शलभ अब भाजपाई भये, अमित शाह से भेंट के बाद दिया इस्‍तीफा

सक्सेस सांग

: गजब पत्रकार रहा है शलभ। हमेशा रहेगा भी : आईबीएन-7 के धमाकेदार पत्रकारों में शुमार रहे हैं शलभ मणि त्रिपाठी : मित्र बनना और मित्र बनाना शलभ के डीएनए में रहा : इकलौता पत्रकार रहे हैं शलभ, जिसके पीछे बाकायदा पत्रकारों का एक तूफान हिलोरें लेता है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : शलभमणि त्रिपाठी अब भाजपा में शामिल हो गये हैं। भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह से हुई मुलाकात के बाद शलभमणि त्रिपाठी ने भाजपा में शामिल होने का फैसला कर लिया। इसके साथ ही उन्‍होंने अपने संस्‍थान आर्इबीएन-7 के राज्‍य प्रमुख के पद से इस्‍तीफा दे दिया। हालांकि यह पता नहीं चल पाया है कि उनकी रणनीति क्‍या होगी। लेकिन समझा जाता है कि शलभ पूर्वांचल के किसी न किसी इलाके से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। जरूर।

यूपी ही नहीं, बिहार, झारखंड, छत्‍तीसगढ़, मध्‍यप्रदेश और उत्‍तराखंड की पत्रकारिता में शलभ मणि त्रिपाठी का नाम बाकायदा किसी धमक के तौर पर माना-जाना और पहचाना जाता है। मूलत: गोरखपुर के रहने वाले शलभ मणि त्रिपाठी ने दैनिक जागरण से अपनी पत्रकारिता की पारी शुरू की और कई पड़ावों-मोड़ों से होते हुए वे आखिरकार आईबीएन-7 के राज्‍य प्रमुख तक के पद तक पहुंच गये। निष्‍पाप, निर्दोष, ईमानदार, तेज-तर्रार और तीखी नजर, सधी नजर, खोजी अंदाज, तय निशाना लगाने में माहिर और मशहूर शलभ शायद यूपी के पहले ऐसे पत्रकार हैं, जो पत्रकारिता के शीर्ष पहुंचने के बावजूद अपने पत्रकारीय कैरियर को छोड़ कर अब सक्रिय राजनीति में उतर रहे हैं।

शलभ का नाम अपने पेशे के साथ ही साथ अपने हम-पेशा लोगों के प्रति अगाध प्रेम, आस्‍था, श्रद्धा और स्‍नेह रखने वालों में से शीर्ष पर दर्ज है। शलभ ने अपने निजी हितों को छोड़ कर केवल खबर के अलावा किसी और क्षेत्र में दखल किया है, तो वह है मित्रता और भाईचारा। अपने लोगों के साथ हमेशा खड़े रहने वाले शलभ इकलौते ऐसे पत्रकार हैं, जिनकी एक आवाज में सैकड़ों नहीं, बल्कि हजारों पत्रकार एकजुट आत्‍मोसर्ग कर सकते हैं। करीब सात साल पहले लखनऊ में हजरतगंज में एक एसपी-सिटी की करतूत पर जब शलभ ने हांका लगाया था, शलभ के साथ हजारों लोग हजरतगंज से मार्च करते हुए सीधे मुख्‍यमंत्री आवास तक जुलूस की शक्‍ल में पहुंच गये थे।

सच बात कहूं, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। वह यह कि मैं शलभ के लिए अपनी जान तक दे सकता हूं। शलभ जैसा शख्‍स जन्‍म-जन्‍मान्‍तरों में ही मिल पाता है। वह भी अपने पुण्‍य-प्रसाद के तौर पर।

बहरहाल, अगर किसी को यह सीखना हो कि किसी को सम्‍मान कैसे दिया जाता है, तो उसे सीधे शलभ को समझना, देखना और महसूस करना होगा। रही बात मेरी, तो मुझे तो गर्व है कि शलभ मेरा भाई है। वैसे एक बात और बता दूं आपको। शलभ की बेमिसाल जोड़ी अगर किसी के साथ चली, तो वह था मनोज रंजन त्रिपाठी। दोनों ही दोनों बेमिसाल।

क्‍या जाने। खुदा क्‍या जाने। हो सकता है कि आजकल में ही मनोज भी शलभाई हो जाएं। हा हा हा

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