किसी की दूकान चमकाने का काम आईजी का कैसे ?

बिटिया खबर
: आईजी-एलओ की इस चिट्ठी को बेचा जा रहा है सोशल-साइट्स में : बाकायदा एडवाइजरी जारी कर दी है आईजी-एलओ ने : यह तक जानने की जरूरत नहीं समझी आईजी ने कि कौन सा संगठन पत्रकारों का है, या फिर ठेलुहों का :

कुमार सौवीर
लखनऊ : यूपी के बड़े-बड़े पुलिस अफसरों को जो दायित्‍व दिया गया है, उसे सम्‍भालने के बजाय वे अब ऐसा काम कर बैठते हैं, जिसका असर ही उल्‍टा-पुल्‍टा ही नहीं हो जाता है, बल्कि उनका नतीजा अक्‍सर अनर्थ से भी ज्‍यादा घातक हो जाता है। ऐसे ही एक बड़े ओहदेदार आईजी हैं, नाम है प्रवीण कुमार। पद है यूपी में कानून-व्‍यवस्‍था सम्‍भालने वाला आईजी- एलओ (कानून-व्‍यवस्‍था)। अब यह अलग चर्चा का विषय बन सकता है कि प्रवीण कुमार अपने मौजूदा पद को किस तरह सम्‍भाल रहे हैं, या उनकी उपयोगिता और उसकी उपादेयता यूपी के कानून-व्‍यवस्‍था को लेकर कितनी है, लेकिन इतना तो तय है कि फिलहाल तो उन्‍होंने कई ऐसे तथाकथित और स्‍वयंभू पत्रकारों की दूकान चमकाने की कवायद प्राण-प्रण से छेड़ दी है। पता चला है कि ऐसे कागजी संगठनों को मान्‍यता देने की शैली में उन्‍होंने बाकायदा यूपी के सभी अपर महानिदेशकों को एडवाइजरी तक जारी कर दी है।
प्रवीण कुमार ने प्रदेश के सभी अपर पुलिस महानिदेशकों को जारी अपनी यह सलाह-निर्देशनुमा एडवाइरी जिस उमेश चंद्र द्विवेदी नामक व्‍यक्ति के पत्र के अनुक्रम में जारी की है, प्रवीण कुमार के अनुसार यह पत्र किसी भारतीय पत्रकार संघ का अध्‍यक्ष है। लेकिन यह अनजान से भारतीय पत्रकार संघ की वैधानिकता, उसके सदस्‍यों की वैधानिकता वगैरह के जाने-बूझे ही प्रवीण कुमार ने यह एडवाइजरी जारी कर दी है। लखनऊ के पत्रकारिता जगत में भारतीय पत्रकार संघ जैसा कोई संगठन अस्तित्‍व में है ही नहीं। लेकिन इसके बावजूद प्रवीण कुमार ने ऐसा पत्रकार जारी कर दिया। लेकिन इससे भी ज्‍यादा क्षोभजनक तो यह रहा है कि इस पत्र को सोशल साइट्स पर वायरल कर समाज में इस अनजान संगठन की बड़े पैमाने पर कर दी गयी। उपजा के एक वरिष्‍ठ पदाधिकारी का आरोप है कि इस पत्र को वायरल कर उस तथाकथित संगठन के कतिपय लोगों ने बाकायदा अपनी दूकान चमका डाली है।
सात बिन्‍दुओं पर यह एडवाइरी जारी की है प्रवीण कुमार ने। जरा समझ लीजिए कि इस एडवाइजरी का मूल बिन्‍दु क्‍या है और उसका विश्‍लेषण क्‍या है। पहले बिन्‍दु में तो प्रवीण कुमार ने लिखा है कि पत्रकारों को समाचार संकलन में जिला और थाना स्‍तर पर सहयोग किया जाए। सवाल यह है कि ऐसी सलाह जारी करने की जरूरत क्‍या समझी प्रवीण कुमार ने। क्‍या इसके पहले तक थाना स्‍तर पर पत्रकारों को गम्‍भीर दिक्‍कतें होती रही हैं ?
दूसरा बिन्‍दु यह है कि ऐसे पत्रकारों की सम्‍मान की सुरक्षा विशेष तौर पर किया जाए। सवाल यह है कि पत्रकारों को कहां अपमानित किया जा रहा है ? तीसरा यह कि पत्रकारों की शस्‍त्र लाइसेंस लिखने में पुलिस द्वारा परेशान न किया जाए। यानी अब तक इस मामले में गम्‍भीर दिक्‍कतें चल रही हैं ? चौथा यह कि पत्रकारों को पुलिस पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर उनके खिलाफ कार्यवाही न करे। यानी पुलिस अब तक पूर्वाग्रसित होकर पत्रकारों से व्‍यवहार करती है ?

