पीसीएस अफसरों के आक्रोश को समझ रही है। लेकिन क्‍या यही अफसर और वकील लोग आम आदमी की पीड़ा को समझने की कोशिश कर पायेंगे। कोर्ट में वकीलों की हरकतों से न जाने कितने वादकारी कचेहरी से छोड़ अपना मामला भगवान के सहारे कर घर वापस चले जाते हैं। जो अडिग होते हैं, उन्‍हें बात-बात पर अपनी जेबें ढीली करनी पड़ती हैं। इन्‍हीं वकीलों में से बीच बैठे काला कोट पहले लोग जजों-मैजिस्‍ट्रेटों के बीच डील कराते हैं और पूरा मामला अदालत से बाहर सुलटाने के लिए भारी रकम वसूल लेते हैं। यही वकील वकालतनामा प्रपत्र के नाम पर पूरे प्रदेश में अलग-अलग रकम वसूलते हैं। तारीख के लिए पेशकार को वादी की जेब से नोट निकालते हैं, नकल हासिल करने के लिए बाबू की जेब गरम करते हैं। फाइलों में फर्जी कागजों से पूरा मामला इधर-उधर करवा लेते हैं। और हैरत की बात है कि जो खुद को बेहद संजीदा और वकालत के प्रति समर्पित होने का दावा करते हैं, वे भी उन वकीलों की हरकतों पर चूं तक नहीं बोलते।

अब देख लीजिए अफसरों की करतूतें। आप अपना कोई काम सीधे लेकर किसी भी मैजिस्‍ट्रेट के पास पहुंचिये, वह सीधे बोलेगा कि तुम्‍हारा वकील कहां है। यानी पीठासीन अधिकारी बिना वकील के किसी भी आदमी की अर्जी नहीं सुनेगा। दरअसल, यह हालत अफसर और वकील के पाप-जनित गंठजोड़ की प्रतीक है, जिसे तोड़ने की कल्‍पना न वकील करता है और न ही अधिकारी। स्‍पष्‍ट कहा जाए तो इस में वादकारी की जेब खंगालने की साजिश होती है। जमीन का भू-प्रयोग बदलवाने के लिए एक सहज प्रक्रिया है, जिसे कोई भी व्‍यक्ति कर सकता है। लेकिन इस प्रक्रिया को शुरू करने की पहली सीढ़ी न्‍यूनतम पांच हजार रूपयों से शुरू होती है। यही हालत है दाखिल-खारिज की। यह काम केवल एक दरख्‍वास्‍त से हो सकता है, लेकिन इसमें कम से कम पांच हजार रूपयों का खर्चा बता दिया जाता है। आप खुद जाएंगे तो आपको महीनों तक केवल इस बात पर दौड़ाया जाएगा कि आज अफसर नहीं है, कल फाइल नहीं मिल पा रही है, पेशकार बहुत बिजी है, साहब दौरा करने गये है, एसडीएम साहब मीटिंग में है, वगैरह-वगैरह। जाहिर है कि आपके हौसले इतने में ही पस्‍त हो जाएंगे। और दौड़-भाग में इतना खर्चा हो जाएगा कि आइंदा आप बिना वकील के कचेहरी नहीं पहुंच सकेंगे।

यह क्‍या है। क्‍या इसके लिए अफसरों की बेईमानी साबित नहीं होती, जो वकीलों की मिलीभगत से जन्‍मी होती है। अफसर खुद को पाक-साफ दिखाना चाहता है, और पैसा भी खूब कमाना चाहता है। इसलिए वह वकीलों के कांधे पर बंदूक रख कर आम वादी को लूटता है। दोनों मिल कर वादी का जीना हराम कर देते हैं। अफसर अपनी लूट में अपने अधीनस्‍थ कर्मचारियों को भी शामिल कर लेता है।

यूपी के एक वरिष्‍ठ अधिकारी बताते हैं कि सच बात तो यही है कि अफसर का चरित्र अब बेहद शर्मनाक, भ्रष्‍ट ओर बेईमान बन चुका है। बेईमान तो वकील भी है, लेकिन अफसर वह शातिर भी है। अफसर पढ़ा-लिखा होता है, पढ़ाई में तेज होता है, और इसी कारण सरकारी नौकरी में अफसर हो जाता है। उसके बाद अधिकांश अफसर पाप की कमाई करने में जुट जाते है। ऐसा अफसर खुल कर बेईमानी करता है। बात-बात पर रूपया वसूलता है। लखनऊ में अपर नगर आयुक्‍त रह चुके पीसीएस अफसर नरेंद्र नाथ पाण्‍डेय के बारे में तो खूब कुख्‍याति थी वे एनएन पाण्‍डेय नहीं, नगद नारायण पाण्‍डेय है। अपनी बेईमानी पर खुली चर्चा करने पर वे हो-हो हो-हो करके हंसते थे। और तो और, जौनपुर के एक एडीएम है उमाकान्‍त त्रिपाठी। उनके बारे में तो खासी कुख्‍याति है कि अपनी फाइलें पेशकार के हाथ में नहीं लगाने देते हैं। बल्कि अपने पेशकार का काम अपने एक करीबी को कुर्सी पर बिठा कर सम्‍पन्‍न कराते हैं। ऐसे में जाहिर है कि एडीएम साहब की सारी डील वह तथाकथित और फर्जी पेशकार के माध्‍यम से ही होती है। इस एडीएम की यह शोहरत पूरे जिले में खासी कुख्‍यात है, लेकिन डीएम का मुंहलगा होने के चलते एडीएम का बाल का बांका तक नहीं हो पाता। इस हादसे को एक वकील ने चुपके से अपने मोबाइल से शूट कर प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट काम को भेजा था। उस वीडियो को आप देखना चाहें तो इस लिंक पर क्लिक कीजिएगा:- मामला डील का: पेशकार की कुर्सी दलाल को थमा देते हैं आला अफसर

उधर वकील कई प्रतियोगी परीक्षाओं से असफल होने के बाद जब वकालत की डिग्री लेकर अपना भविष्‍य नये तरीके से संजोने की कोशिश करता है, तो वहां पीठासीन अफसरों की लूट से उसका साबका पड़ता है। हैरत की बात नहीं कि अपनी रोटी कमाने अदालत में वकालत की जमाने आने वाले युवक को शॉर्ट-कट मिल जाता है। ऐसे में वे अपने हिस्‍से में ज्‍यादा से ज्‍यादा रोटी हासिल करना चाहते हैं। बिना यह देखे-बूझे कि यह रोटी नैतिक है अथवा अनैतिक। बस उसे एक जुनून हो जाता है कि अगर अफसर-कर्मचारी इतनी बेईमानी कर सकते हैं तो वह वकील क्‍यों नहीं। आखिर वकील तो अदालत का स्‍थाई बाशिंदा है, जबकि अफसर तो उड़ती चिडि़या है, कभी उस डाल तो इस डाल।

ऐसे में रोटी का झगड़ा शुरू हो जाता है। कभी अफसर से मिलजुल कर, और जब नहीं हो पाता है तो छीन कर या फरेब के साथ।

लखनऊ के जिलाधिकारी कार्यालय में शुक्रवार को जो शर्मनाक हादसा हुआ, उसके पीछे यह कलंकित रोटी का संघर्ष ही है मेरी जान।

प्रमुख समाचार पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम इस मामले पर लगातार हस्‍तक्षेप करता रहेगा। इससे जुड़ी खबरों को देखने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:- वाह अदालत, आह अदालत

यूपी के अफसरों की करतूतों को अगर देखना-समझना चाहते हों तो कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:- लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें

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