सभ्य समाज के महिला संरक्षण गृह 

बिटिया खबर
:  मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के ऊपर यौन शोषण का आरोप लगाया था : भारत की बेटियों के आंसुओं का सैलाब जिसे महासागर भी नहीं थाम पा रहा : सशक्त संगठनात्मक प्रयास और नैतिक और चारित्रिक संबल जरूरी :

विनोद पाण्‍डेय

इलाहाबाद : बिहार के मुजफ्फरपुर और उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के महिला संरक्षण गृह में सुनियोजित तरीके चल रहे लड़कियों के यौन शोषण का खुलासा हुआ है। यहां रहने वाली लड़कियां ज्यादातर नाबालिग थी ,परिवार और समाज से उपेक्षित तथा हालत की मारी हुई थीं। लेकिन यहां जो कुछ भी हो रहा था क्या उसपर आश्चर्य करना चाहिए ?क्या इस प्रकार के कृत्य अप्रत्याशित हैं ?यदि आप ऐसा मानते हैं तो मैं आपसे विल्कुल सहमत नहीं हूं।
• सच्चाई और भी वीभत्स है जहां तक आपकी नजर जाती हो वहां तक नजर दौड़ा लीजिए फिर किसी एक संस्था का नाम बताइए कि यहां हर बेटी सुरक्षित है। कमोबेश हर नारी निकेतन और महिला संरक्षण गृह का यही हाल है। दाल में कुछ काला नहीं है बल्कि पूरी की पूरी दाल ही काली है। हम सबने मिलकर जिस सभ्य और आधुनिक समाज की रचना की है आज का ये समाज बेटियों को सुरक्षित पनाह नहीं दे सकता। यहां सवाल केवल व्यवस्था, कानून -कायदे,प्रशासन और राजनीति का ही नहीं है ,बुनियादी सवाल तो उस नजरिए और सोच का है जो बेटी और बोटी के बीच के अंतर को ही लगातार मिटाता जा रहा है।
” ये सच नहीं है कि हिंद महासागर का जलस्तर ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ रहा है सच तो ये है कि ये भारत की बेटियों के आंसुओं का सैलाब जिसे महासागर भी नहीं थाम पा रहा है।”
वास्तव में यह समस्या इतनी जटिल है कि देखा जाए तो दूर-दूर तक कोई समाधान नजर नहीं आ रहा है।वर्ष 2007 में जब मैंने राजनीति विज्ञान में परास्नातक की पढ़ाई के दौरान एक अतिरिक्त विषय के रूप में मानवाधिकार का अध्ययन किया और कालांतर में उससे यूजीसी नेट की परीक्षा भी पास कर ली तो उस समय मुझे लग रहा था कि हमारे संविधान और कानून ने लोगों को बहुत से गरिमापूर्ण अधिकार दिए हैं और उनकी रक्षा के लिए तो बहुत से उपाय हैं , बहुत सी संस्थाएं हैं बस लोगों को उनका ज्ञान नहीं है,अतः हम लोगों को जागरुक करेंगे और उनकी समस्याओं को संस्थाओं तथा प्रशासन तक पहुंचाएंगे और सबको न्याय जरूर मिलेगा। इसी बीच हम कानून की पढ़ाई भी करने लगे थे । हमें जब भी समाचारपत्र में कोई हृदयविदारक घटना दिखाई देती उसकी शिकायत अविलंब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेज देते थे। किंतु इन सभी मामलों में हमने पाया कि इसप्रकार का एक मुद्दा जब आप उठाते हैं तो पूरी व्यवस्था ही आपको शत्रु समझने लगती है। ये मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग आदि सब दिखावे की संस्था हैं। आयोग के निर्देश पर खुद पुलिस का अधिकारी जांच करता था और रिपोर्ट में लिख देता था कि एक सनकी लड़का है भावुक होकर शिकायतें भेजता रहता है। रही बात बाकी लोगों की तो हमारे छात्र मित्र हमारे लिए चिंतित रहते थे और कुछ शरीफ लोगों की सहानुभूति भी रहती थी लेकिन कुलमिलाकर अनुभव नकारात्मक ही रहे हैं।अंत में मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इस समस्या का स्वरूप सामाजिक है और उसका समाधान भी समाज ही कर सकता है। इसके लिए सशक्त संगठनात्मक प्रयास और नैतिक और चारित्रिक संबल जरूरी है।
यह समस्या यहीं तक सीमित नहीं है ,इसका स्वरूप बहुत ही व्यापक है । शिक्षा के मंदिर माने जाने वाले विश्वविद्यालयों से लेकर न्यायपालिका,सेना, प्रशासन, खेल जगत फिल्मी दुनियां तक हर जगह ये खेल बदस्तूर जारी है। शायद आप लोगों को याद होगा कि भारतीय खेल प्राधिकरण के जलक्रीड़ा विभाग के केरल स्थिति साई प्रशिक्षण केंद्र में लड़कियों कई लड़कियों ने यौन शोषण के चलते आत्महत्या का प्रयास किया था जिसमें एक खिलाड़ी की मौत भी हो गई थी । इसी प्रकार वर्ष 2014-15 में ग्वालियर में पदस्थ अतिरिक्त सत्र (महिला)न्यायाधीश ने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश से पत्र लिखकर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के ऊपर यौन शोषण का आरोप लगाया था। यदि सेना की बात करें तो वहां भी इसके उदाहरण आसानी से मिल जाएंगे।वर्ष2013 में एक सैन्य अधिकारी की पत्नी ने अपने पति तथा अन्य अधिकारियों के खिलाफ यौन अपराध में प्राथमिकी करवाया था और तत्कालीन रक्षा मंत्री को इस संबंध में पत्र भी लिखा था। विश्वविद्यालयों के पितातुल्य प्रोफेसरों के भी कारनामें अक्सर समाचार पत्रों में आते ही रहते हैं । इसी प्रकार समाज को धर्म और नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले ढोंगी साधु – संत ,मौलवी, पादरी सभी के दामन एक तरफ से दागदार हैं।

( विनोद पाण्‍डेय मिर्जापुर के एक डिग्री कालेज में ि‍शिक्षक हैं।) 

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