एमपी गजब है। “गोपनीय रिपोर्ट” पिछवाड़े में रखता है आईजी

दोलत्ती


: उज्‍जैन के पूर्व आईजी को परिवहन आयुक्‍त से हटाया गया : बेहद बेशर्म बयान तो परिवहन मंत्री का है। बोले, आईजी ले रहे थे कामकाज की रिपोर्ट :
दोलत्‍ती संवाददाता
उज्‍जैन : यूपी और मध्‍य प्रदेश के आईजी टाइप आला पुलिस अफसरों में एक बेसिक फर्क होता है। यूपी के आईजी लोगों के बारे में खुली चर्चा है कि वे गोपनीय सूचनाएं आफिस में रखते हैं, जबकि ऊपरी कमाई घर में और अपने बटुआ में रखते हैं। लेकिन एमपी की बात ही निराली है। वह तो अजब है, गजब है। वहां के आईजी लोग घूस की रकम को “गोपनीय रिपोर्ट” जैसे पवित्र शब्‍दों से विभूषित करते हैं, और ऐसी हर “गोपनीय रिपोर्ट” को लपक कर अपने चूतड़ के नीचे दबोच लेते हैं। उधर ऐसी “गोपनीय रिपोर्ट” हासिल करते वीडियो के वायरल होने पर यूपी के मंत्री लोग बगलें झांकने लगते हैं। कुछ इस अंदाज में कि मानो उन्‍होंने कुछ न तो सुना, और न ही देखा। मगर मध्‍य प्रदेश के मंत्री लोग आईजी के साथ कदमताल करना शुरू कर देते हैं। उन्‍हें पता होता है कि एमपी में नेता का मतलब झंड होता है, जबकि असली माई-बाप तो आईजी जैसा अफसर ही होता है। ऐसी “गोपनीय रिपोर्ट” को रिसीव करने वाले हर मामले को मंत्री लोग साफ जवाब दे देते हैं कि अमुक अफसर उस वक्‍त “गोपनीय रिपोर्ट” एकत्र कर रहे थे।
आपको बता दें कि एमपी के अपर पुलिस महानिदेशक की हैसियत वाले प्रदेश के परिवहन आयुक्‍त वी मधुकुमार को अपने अधीनस्‍थों से लिफाफा लपकते हुए एक वीडियो वायरल हुआ, जिसके बाद गृह विभाग ने उन्हें पद से हटा दिया है। लेकिन इसके बावजूद अब तर्क यह दिया जा रहा है कि यह वीडियो 2016 का है जो आगर मालवा के सर्किट हाउस का है, जब मधुकुमार उज्जैन के आईजी थे। वीडियो में मधुकुमार अपने अधीनस्‍थ पुलिसकर्मियों से लिफाफा लेकर पहले तो अपने चूतड़ में दबोचे ले रहे हैं, लेकिन बाद में ऐसे आने वाले सारे लिफाफे अपने ब्रीफकेस में रखते दिख रहे हैं। इस पूरे दौरान यह बड़ा पुलिस अफसर बहुत उतावली में दिख रहा है। पांच मिनट 35 सेकंड के वीडियो में उसने कई बार लिफाफा लिया है। बहरहाल, इस विवाद के बाद हटाया गया यह अफसर अब पुलिस मुख्यालय में एडीजी की कुर्सी सम्‍भालेगा।
इस घटना पर एमपी के परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के तेवर तो देखिये। राजपूत ने पहले तो यह साफ कह दिया कि वायरल वीडियो में दरअसल मधुकुमार सरकारी कामकाज की रिपोर्ट लेते दिख रहे हैं। इस बयान के बाद मंत्री ने जोड़ा कि लिये जा रहे लिफाफे की जांच कराई जाएगी, ताकि यह पता चल सके कि उस लिफाफे में क्या था।
