शलभमणि का मामला हो या फिर बीएचयू, सड़क पर उतर पड़े थे शेखर त्रिपाठी

मेरा कोना

: बीएचयू प्रशासन को सीधे ललकार दिया था, लखनऊ में शलभमणि त्रिपाठी कांड पर सीधे सरकार और प्रशासन से भिड़ गये थे शेखर त्रिपाठी : कोई एकांत वार्तालाप नहीं, कुलपति से दो-टूक जवाब दे दिया था। भेंट तक हुई जब प्रशासन ने सभी सम्‍पादकों को आमंत्रित किया :

 

सत्‍येंद्र पीएस

नई दिल्‍ली : शेखर से मेरा पहला सामना वाराणसी में 2004-05 के आसपास हुआ। वह उन दिनों हिंदुस्तान अखबार के स्थानीय संपादक थे। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के सुरक्षाकर्मी और प्रॉक्टोरियल बोर्ड पत्रकारों व फोटोग्राफरों से मारपीट में कुख्यात थे। उस समय में ईटीवी उत्तर प्रदेश के लिए खबरें भेजता था। बीएचयू में करीब रोजाना ही आना जाना होता था। ऐसे में सुरक्षाकर्मियों को भी झेलना पड़ता था। एक रोज हिंदुस्तान अखबार के एक फोटोग्राफर और कुछ रिपोर्टरों के साथ बीएचयू के सुरक्षाकर्मियों से हाथापाई हो गई। सभी पत्रकार व फोटोग्राफर आंदोलित थे। यह देखकर आश्चर्य हुआ कि हिंदुस्तान अखबार के स्थानीय संपादक शेखर त्रिपाठी पत्रकारों को लीड कर रहे हैं। न सिर्फ वह लीड कर रहे थे बल्कि नारेबाजी में भी शामिल हो रहे थे। बढ़ता हंगामा देखकर कुलपति ने शेखर को बातचीत के लिए आमंत्रित किया। लेकिन वह नहीं गए। बहुत देर तक पत्रकार कुलपति के आवास को घेरे रहे। आखिरकार बीच बचाव  में यह सहमति बनी कि हर अखबार के प्रतिनिधि कुलपति से एक साथ मिलेंगे। उसके बाद कुलपति से वार्ता हुई। कुलपति ने घटना के लिए व्यक्तिगत रूप से खेद जताया और आश्वासन दिया कि आइंदा इस तरह की घटना न हो, इसका पूरा ध्यान रखा जाएगा। तब जाकर शेखर कुलपति आवास से हटे थे।

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शशांक शेखर त्रिपाठी

अपने अधीनस्तों के साथ हर हाल में खड़े रहना शेखर की आदत में शामिल था। हिंदुस्तान वाराणसी के बाद उन्होंने दैनिक जागरण लखनऊ में स्थानीय संपादक का कार्यभार संभाला। दैनिक जागरण में भी पत्रकारों के लिए किसी से भी लड़ जाने के किस्से बहुत विख्यात हैं। जागरण लखनऊ में उनके साथ काम कर चुके नरेंद्र मिश्रा बताते हैं कि लखनऊ में एक बार आईबीएन के ब्यूरो चीफ रहे शलभ मणि त्रिपाठी से पुलिस के सर्किल अधिकारी से हाथापाईं हो गई। पत्रकारों ने प्रशासन के खिलाफ रात में ही प्रदर्शन शुरू कर दिया। रात में वरमूडा और टीशर्ट पहने शेखर त्रिपाठी खुद पहुंच गए पत्रकारों के विरोध प्रदर्शन में। उसके बाद तो जागरण की पूरी टीम ही पहुंच गई। यह जानकर कि जागरण के स्थानीय संपादक खुद प्रदर्शन में आए हैं, प्रशासनिक अधिकारियों के हाथ पांव फूल गए।

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पत्रकार

तत्कालीन एसएसपी  ने शेखर से कहा कि आपको यहां नहीं आना  चाहिए था, आप घर जाएं। अधिकारी के कहने का आशय जो भी रहा हो, लेकिन शेखर ने उन्हें बहुत तेज डांटा और कहा कि अगर हम अपने रिपोर्टर्स के लिए नहीं खड़े होंगे तो कौन खड़ा होगा, कौन सुनेगा उनकी। उस दिन को याद करते हुए नरेंद्र मिश्र कहते हैं कि उसके बाद तो हम पत्रकारों का सीना चौड़ा हो गया और इतना तीखा विरोध प्रदर्शन हुआ कि प्रशासन को झुकना पड़ा एएसपी का तत्काल ट्रांसफर किया गया, इलाके के एसओ  को लाइन हाजिर किया गया। नरेंद्र मिश्र बताते हैं कि उन दिनों मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं और किसी के लिए यह कल्पना करना भी कठिन था कि पत्रकारों के विरोध प्रदर्शन से किसी अधिकारी का बाल बांका हो सकता है, लेकिन शेखर त्रिपाठी ने जो ताकत दी, उससे हम लोग कार्रवाई करा पाने में सफल हो पाए। (क्रमश:)

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