पश्चिम का भोगवाद और बुद्ध का निर्वाण-तत्‍व से आगे है सनातन भारतीय मोक्ष-वाद

बिटिया खबर

: बस्‍ती की शिक्षिका ने वाकई एक अप्रतिम जिज्ञासु प्रश्‍न उठा दिया : विदुषी लोग इसीलिए विदुषी होते हैं, क्‍योंकि उनमें सकारात्‍मक प्रश्‍नों का सतत झरना बहता ही रहता है : नोबुल प्राइज प्राप्‍त हरमन हेस की किताब सिद्धार्थ में दर्ज है ऐसे सवालों का जवाब :

कुमार सौवीर

लखनऊ : गोरखपुर वाले बस्‍ती की रहने वाली अर्चना त्रिपाठी मूलत: शिक्षिका हैं। सभी धर्मों और उनकी तरंगों की प्रशंसिका भी। महात्‍मा बुद्ध की जयन्‍ती पर उन्‍होंने एक सवाल उठा दिया। लिखा:-

“प्रिय ईशू,

महात्मा बुद्ध से तुमने क्या सीखा ? बता सको तो बताओ, मै इच्‍छुक हूँ जानने की…”

गजब सवाल है यह। तुलना भी की, तो किससे, सोच कर किसी भी शख्‍स का दिल कलेजे में अटक सकता है। लेकिन विदुषी-मन इसीलिए तो विदुषी माना जाता है कि उसके अंतस में सकारात्‍मक और जिज्ञासु सवालों का झरना बहता रहता है।

तो, अब आप भी सुन लीजिए, मैंने अर्चना को जो जवाब दिया, कि इस सवाल का जवाब अगर तथागत देते तो क्‍या कहते। मैंने लिखा:-

“जीवन हर क्षण उत्पन्न होता है और हर क्षण मरता है।

निरंतरता ही सृष्टि का आधार और उसकी जीवंतता का सौंदर्य भी है। इसीलिए सृष्टि को शतरूपा कहा जाता है। क्षण-भंगुरता ही तो उसकी असल खूबसूरती और खुसूसियत है।

जो क्षण था, वह अब नहीं है। और जो है, वह कल नहीं रहेगा।

इसीलिए त्यागो मोह-लालसा-इच्छा।

निर्वाण इसी मार्ग को कहा जाता है।”

यीशु ने भी यही सीखा होगा, छह सदी पहले जन्मे बुद्ध से।

बाकी विस्तार समझने के लिए हरमन हेस की सन-1946 में नोबल पुरस्कार प्राप्‍त पुस्तक सिद्धार्थ को पढ़िए। मूलत: अंग्रेजी में है यह किताब, लेकिन उसका हिन्‍दी अनुवाद भी लाजवाब है और मूल को टक्‍कर देता है। करीब पौने दो सौ पन्‍ने की छोटी सी पाकेट-बुक्‍स जैसी। कीमत भी बहुत कम है। शायद इस वक्‍त डेढ़ सौ के असपास मिल जाएगी। अगर न मिले वह किताब, तो सन्-1972 में बॉलीवुड की पहली अंग्रेजी फ़िल्म सिद्धार्थ को यू-ट्यूब पर देख लीजिये, जिसे सिमी ग्रेवाल और शशि कपूर ने अप्रतिम अभिनय किया। हां, उस फिल्‍म का बीच का करीब दो मिनट का एक सीन आपको थोड़ा असहज कर सकता है, अगर आप परिवार के साथ देख रहे हों तो, वरना कोई दिक्‍कत नहीं। जाइये, कालजयी फिल्‍म है यह। आपको हिला देगी, अंतस तक।

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तथागत बुद्ध

मेरा दावा है कि पश्चिम का भोगवाद और बुद्ध का निर्वाण-तत्‍व से बहुत आगे है सनातन भारतीय दर्शन का मोक्ष-वाद जिसे आप अगर साफ-साफ समझना चाहते हों तो उसे त्‍याग-वाद की डगर पर चल कर समझने की कोशिश कीजिएगा।

अप्‍प दीपो भव

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