मध्य प्रदेश में “गोपनीय रिपोर्ट” को ‘लिफाफे’ में लेने के बाद परिवहन आयुक्त पद से हटाए गए वी मधुकुमार को लंबे समय से राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है। इसी कारण वह जबलपुर में डीआइजी से पदोन्नत होकर वहीं आइजी पद पर भी बरसों जमे रहे। बताया जाता है कि दक्षिण भारत के रहने वाले एक पूर्व प्रदेश संगठन महामंत्री का वरदहस्त है। इसी के चलते 2016 में सिंहस्थ से ठीक पहले मधुकुमार को जबलपुर से हटाकर उज्जैन जोन की कमान सौंप दी गई। आइजी पद से अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी) पद पर पदोन्नत होने के बाद भी वह उज्जैन में आइजी पद पर ही जमे रहे। भाजपा की पूर्व की सरकारों में भी मधु कुमार का जलवा बरकरार रहा। 2009 के आसपास मधुकुमार को डीआइजी जबलपुर बनाया गया था। कुमार को जबलपुर ऐसा पसंद आया कि वे आइजी पद पर पदोन्नत होने के बाद भी वहीं जमे रहे और 2016 में वहां से अपनी मनपसंद पोस्टिंग उज्जैन में पाई।
बताते हैं कि मधुकुमार की यह छीछालेदर न हो पाती, अगर एमपी में आईपीएस अफसरों के बीच सिर-फुटव्‍वल न हुआ होता। पिछले साल परिवहन आयुक्त के पद पर पदस्थापना को लेकर आइपीएस अफसर संजय माने और वी. मधुकुमार के बीच खूब खींचतान चली थी। दोनों परिवहन आयुक्त की दौड़ में शामिल थे। वरिष्ठता के हिसाब से संजय माने दावेदार थे, लेकिन मधु कुमार सफल रहे। लगभग साल भर पहले डॉ. शैलेन्द्र श्रीवास्तव परिवहन आयुक्त थे। शैलेंद्र श्रीवास्तव की इच्छा थी कि वे परिवहन आयुक्त पद से ही रिटायर हो जाएं। इधर पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन में तत्कालीन एडीजी संजय वी. माने 1989 बैच के अफसर होने के बाद भी परिवहन आयुक्त नहीं बन पाए थे। तभी से तीनों अफसरों के बीच भारी अनबन चल रही थी। श्रीवास्तव तो अब रिटायर भी हो चुके हैं।
सरकार किसी की भी रही हो लेकिन मधुकुमार हमेशा पावरफुल रहे। ईओडब्ल्यू में पदस्थ थे तो ई-टेंडरिंग की जांच शुरू की, वहां से सरकार का भरोसा जीत कर वह लोकायुक्त संगठन में पहुंच गए। तब लोकायुक्त एनके गुप्ता के विरोध जाहिर करने के बाद भी तत्कालीन मुख्यमंत्री कमल नाथ ने कुमार की पदस्थापना में कोई फेरबदल नहीं किया। लोकायुक्त एनके गुप्ता ने बिना सहमति के मधुकुमार की पोस्टिंग का विरोध किया था। लोकायुक्त संगठन में तत्कालीन एडीजी रवि कुमार गुप्ता को एडीजी नारकोटिक्स बनाए जाने पर लोकायुक्त गुप्ता ने कहा था कि उनकी सहमति नहीं ली गई इसलिए वे रिलीव नहीं होंगे। पर सरकार टस से मस नहीं हुई और मधुकुमार अपनी मनचाही जगह पहुंच गए। यहीं से उन्होंने परिवहन आयुक्त के पद पर छलांग लगाई थी।
सरकार किसी की भी रही हो लेकिन मधुकुमार हमेशा पावरफुल रहे। ईओडब्ल्यू में पदस्थ थे तो ई-टेंडरिंग की जांच शुरू की, वहां से सरकार का भरोसा जीत कर वह लोकायुक्त संगठन में पहुंच गए। तब लोकायुक्त एनके गुप्ता के विरोध जाहिर करने के बाद भी तत्कालीन मुख्यमंत्री कमल नाथ ने कुमार की पदस्थापना में कोई फेरबदल नहीं किया। लोकायुक्त एनके गुप्ता ने बिना सहमति के मधुकुमार की पोस्टिंग का विरोध किया था। लोकायुक्त संगठन में तत्कालीन एडीजी रवि कुमार गुप्ता को एडीजी नारकोटिक्स बनाए जाने पर लोकायुक्त गुप्ता ने कहा था कि उनकी सहमति नहीं ली गई इसलिए वे रिलीव नहीं होंगे। पर सरकार टस से मस नहीं हुई और मधुकुमार अपनी मनचाही जगह पहुंच गए। यहीं से उन्होंने परिवहन आयुक्त के पद पर छलांग लगाई थी।

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