: खुद ही आत्मसमर्पण करने गया था, मौके से क्यों भागता : गाड़ी पलटने पर सारे लोग अर्धचेतना में चले गये, सिवाय विकास दुबे के : आठ दिन का भूखा-प्यासा विकास भागा, यह झूठी कहानी मत सुनाओ :
कुमार सौवीर / आशुतोष शुक्ला
लखनऊ / कानपुर : दो जुलाई की तड़के भोर में जो कहानी शुरू हुई थी, वह दस जुलाई को शाम खत्म हो गयी। लेकिन इसके बाद तो सवालों का बवंडर शुरू हो गया है। सबसे बड़ा सवाल तो इस बात पर है कि विकास दुबे को एनकाउंटर में मौत के घाट उतारने वाली पुलिस की कहानी में वाकई कोई दम-खम है भी, या फिर केवल हवा-हवाई मामला है। यह तो हर एक शख्स मान रहा है कि विकास एक दुर्दान्त अपराधी था। लेकिन उसकी इस तरह हुई मौत साबित करती है कि हमारे प्रदेश और समाज में अब सिस्टम में जबर्दस्त दीमक लग गयी है। वरना बरसों पहले ऑपरेशन के दौरान अपने पैर में रॉड के सहारे आजीवन लंगड़ा बन कर जीवन व्यतीत कर रहा विकास दुबे आठ दिन तक भूखा-प्यासा रहा, लेकिन कार पलटते ही इतनी तेजी से भागा कि पीटी उषा भी शर्मा जाएं।
विकास दुबे की मौत के बाद सवालों की झड़ी लगी है। पहला बड़ा सवाल है कि इतने बड़े कुख्यात अपराधी को पकडऩे के बाद पुलिस ने उसके हाथ को खुला क्यों छोड़ा ? जबकि पुलिस खुद ही कई बार यह कुबूल कर चुकी है कि विकास दुबे दरिंदा था। ऐसी हालत में तो पुलिस को अतिरिक्त सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिए था। इसके बावजूद पुलिस ने यह चूक अनजाने में की, या फिर एक साजिश के तहत ?
विकास दूबे के एक पैर में आपरेशन के बाद रॉड पड़ी थी। भागना तो दूर की बात है, उसे तो थोड़ा चलने में भी काफी दिक्कत होती थी। उज्जैन के महाकाल मंदिर परिसर से आते समय जो वीडियो सामने में आये हैं, उसमें साफ दिख रहा है कि विकास उस समय ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। फिर गाड़ी पलटने के बाद हथियार छीनकर भागा कैसे ? क्या एक कुख्यात अपराधी को लेने गए ड्राइवर की गाड़ी का ड्राइवर इस कदर अनाड़ी था ? विकास दूबे दो पुलिस के जवानों के बीच में बैठा था, फिर यह कैसे संभव हो पाया कि सब मूर्छित हुए और विकास पर इसका असर नहीं हुआ ?
विकास महाकाल मंदिर में सुबह सात बजे दाखिल हुआ था। दो घंटे बाद गिरफ्तार हुआ। पूरे दिन मप्र पुलिस अज्ञात स्थान पर पूछताछ करती रही। बाद में यूपी एसटीएफ के अफसरों ने की। विकास रात भर पुलिस टीम के साथ गाड़ी में यात्रा करता रहा और अंत में गाड़ी पलटने पर कच्चे रास्ते पर भाग गया ? जिन परिस्थितियों में पुलिस गाड़ी पलटने की बात कर रही है, क्या वह संभव है ? नेशनल हाईवे पर गाय-सांडों के झुंड आने की कहानी तो योगी की गोशाला योजना की धज्जियां उड़ा रही है। टाटा सफारी स्टार्म में बैठा विकास अचानक महेंद्रा टीयूवी पर कब और कैसे सवार हो गया, वह भी उसी कार में जो आगे बढ़ते ही पलट गयी ? क्या यह सच नहीं है कि महेंद्रा टीयूवी हल्की होने के चलते आसानी से फिसल सकती है, जबकि टाटा सफारी स्टार्म भारी गाड़ी है, जिसका फिसलना बहुत आसान नहीं होता ?
एडीजी प्रशांत कुमार ने प्रेसवार्ता में पत्रकारों के सवाल क्यों नहीं लिए ? पुलिस की सफाई के अनुसार पिस्टल लेकर कच्चे रास्ते पर भागे विकास का पीछा करते हुए दूसरी गाड़ी के पुलिस अफसर काफी करीब तक गए। उसे जिंदा पकडऩे की कोशिश की, लेकिन उसने गोलियों की बौछार शुरू कर दी। क्या पुलिस की आपरेशनल क्षमता इतनी कमजोर थी कि उसने उसके पिस्टल की मैगजीन खाली होने का इंतजार उचित नहीं समझा ?
विकास तो भाग रहा था न, फिर पुलिस की गोली उसकी पीठ के बजाय उसके सीने पर कैसे धंसी ? क्या गोली मारने वाला पहले ही इस इंतजार में था कि अब गाड़ी यहां पलटेगी, फिर विकास भागेगा, और उसके बाद हम उसे अपना निशाना बना लेंगे ? पुलिस की विकास को लेकर आ रही गाड़ियों के बीच में कितनी दूरी का अंतर था ?
दरअसल, कितने ही गहरे राज़ छुपे थे विकास दुबे के पास, जिनके खुलते ही भूचाल आ जाता। ऐसे में नेता, अफसर और पुलिस की तिकड़ी के पास इकलौता रास्ता ही बचा था कि विकास दुबे को मार डाला जाए।
और यही हुआ।
अपनी असफलता को दूसरे की मौत में तब्दील करने में माहिर यूपी पुलिस। इसके बावजूद यूपी पुलिस चाहती है कि हम उस पर यकीन कर लिया करें।