: मौत के एक साल बाद बसंत श्रीवास्तव के घरवालों को मिली बीस लाख की सरकारी मदद : अब तक सोते रहे पत्रकार नेता, अखिलेश यादव के ऐलान के बाद अपने सिर सेहरा बांधने की आपाधापी शुरू : लखनऊ के संजोग वाल्टर कैंसर और इलाहाबाद के वसीमुल हक गुर्दे की बीमारी से जूझ रहे, कोई नेता नहीं बोल रहा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : पत्रकारिता के क्षेत्र में बसन्त श्रीवास्तव एक बड़ी शख्सियत थे। ठीक बरस पहले उनकी मौत हो गयी। लेकिन पत्रकारिता की दूकान खोले नेताओं ने बसन्त श्रीवास्तव को अपनी श्रद्धांजलियां तक अर्पित करने की जरूरत नहीं समझी। लेकिन अचानका पिछले हफ्ते मथुरा के एक संवाददाता हरीश माहौर की मौत हुई तो मथुरा के पत्रकारों ने हरीश के पक्ष में अखिलेश यादव के यहां पैरवी शुरू कर दी। नतीजा यह हुआ कि दो दिन में ही मुख्यमंत्री ने हरीश के परिजनों को बीस लाख रूपयों की आर्थिक मदद का ऐलान कर दिया। इतना ही नहीं, अखिलेश यादव ने हरीश के साथ ही साथ बसन्त श्रीवास्तव के घरवालों को भी बीस लाख रूपया की सहायता भिजवा दी।
बस इसी घटना को लेकर पत्रकारों के तथाकथित बड़े नेताओं में कुकुर-झौंझौं शुरू हो गयी है। पत्रकारों के हितों की अपनी-अपनी दूकानें खोले इन नेताओं में अब इस बात की आपधापी मच गयी है कि कैसे भी हो, अखिलेश यादव के इस ऐलान का सेहरा उनके सिर कैसे बांध लिया जाए। है न हैरत और शर्म की बात है कि सुरेंद्र सिंह और जेडी शुक्ला की मृत्यु से पहले भी बसन्त श्रीवास्तव की मृत्यु हो गयी थी, लेकिन इन पत्रकार नेताओं ने इस बारे में कोई भी कदम नहीं उठाया। इतना ही नहीं, सुरेंद्र सिंह लम्बे समय तक सन्निपात में रहे, लेकिन उनका हालचाल लेने के लिए कोई भी नेता नहीं पहुंचा। और जब सरकार ने अपने स्तर पर यह रकम जारी की, तो उसका श्रेय लूटने में यह सब जुट गये।
गौरतलब है कि दिवंगत हरीश माहौर के परिजनों को आर्थिक सहायता दिलाने के लिए उप्र मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति ने कोई भी प्रयास नहीं किया था। जबकि इस बारे में कोशिशें तो वृज प्रेस क्लब ने की थी। ब्रज प्रेस क्लब के अध्यक्ष कमलकांत उपमन्यु और अन्य पत्रकारों ने 22 दिसम्बर को इस सम्बन्ध में मुख्यमंत्री से निवेदन किया था
दरअसल, यूपी में उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के नाम से दो यूनियनें मौजूद हैं। खुद को असली और दूसरी को नकली बताने का झगड़ा पिछले डेढ़ साल से चल रहा है। प्रांशु मिश्र की समिति की ओर से अभी तक कोई भी दावा नहीं हुआ है, लेकिन हेमंत तिवारी वाली उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति, नम्बर दो, ने दो दिवंगत पत्रकारों के परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को धन्यवाद दिया है। इस समिति ने दावा किया है कि इसके लिए उसने सरकार से अनुरोध किया था। लेकिन हेमंत ने यह नहीं बताया कि आर्थिक सहायता दिलाने में उनकी क्या भूमिका रही और इसमें एक साल का वक्त क्यों लगा। इस समिति के अनुरोध पर मुख्यमंत्री ने लखनऊ के दिवंगत पत्रकार बसंत श्रीवास्तव और मथुरा के हरीश चन्द्र माहौर के परिवारों को बीस-बीस लाख रूपये की सहायता राशि दिए जाने के आदेश आज प्रदान किये हैं।
उधर श्रमजीवी पत्रकार संघ ने इस सरकारी इमदाद पर पत्रकारों के बीच सेहरा बंधवाने की कोशिशों को बेशर्मी करार दिया है। संघ के विश्वजीत राव ने कहा है कि, “जहाँ तक मेरी जानकारी है, ये रक़म मुख्यमंत्री ने अपने विवेक और उनके परिवार के आग्रह पर दी है। हम सब बहुत आभारी है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने दिवंगत पत्रकारों की मदद की, पर ये लाशों पर राजनीति कब बंद होगी। सुधर जाओ पत्रकारों के फ़्रॉड नेताओं और कुछ तो शर्म करो।”
आपको बता दें कि यूपी में कई पत्रकार ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी पत्रकारिता की सेवा में की है। लेकिन आज वे आर्थिक संकटों के चलते अपने बुरे दौर से गुजर रहे हैं। इनमें से एक हैं संजोग वाल्टर। लखनऊ के रहने वाले वाल्टर के मुंह में कैंसर था, जिसके ऑपरेशन में वे तबाह हो गये। हालांकि वे इस बीमारी से उबर गये, लेकिन भयावह आर्थिक बदहाली से गुजर रहे हैं संजोग वाल्टर। उधर माया पत्रिका में फोटोग्राफर रहे मो आजकल पेट के असह्य बीमारी से जूझ रहे हैं। 77 बरस के मोहम्मद के पास अब इलाज तक के लिए पैसा नहीं है। लेकिन शर्मनाक बात यह है कि एक भी नेता ने इन पत्रकारों की दुर्दशा पर कोई पहलकदमी की। इस बारे में भी यह समिति खामोश है कि संजोग वाल्टर और इलाहाबाद के वसीमुल हक को उनकी गम्भीर बीमारी के बावजूद अब तक कोई भी सरकारी सहायता क्यों नहीं मिली।