यह किस पत्रकार-संघ पर कृपालु हैं आईजी साहब

पांचवां कि पत्रकारों का उत्‍पीड़न होने पर पुलिस कार्यवाही की जाए। यानी अब तक इस मामले में पुलिस का व्‍यवहार घटिया या शर्मनाक अथवा अमानवीय है। छठवां यह कि पत्रकारों को आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान पुलिस द्वारा पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर 107-116 की कार्यवाही नहीं की जाए। अब प्रश्‍न यह है कि किस आधार पर पुलिस किसी भी व्‍यक्ति को उपरोक्‍त धाराओं में शिकंजे में कसती है। और अगर ऐसा होना अनिवार्य होता है तो फिर पुलिस को किसी को छूट क्‍यों दी जानी चाहिए ? सातवां बिम्‍ब यह कि पत्रकारों को पुलिस कार्यालय पर जाने पर उनसे पुलिस अच्‍छा व्‍यवहार करे और समाचार संकलन में सहयोग करे। इस जवाब तो प्रवीण कुमार को पहले से ही पता होना चाहिए था कि पुलिस आफिसों में पत्रकारों के साथ व्‍यवहार होता है या नहीं।
यह पत्र यूपी के सभी जोनल अपर पुलिस महानिदेशकों को जारी किया गया है और कहा गया है कि यह पत्र सभी जिलों के जिला प्रमुखों को भी भेज कर अपने स्‍तर से भी निर्देशित किया जाए।
लेकिन हमारा सवाल थोड़ा दीगर है। पत्रकारों के दमन-उत्‍पीड़न की बात पर एडवाइजरी जारी करने के पहले तो प्रवीण कुमार को शाहजहांपुर में पांच बरस पहले वहां के नगर कोतवाल के नेतृत्‍व में पुलिसवालों द्वारा जागेंद्र सिंह को जिन्‍दा फूंक डालने के मामले में क्‍या कार्रवाई की। कई ऐसे मामले हैं जिसमें पत्रकारों के साथ बाकायदा उत्‍पीड़न किया गया, उनसे उगाही की गयी और सरेआम उन्‍हें अपमानित किया गया, लेकिन पुलिस खामोश रही। आज भी खामोश है। फिर तो ऐसी एडवाइजरी जारी के पहले तो ऐसे मामलों पर जिम्‍मेदार अफसरों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए, केवल एडवाइजरी जारी करने से केवल चंद लोगों की दूकान तो चमकायी जा सकती है, लेकिन पत्रकारों का सम्‍मान नहीं बचाया जा सकता है।
वैसे भी मेरी चिन्‍ता का विषय पत्रकारों का सम्‍मान बचाना नहीं, बल्कि पुलिस द्वारा आम आदमी को अक्‍सर पीडि़त-उत्‍पीडि़‍त किये जाने वाली घटनाओं पर रोक लगाना ही है।
तो ऐसा है प्रवीण कुमार जी, आप ऐसे लोगों के बजाय आम आदमी के प्रति अपनी निष्‍ठा और समर्पण का प्रदर्शन करें, वही बहुत होगा। ऐसे तेलू-तेलुआ पत्रकार तो आपको मौका मिलते ही अपमानित कर देंगे। तो क्‍या हम उम्‍मीद करें कि आइंदा ऐसी एडवाइजरी जारी करने के बजाय, पहले असल और नकल पत्रकार की पहचान जरूर कर लेंगे ? इतना न भी हो, तो कम से कम इतना तो कर सकते हैं आप, कि सूचना विभाग से पूछ लें कि कौन असल और कौन नकल है।

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