: जौनपुर में हंगामा, बिलखते तीन सौ अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज : कट्टर वहाबी मुसलमानों का केंद्र माना जाता है मुल्ला टोला : अनजान पुलिस और प्रशासन खर्राटे भरता रहा :
कुमार सौवीर
जौनपुर : आइये, आज एक कड़वी हकीकत से रू-ब-रू होने का गूदा बटोरिये, जो बनारस के प्रख्यात होली कवि-सम्मेलन के सिरमौर और बेमिसाल हास्य-कवि रहे चकाचक बनारसी ने लिख मारा था। चकाचक बनारसी की कालजई रचनाओं में से यह कविता आज जौनपुर के ताजा तनाव और जिले की पुलिस और प्रशासन पर ऐसा जबर्दस्त झांपड़ रसीद करता है, कि आदमी चारों-खाने चित्त हो जाए। खैर, कविता की पहली लाइन सुनिये:-
सब जानते हैं दंगा हुआ मदनपुरा में,
मगर कर्फ्यू है लहुराबीर, तेरी ….
मोहर्रम यानी खास कर शिया समुदाय का शोक अवसर। शियाओं के मौला के गम में यह पूरी कम्युनिटी ही नहीं, बल्कि कई सुन्नी और हिन्दुओं के साथ ही साथ कई अन्य धर्मों के अनुयायी भी इस दौरान मातम मनाते हैं, और ताजिया तक भी रखते हैं। ताजिया यानी लाशें। दरअसल, शिया समुदाय की मान्यता के अनुसार अपने मौला के खानदान के नन्हें-मुन्ने सदस्यों को युद्धक्षेत्र में यजीद के सैनिकों ने मार कर लाशों में तब्दील कर दिया था। ताजिया उन्हीं लाशों का प्रतीक है, जिसको देख-देख कर शिया समुदाय मातम करता है, रोता है और छाती पीटता है। तब से शिया समुदाय के लोग कुछ दिन तक ताजिया को घर में रखते हैं और मोहर्रम के दिन उसे पूरे सम्मान के साथ कर्बला में सिपुर्देखाक कर देते हैं। यह परम्परा है और सैकड़ों बरसों से जारी है। यूपी में लखनऊ में सबसे ज्यादा शिया हैं, दूसरे नम्बर पर है जौनपुर। मगर लखनऊ में बड़े ताजिया सामूहिक तौर पर रखे जाते हैं, जबकि जौनपुर में छोटे-छोटे ताजिया बनते हैं, और हर परिवार में यह एक से अधिक ताजिया ही रखा जाता है, जिसे जुलूस के बाद कर्बला में दफना दिया जाता हैा
लेकिन मोहर्रम के मौके पर तीन दिन पहले प्रशासन और पुलिस की करतूतों के चलते जौनपुर में जिस तरह डरावनी हालत पैदा हुई, उसके जिम्मेदार लोगों को छिपाने के लिए प्रशासन ने न केवल शिया समुदाय को बुरी तरह अपमानित किया, बल्कि उनके गम में पेट्रोल छिड़कने की शैली में करीब तीन सौ ताजियादारों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज करा दिया। मगर जिन लोगों ने यह अफवाह फैला कर साम्प्रदायिक तनाव भड़काया, उस पर प्रशासन अपनी आंख बूंदे ही रहा। इमामबाड़ा में क्या हो रहा है, अनजान पुलिस और प्रशासन खर्राटे भरता रहा।
सच बात तो यह है कि यह अफवाह फैलायी थी दैनिक जागरण ने। इस घटना पर इस जागरण के रिपोर्टर ने ब्योरा दिया है, उसमें लिखा है कि मुल्ला टोला के एक सिपाही ने नदी में ताजिया विसर्जित करने के लिए जा रहे व्यक्ति का ताजिया फाड़ दिया।
आपको बता दें कि इसी अफवाह पर ही घटना स्थल पर हजारों की तादात में महिला और पुरुष उग्र होकर अपने घरों से निकल कर पहुंच चुके थे। हालत भयावह हो गयी। इसी बीच डीएम ने एक शिया पत्रकार को बुरी तरह फटकार दिया। इन घटनाओं से लोगों का गुस्सा भड़क गया। हालांकि बाद में प्रशासन ने अपने तेवर ढीले किये, ताजिया विसर्जित करने की इजाजत भी दे दी, लेकिन घाव पर मलहम नहीं लग पाया। वजह यह कि तीन सौ शियाओं पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर दिया।
लेकिन प्रशासन ने अफवाह फैलाने वाले दैनिक जागरण पर कोई भी कार्रवाई नहीं की। गौरतलब है कि मुल्ला टोला घटना स्थल से करीब पौन मील दूर है। और यह टोला कट्टर वहाबी मुसलमानों का केंद्र माना जाता है। कई बार यहां सांप्रदायिक तनाव भड़क चुका है। दूसरी बात यह है कि टोला मुल्ला में तैनात सिपाही की तैनाती इमामबाड़ा में कैसे हो सकती है। और कोई भी पुलिसवाला आखिर ताजिया जैसे संवेदनशील मसले पर उसे फाड़ने की हिमाकत क्यों करेगा।
अब आखीर में एक शेर का एक कम्प्लीट मिसरा सुनने की हैसियत बटोरिये। शेर है:- हुए तुम दोस्त जिसके, दुश्मन उसका आसमां क्यों हो?
योगी सरकार की नाक नीची कर डालने की साजिश तो उनके लाडले अफसर ही किये दे रहे हैं।