फर्रूखाबाद: आईजी की हर कहानी में सिर्फ झूठ का तड़का

दोलत्ती


: दरिंदों को राहत, लेकिन पीड़ित को गोली मार दी आईजी मोहित अग्रवाल की शह मेंं पुलिस ने : सवा एक बजे आईजी ने मौत का ऐलान किया, लेकिन छह घंटों तक जिन्‍दा रही रूबी : 
कुमार सौवीर
मोहम्‍मदाबाद करथिया (फर्रूखाबाद) : 30 जनवरी को फर्रुखाबाद में जो कुछ भी हुआ उससे कुछ बातें तो बिलकुल साफ हो गयी हैं। एक तो दरिंदगी का स्‍थान अब सुरक्षित और सम्मानित स्‍‍‍‍‍‍थान में ही संभव है। दूसरी बात यह है कि हम लोग अब दरिंदगी को बेदाग बचाने और ऐसे दरिंदगों के खिलाफ बोलने वालों पर गोलियों से भून डालने के युग में प्रवेश कर चुके हैं। कम से कम कानपुर के क्षेत्रीय पुलिस महानिरीक्षक मोहित अग्रवाल के नेतृत्व में फर्रूखाबाद की पुलिस की करतूत तो साबित कर देती है।
आपको बता दें कि पिछली 30 जनवरी को फर्रुखाबाद के मोहम्दाबाद करथिया गांव में पुलिस ने 11 घंटे की जबरदस्त मजाकिया, हास्यास्पद और निहायत घटिया घेराबंदी के बाद एक युवक को गोलियों से भून डाला था। इतना ही नहीं, पुलिस ने अपनी जी-तोड़ मेहनत और कौशल का प्रदर्शन करते हुए इस बात को पुख्ता कर दिया कि भीड़ आए और एक निर्दोष महिला को पीट-पीट कर अधमरा कर दे। अब पुलिस अपने गाल बजा रहे हैं। करीब अज्ञात ढाई सौ अज्ञात लोगों के खिलाफ पुलिस ने उस महिला को पीटकर मार डालने के आरोप में मुकदमा दर्ज कर लिया है। लेकिन हैरत की बात है कि इस पूरे मामले में कई सवाल बहुत शिद्दत के साथ जवाब मांगने लगे हैं। लेकिन पुलिस सिरे से ही सही खामोश है। सवाल तो यह है कि यह हादसा हुआ ही क्यों ?
आखिर वजह थी कि एक अनाड़ी किस्म के शराबी और सिरफिरे शख्स सुभाष ने अपने परिवार के साथ हुए अन्याय और प्रताड़ना के खिलाफ आवाज उठाई? सुभाष और उसकी पत्‍नी के साथ अमानवीय व्यवहार करने वाले पुलिसवालों पर पुलिस क्यों खामोश है? लेकिन पुलिसवालों की यह हरकत कोई अनोखी नहीं है। दरअसल, कानपुर के आईजी मोहित अग्रवाल जिस तरीके से मौके पर पहुंचे और उसके बाद जिससे वहां बड़े अफसरों द्वारा लगातार झूठ नाटक और फरेब का सिलसिला शुरू हुआ, वह पुलिस और प्रशासन की फाइलों पर भले ही बंद हो गया हो लेकिन आम आदमी के दिल दिमाग में यह हादसा बरसों-बरस सालता ही रहेगा, और सरकार की छवि पर एक बाकायदा ऐसा नासूर बन जाएगा।
इस हादसे ने कई गम्भीर सवाल भड़का दिये हैं। आखिर क्‍या वजह थी कि उस ऑपरेशन के दौरान मौजूद रहे आईजी मोहित अग्रवाल ने लगातार झूठ बोला और इस पूरे कांड को पूरी तरह बचकाना ही नहीं, बल्कि मूर्खतापूर्ण और षड्यंत्रपूर्ण भी बना डाला। मोहित अग्रवाल ने अपनी मर्दानगी के साथ बयान दिया था कि वहां भारी तादात में सलाह और गोला-बारूद है वह कल्पना से परे है। मोहित का कहना था कि सुभाष बाथम के पास जितना गोला-बारूद था, उसे 3 से 5 दिन तक वह पुलिस से टक्कर ले सकता था। लेकिन इसके अगले ही दिन मोहित अग्रवाल ने अपना पैंतरा तेज किया और ऐलान किया कि सुभाष के पास 10 से 15 दिन तक पुलिस से जूझने का असलहा और 12 गोला बारूद मौजूद था। लेकिन जिस तरीके से बरामदगी के बारे में पुलिस ने पैंतरा बदला है वह साबित करता है सारे गोला-बारूद दीपावली से बचे सुतली-बम जैसे पटाखे ही थे। आईजी के बयान को जरा गौर कीजिए न।
