: तुम्हारा क्या ख्याल है एनकाउंटर-स्पेशलिस्ट अजय साहनी और डीएम मनीष वर्मा? : बेशर्मी देखिये कि अब तक उस नवजात बेटी की लाश की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की इन अफसरों ने : घटिया हैं जौनपुर के कुछ लोग, और उद्यापन करते हैं अफसर :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अभी डेढ़ घंटे पहले ही यह दिल्ली से लखनऊ आये हैं। मैं इसका नाना हूँ, और आश्वस्त हूँ कि यूपी में न इनको कोई खतरा है और न ही मुझको। लेकिन अगर यह लड़की होते तो… बाप रे बाप
दरअसल, यूपी की नौकरशाही और पुलिस के साथ ही जनता के एक हिस्से में कन्याओं के प्रति निहायत हेय, घटिया, नृशंस, लिंग-विभेद और हत्यारी मानसिकता पैदा हो गयी है। सबसे नराधम तो पुलिस और प्रशासन के लोग हैं। वे सीधे-सीधे अपराध न भी करें, लेकिन अपराधों को छिपाने के लिए एकजुट होकर उस पर शानदार कालीन-गलीचा जरूर बिछा देते हैं।
भगवान का लाख-लाख शुक्र है। अब देख लीजिए न, कि यह जमालगोटा जी मेरे नाती हैं, और दुनिया की सबसे बड़ी और महान बात यह कि यह लड़का हैं, कन्या नहीं।
अगर यह कन्या होते तो जौनपुर के लोग उसे गहरी खाई में फेंक देते। उसके बाद सरकारी अस्पताल से लेकर प्राइवेट अस्पताल तक उसके अज्ञात तीमारदारों को जहां-तहां दौड़ाया जाता, जहां उसकी सांसें चंद घंटों में ही हमेशा के लिए थम जातीं। फिर हार कर वे तीमारदार बमुश्किलन छह घण्टा पहले दुनिया में आकर और इस दुनिया की निर्ममता से प्रताड़ित होकर लाश में तब्दील होकर उस बच्ची को गोमती नदी के प्रवाह में समर्पित कर देते।
उधर सरकारी अस्पताल का भंडारी पुलिस चौकी रोहित मिश्रा और अपर पुलिस अधीक्षक डॉ संजय कुमार पचास बहाने बना कर मामला रफा-दफा कर देता, और डीएम मनीष वर्मा के साथ पुलिस अधीक्षक अजय साहनी नवजात बच्ची की लाश को गोमती नदी में बहुत दूर तक प्रवाहित होने तलक के बाद भी न तो फोन उठाते, और न ही वाट्सएप पर उससे जुड़ी जानकारी-पूछताछ के जवाब भी नहीं देते।
और इस तरह आने वाले कुछ ही वर्षों में कन्याओं का समूल नाश केरने का कुछ इस तरह व्यवस्था पुख्ता कर देते कि नवरात्रि और देवी-पूजन का नामोनिशान ही लोगों के दिल-दिमाग से खत्म हो जाता।
लोग भूल जाते कि भारत वर्ष में कन्या का अस्तित्व भी दुनिया का आधा सर्वोच्च पक्ष और अनिवार्य सह-दायित्व है।