: कमाल वकालत के धन्धे का, जिनका आज जन्मदिवस है : गोविन्दबल्लभ पन्त ने मना कर दिया था बिस्मिल का मुकदमा : मदनमोहन मालवीय ने चौरीचौरा काण्ड के 151 लोगों को फांसी से बचाया :
कुमार सौवीर
लखनऊ: यूपी के प्रथम मुख्यमंत्री रह चुके गोविन्द बल्लभ पन्त कांग्रेस के महान नेताओं में से एक रहे हैं। मूलत: वकालत से जुड़े रहे पन्त जी आजादी के पहले भी संयुक्त प्रान्त के मुख्यमंत्री रह चुके थे। इतना ही नहीं, वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु के बाद पन्त जी ने ही देश के गृहमंत्री का पद सम्भाला था। गृहमंत्री का ओहदा सम्भालने के दौरान सन-1955 में राष्ट्रपति ने उन्हें भारत-रत्न के सम्मान से नवाजा था। आज उनका जन्मदिन है।
उनको सादर नमन।
पन्त जी के बारे में सर्वप्रचलित चर्चाओं के अनुसार काकोरी काण्ड के मुकदमें की पैरवी के लिये अन्य वकीलों के साथ पन्त जी ने जी-जान से सहयोग किया। चर्चाएं तो यहां तक हैं कि सन-1927 में राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ व उनके तीन अन्य साथियों को फाँसी के फन्दे से बचाने के लिये उन्होंने पण्डित मदन मोहन मालवीय के साथ वायसराय को पत्र भी लिखा, किन्तु गांधी जी का समर्थन न मिल पाने से वे उस मिशन में कामयाब नहीं हो सके थे।
लेकिन मेरे पास भी कुछ प्रमाण उपलब्ध हैं भारत-रत्न गोविन्द वल्लभ पन्त जी को लेकर। तत्कालीन भारत के महान चिंतकों और प्रखर विधिवेत्ता माने जाते थे गोविंद वल्लभ पन्त जी।
मेरे पास है काकोरी-काण्ड के मुजरिम रहे रामप्रसाद बिस्मिल आदि लोगों के मुकदमे का ब्योरा। जिसके पास भी हकीकत को जानने की जहमत उठाने का वक्त हो, वे रामप्रसाद वर्सेज एम्पेरर को बांच लें, जिसका तस्करा एआईआर-1927 अवध 369 (2) की संख्या पर रामप्रसाद एण्ड अदर्स एक्यूज्ड वर्सेज एम्पेरर अपोजिट के नाम से है। इसमें बिस्मिल के अलावा राजेंद्र नाथ लाहिडी और रौशन सिंह का नाम शामिल है, जिन्हें फांसी की सजा दी गयी थी। आपकी सुविधा के लिए मैं उस किताब के चुनिन्दा हिस्सों की फोटो चस्पां किये दे रहा हूं।
चूंकि इस मुकदमे में वकील का खर्चा दे पाने की हैसियत इन अभियुक्तों में नहीं थी, इसलिए इस मुकदमे के लिए गोरी हुकुमत ने सरकारी खर्चे पर नामी वकील गोविन्द वल्लभ पन्त का नाम सुझाया था। लेकिन हैरत की बात है कि गोविन्द वल्लभ पन्त जी ने काकोरी-काण्ड के बिस्मिल आदि अभियुक्तों का मुकदमा लड़ने से इनकार कर दिया था। एआईआर के पन्नों पर दर्ज इस मामले में साफ लिखा है कि पन्त जी ने इस मुकदमे को नहीं लड़ने का जो आधार दिया था, उसका कारण था सरकार से इस मुकदमे के लिए प्रस्तावित अपर्याप्त फीस।
और चूंकि यह फीस कम थी, इसलिए पन्त जी ने इस मुकदमे को लड़ने से साफ इनकार कर दिया था। बाद में सरकार ने इस मुकदमे के लिए एलएस मिश्र नामक बेरिस्टर-ऐट लॉ का इसी फीस पर तैनात करने का सुझाव दिया था, जिसे मिश्र ने स्वीकार कर लिया। लेकिन तब तक चूंकि बिस्मिल आदि अभियुक्त इस मामले के फीस के हंगामे को लेकर बेहद आहत हो चुके थे, इसलिए इन लोगों ने एलएस मिश्र का वकालतनामा मंजूर नहीं किया और तय किया कि अपना मुकदमा यह लोग खुद ही लड़ेंगे।
बस, चलते-चलते आप लोगों को यह बता दूं कि चौरीचौरा काण्ड में गोरी हुकूमत ने 170 अभियुक्तों को फांसी की सजा सुनायी थी। यह खबर सुन कर महामना मदन मोहन मालवीय जी ने तत्काल हस्तक्षेप किया और इस मामले की अपील कर दी। नतीजा, इस मुकदमें में फांसी की सजा पाये 170 लोगों में से 151 लोगों को फांसी के फंदे से बचा लिया। लेकिन हैरत की बात है कि महामना जी को सन-2014 में भारत-रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया। मरणोपरान्त। उनको नमन।
मालवीय जी को भी सादर नमन।