वे कहते हैं कि सुभाष कश्यप के पास ब्राउन पाउडर था जो बारूद था, लेकिन इस पर कोई भी जवाब ही नहीं दिया है कि मोहित अग्रवाल ने कि ब्राउन पाउडर तो बाजरा का आटा और चूल्‍हे की राख भी हो सकता है। विधानसभा के भीतर जो भयानक विस्‍फोटक मिलने का हल्‍ला मचा था, वह बाद में तम्‍बाकू मलने वाला चूना था। मोहित का दावा था कि सुभाष के पास 15 दिनों तक पुलिस से युद्ध से कर पाने की क्षमता वाला गोला-बारूद सुभाष के पास था, लेकिन अब वह कहां है। मोहित बोले थे कि उसके पास 15 किलो का सिलेंडर-बम था। लेकिन आईजी को यह तक नहीं पता कि बम-डिस्‍पोज करने वाली टीम के हाथों में था जो सिलेंडर दिख रहा है, उसका वजन 15 किलो नहीं, मात्र 5 किलो था। घटना के दिन पहले दिन आईजी ने बयान दिया था कि वहां चली एक बम विस्फोट से 5 पुलिसवाले घायल हुए लेकिन हकीकत यह थी कि वहां कोई भी पुलिसवाला ऐसा घायल नहीं हुआ, और न ही किसी का खून ही निकला। हां, घर के बाहर बिना चिनाई वाली दीवार एक हल्‍के से धमाके से जहां की तहां ढह गई थी। हां, धूल जरूर उड़ी थी। लेकिन अगले दिन पत्रकारों से बातचीत के दौरान आईजी ने बताया कि सुभाष की गोली उनके और उनके अलावा पांच अन्‍य पुलिसवालों पर भी लगी थी। लेकिन बुलेटप्रूफ जैकेट के चलते वे भी बच गए।
मोहित अग्रवाल यह बिलकुल नहीं बताते हैं कि जब तकरीबन 400 से ज्यादा पुलिसवालों की तैनाती मौके पर थी, ऐसी हालत में वहां भीड़ का जमावड़ा कैसे लग गया। हमने इस और ऐसे सवालों को खोजने के लिए फर्रूखाबाद के पुलिस अधीक्षक से लेकर मोहम्‍मदाबाद के कोतवाल तक को सम्‍पर्क किया, लेकिन एसपी ने पीआरओ ने फोन उठाया लेकिन फोन करवाने से असमर्थता व्‍यक्‍त कर दी।
भीड़ को दूर क्यों नहीं रखा पुलिस न? वह भी तब जब यह पूरा अभियान 11 घंटे से चलने की नौबत पाकर लगातार गम्‍भीर होता जा रहा था। आखिर वह कौन सी मजबूरी थी जिसमें पुलिस में भीड़ को अपने करीब आने दिया और सुभाष बाथम की पत्नी को इसी भीड़ ने बुरी तरह पीट दिया? क्या वजह थी रात एक बज कर बीस मिनट पर सुभाष की मौत के बाद मोहित अग्रवाल ने बयान दिया कि रूबी की मौत हो गई है और उसके कारण का खुलासा उसके पोस्टमार्टम के बाद ही हो पाएगा। लेकिन उसके ठीक ढाई-तीन घंटे बाद सुबह चार बजे यही रूबी जिला लोहिया अस्पताल में जिंदा कैसे मिली? जबकि घटनास्‍थल से जिला अस्‍पताल की दूरी अधिकतम 20 मिनट थी। यह दावा किया जा सकता है कि मौके से निकाल कर पुलिस पहले रूबी को मोहम्‍मदाबाद सामुदायिक अस्‍पताल ले गयी थी, लेकिन यहां सवाल कई हैं कि रूबी की हालत अगर गंभीर थी, तो उसी पीएचसी क्‍यों ले जाया गया, और फिर यह भी इसके बावजूद तीन घंटों तक का अंतराल किन कारणों से खींचा गया।
यह भी कि जब रूबी की हालत को जिला अस्‍पताल में डॉक्टरों ने बहुत गंभीर नहीं माना था और कहा था कि वे रूबी खतरे से बाहर है और वे अब उसे संभाल सकते हैं। लेकिन अस्पताल के कुछ कर्मचारियों ने दोलत्‍ती संवाददाता को बताया कि पुलिसवालों के दबाव में डॉक्टरों ने रूबी को इटावा के सै‍फई मेडिकल कालेज रेफर कर दिया था। मेडिकल कॉलेज से जब सुबह 8 बजे रूबी दोबारा जिला अस्पताल वापस लाई गई तो उसे वह मर चुकी थी। तब डॉक्टरों ने बताया कि रूबी के सिर पर गंभीर चोटें आयी थीं, जिसके चलते उसकी मृत्‍यु हो गयी। ऐसी हालत में रूबी को इतनी चोट कैसे मिली?

फर्रूखाबाद के जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह का कहना है कि उन्‍हें रूबी के जिन्‍दा में रहने और फिर उसे सैफई भेजे जाने के दौरान भी जिन्‍दा होने के बावजूद आधी रात एक बज कर बीस मिनट पर उसकी मौत का ऐलान आईजी द्वारा किये जाने की जानकारी नहीं है। उनका कहना है कि इस बारे में वे खुद अपने स्‍तर से जानकारी हासिल करने की कोशिश करेंगे।

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