: अभद्र और आपराधिक चरित्र वाले नेताओं की कर्म-भूमि है गोंडा : गुण्डागर्दी के नाम न चढ़ जाए घाघरा नदी की कटान : बाढ़ सिर पर, काम होने की सम्भावनाएं लापता, 65 करोड़ के लटके काम की जिम्मेदारी कौन लेगा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : घाघरा नदी के तेवरों का नाम सुनते ही अच्छे-अच्छों की रूह कांप उठती है। उसकी भयावह लहरों द्वारा फैलायी जा सकती तबाही से प्रशासन और सरकार के छक्के छूट जाते हैं। उससे निपटने के लिए महीनों नहीं, बरसों तक की तैयारी भी कम मानी जाती समझी जाती रही है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। इस बार घाघरा की तबाही की आशंकाओं को ताक पर रखने की तैयारी कर ली गयी है। बाढ़ की विभीषिका को थामने की तैयारियों को आम आदमी का रहनुमा समझे जाने वाले गोंडा के उन नेताओं ने तबाह करने का ताना-बाना बुन डाला है। वजह थी करीब 68 करोड़ रूपयों की बंदरबांट। मामला जब अपने हिसाब से नहीं सुलटा पाया तो पूरा ठीकरा सिंचाई विभाग के इंजीनियरों के माथे पर फोड़ दिया गया है।
अब खतरा इन नेताओं को नहीं, बल्कि आम आदमी के जीवन और उनकी सम्पत्ति पर मंडराने लगा है। नदी की कछार यानी बाढ़-क्षेत्र में रहने वाले लोगों को आशंका इस बात है कि आखिर अब क्या होगा। वजह यह कि अगर समय से घाघरा नदी के तटबंध की मरम्मत का काम शुरू नहीं हुआ, तो बाढ़ की हालत में घाघरा नदी की विनाशकारी तीव्र धाराओं को थाम पाना मुमकिन नहीं होगा। बाढ़ की आशंका से निपटने के लिए सिर्फ दो महीना ही बचा है, और जो तैयारियां होनी चाहिए थीं, उसे निरस्त किया जा चुका है।
अब जरा खतरा की बात समझ लीजिए। गोंडा के एल्गिन ब्रिज से सटे चरसारी तटबंध के करीब 11 किलोमीटर तक की दूरी को सबसे ज्यादा खतरा महसूस किया गया है। वजह यह कि इस बांध की हालत काफी खराब हो चुकी है। सिंचाई विभाग के पंद्रहवें वृत्त के अधीक्षण अभियंता कार्यालय ने इस पतली हालत को पहचाना और उसके सुधार की योजना तैयार की। इसके तहत बोल्डर पिचिंग और नियो बैग का काम प्रस्तावित हुआ, जिसमें बांध को सुरक्षित करने के लिए वहां भारी पत्थरों को जमाने और इन पत्थरों को एक-दूसरे से जोड़ने की योजना थी। इस मरम्मत पर 68 करोड़ रूपयों के खर्च का अनुमान लगाया गया था। इसके लिए सिंचाई विभाग ने ई-टेंडरिंग की बिड-सबमिशन नोटिस प्रमुख अखबारों में प्रकाशित करायी, जिसके तहत 16 से 21 अप्रैल-17 तक टेंडर आमंत्रित किये गये थे। नोटिस के तहत इन टेंडरों को 22 अप्रैल को खोजा जाना था।
गोंडा वाकई गजब जिला है। लखनऊ से जोड़ने वाली सड़क करीब दो साल तक बर्बाद रही, वाहन दूसरे लम्बे रास्ते तक रेंकते रहे, लेकिन किसी भी नेता की नाक पर बैठी एक भी मक्खी नहीं उड़ायी जा सकी। सच बात यह है कि विकास का कोई भी असर पिछले साठ साल में पड़ा ही नहीं। जस का तस ही ठस बैठा हुआ है यह गोंडा।
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खबर है कि इस काम को करने को इच्छुक कई फर्में और कम्पनियां आगे आयीं, और उन्होंने ई-टेंडर के तहत अपना प्रस्ताव भेज दिया। लेकिन जब 22 तारीख को यह लोग गोंडा में अधीक्षण अभियंता कार्यालय पर पहुंचे, तो पता चला कि यह टेंडर ही निरस्त कर दिया गया है। जाहिर है कि अचानक हुई इस निरस्तीकरण से आमंत्रित फर्मों के लोग भौंचक्का रह गये।
अब हंगामा करने की बारी थी फर्मों-कम्पनियों की। लेकिन इसके पहले कि कुछ बवाल शुरू होता, एक खबर से सभी लोगों की बोलती बंद हो गयी। पता चला कि इन ठेकों को हासिल करने में इच्छुक एक बड़े नेताओं ने इस कार्रवाई को ठप कराने के लिए ऊपरी दबाव डाल दिया था। एक फर्म के प्रतिनिधि ने अपना नाम न प्रकाशित करने के अनुरोध करते हुए बताया कि यह करतूत गोंडा के ही एक बड़े दबंग नेता की है। यह नेता की नजर इस ठेके पर पड़ी थी, लेकिन चूंकि इसी बीच ई-टेंडर की व्यवस्था हो गयी, तो इस नेता के सपने बिखरने लगे। बाद में इस नेता के लोगों ने बाकी फर्मों को बुला कर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि यह ठेके मैनेज कर लिये जाएं। लेकिन इन फर्मों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
इससे बेहाल इस नेता ने लखनऊ में बैठे सरकार और शासन-प्रशासन पर दबाव बनाया और नतीजा यह हुआ कि एल्गिन ब्रिज से सटे खतरनाक चरसारी बांध की सुरक्षा की सारी प्लानिंग किर्च-किर्च बिखेर दी गयीं।
सिंचाई विभाग के अधीक्षण अभियंता कार्यालय और सम्बन्धित अधिशासी अभियंता कार्यालय से जब प्रमुख न्यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम ने सम्पर्क किया, तो इस बात की तो तस्दीक की गयी, लेकिन कोई भी अधिकारी इस बात की जानकारी देने की स्थिति में नहीं दिखा कि निरस्त किये गये इस निविदा को अब भविष्य में कब प्रकाशित किया जाएगा।
आपको बता दें कि दक्षिणी तिब्बत के ऊंचे पर्वत हिमालय शिखरों से निकली घाघरा (गोगरा या करनाली) उत्तरी भारत में बहनेवाली एक नदी है। शुरूआत में कर्णाली नदी का भी नाम इसी घाघरा का है। करीब एक हजार किलोमीटर लम्बी नदी लखीमपुर खीरी, बहराइच, सीतापुर, गोंडा, फैजाबाद, अयोध्या, अम्बेदकर, राजेसुल्तानपुर, दोहरी घाट, बलिया और छपरा आदि जिलों से गुजरती है। लेकिन बहराइच और गोंडा में इसका तांडव सबसे ज्यादा होता है। जहां एक जरा सी भी लहर से सैकड़ों गांव बह जाते हैं, भयावह कटान होती है और हजारों किसान बेघर हो जाते हैं। जन-धन की भी भारी क्षति हर साल होती है।
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