हर शख्‍स को जिन्‍दगी में गलतियां खूब कचोटती है, चाहे वह मैं हूं या फिर नीलाभ

मेरा कोना

: मरने से पहले ही नीलाभ ने अपनी गलतियों के लिए सार्वजनिक क्षमा याचना कर ली : हर शख्‍स को अहसास होता है, लेकिन हर शख्‍स नीलाभ की तरह व्‍यक्‍त नहीं कर पाता : मैं भूमिका की मां को भी मांजी ही कहता था : मैं साहसी हूं, आहत लोग मेरा आदर-फादर भी करते रहते हैं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : मैं कुमार सौवीर, अपने होश और हवास में ऐलान करता हूं कि मैं अपनी गलतियों के लिए पूरी दुनिया से माफी मांगना चाहता हूं। उनसे भी, जिनका दिल मैंने दुखाया, और उनसे जिनसे मैं कभी भी नहीं मिला। उनसे भी माफी मांग रहा हूं जिन्‍होंने मुझे तनिक भी कोशिश की, और उनसे भी माफी चाहता हूं जिन्‍होने मुझे अपने बलगम की तरह खंखार कर सड़क पर थूक डाला। मैं उनसे भी माफी चाहता हूं जिन्‍होंने मेरी बातों का हवाला देकर किसी दूसरे को कष्‍ट पहुंचाया और उनसे भी क्षमा याचना करना चाहता हूं जिन तक कभी किसी दूसरे के माध्‍यम तक मेरी बात पहुंची और अपना दिल दुखाया।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं आइंदा ऐसी या किसी भी तरह की गलतियां नहीं कर करूंगा। या ऐसा करने की परिस्थितियां खत्‍म कर दूंगा। ऐसा नहीं कर पाऊंगा। क्‍योंकि हालात मनुष्‍य खुद नहीं बनाता, संयोग और हालात खुद ब खुद ऐसे हो जाते ही हैं जिनमें गलतियों की व्‍युत्‍पत्ति अपरिहार्य हो जाती है। यह होना भी चाहिए। दरअसल, गलियां तो प्रयास का सकारात्‍मकता और उसकी उर्जा व जीवन्‍तता का प्रतीक है। इससे यह साबित होता है कि अमुक शख्‍स से कोई प्रयास किया है। हां, अब ऐसे प्रयास जब सफलतापूर्वक और जन-सामान्‍य की खुशफहमी के खाते में जुड़ जाते हैं तो आप उन्‍हें सफल प्रयास मान कर उसकी पीठ ठोंक देते हैं। तारीफों के पुल बांधते हैं। लेकिन जब ऐसे प्रयास अगर किसी दूसरे या किसी समूह के खिलाफ चले जाते हैं तो आप उसे गलती नहीं मानते, बल्कि उसे अपराध की श्रेणी में खड़ा कर देते हैं।

तो सच बात यह है मेरे दोस्‍त, कि मैं प्रयास और जीवन्‍तता का हामी हूं। कोशिश करते रहना मेरी प्रवृत्ति है। इसलिए मैं ऐसा कोई दावा नहीं कर सकता कि मैं निठल्‍ला ही बैठा रहूंगा। मैं मानव हूं और मानवोचित प्रवृत्तियां मुझ में ठसाठस भरी हुई हैं। मैं साहसी हूं, किसी भी बात को पूरी शिद्दत के साथ और पूरी बहादुरी के साथ, निर्भय होकर करता हूं। ऐसे में मेरे खाते में अच्‍छी तारीफें भी आती हैं और उससे आहत लोग मेरा आदर-फादर भी करते रहते हैं।

तो जिसे जो भी करना है, वह करे। मैं उसमें कुछ भी नहीं कर सकता। सिवाय उसके कि उन्‍हें जो भी ठेस मेरी बातों से लगी है, मैं उसके लिए क्षमा याचना कर लूं। लेकिन इस शर्त पर नहीं कि मैं उसके बाद अपने प्रयासों को समाप्‍त कर दूंगा। हर्गिज नहीं मेरे दोस्‍त। ऐसा कभी नहीं हो सकता।

आज एक ब्‍लागर स्नेहा चौहान ने भी ऐसा एक क्षमा-याचना पत्र देखा तो उसे सार्वजनिक कर दिया। मैंने भी पढ़ा। पाया कि यह माफीनामा कवि, साहित्‍यकार और जीवन्‍त शख्‍स नीलाभ अश्‍क ने अपनी मौत से पहले लिखा था। स्‍नेहा लिखती हैं कि ये नीलाभ की आखिरी पोस्ट थी,जिसमे और भी बहुत कुछ आगे बताने की बात कह के उन्होंने विराम दिया.उनको ये नहीं पता था कि ये विराम ही उनको उन सबसे अलग ला खड़ा करता है,जो आज ये साहस नहीं कर पाते, दुनिया के सामने खुद को खोलके रखने का दम, हर किसी की बस की बात नहीं! मैंने नीलाभ को नहीं पढ़ा, ये अब कहना मुश्किल है, क्योंकि उनकी इस पोस्ट ने मुझे उन लोगो में शामिल कर लिया जो उनको जानते थे.ये अलग बात है अब आभासी दुनिया ही सही.उनको कई बार मेरे दोस्त राहुल पांडे की प्रोफाइल में देखा! आज जब उनके इस दुनिया से रुखसती की खबर सुनी, यकीन नहीं हुआ.

नीलाभ आज आप जहा भी है! यकीनन सुकून की नींद में होंगे,क्योंकि आपने माफीनामा लिख के अपने आप को खाली कर लिया था! ये माफ़ी मांगने की आपकी अदा की मैं कायल हो गयी.बहुत कम लोग होते है,जिनमें ये हिम्मत होती है.अकेले में माफ़ी माँगना और दुनिया के सामने माफ़ी माँगना,दोनों दीगर बात है. बड़ी बात ये की साहित्यकार होते हुए आपने कितनी सिद्दत से अपनी गलतियों को स्वीकार कर लिया.साहित्यकार का अहम् मैंने देखा है.आपने उसपे विजयप्राप्त कर जो नयी मंज़िल को थामा है. उस पथ पे आप सुकून से अग्रसर हो. आभासी दुनिया में आपको एक घंटे पहले जानने वाली आपकी दोस्त.

नीलाभ सा दम है किसी में!

आइये, पढा जाए कि नीलाभ ने क्‍या प्रायश्चित किया था।

नीलाभ का माफीनामा पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक कीजिए :- मेरा भी अतीत महान भूल, गलतिययों और महान कलंकों से अटा भरा है

 

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