डीएम गुस्‍से में चिल्‍लाया: सांडा के तेल की शीशी फेंको, सल्‍लू को भगाओ

बिटिया खबर

: सल्‍लू और मधुकर तिवारी वाले सांडा के तेल में नहीं, इस्‍तेमाल करने वाले डीएम में फर्क है : जौनपुर का धंधेबाज पत्रकार स्‍कूल‍ छोड़ अब डीएम-अफसरों से गलबहियां करता है : शिक्षक जगत और पत्रकारिता ही नहीं, प्रशासन पर भी लघु-शंका : काशी पत्रकार संघ के उपाध्‍यक्ष कमलेश चतुर्वेदी से सुनिये सल्‍लू का सांडा-तेल किस्‍सा :

कुमार सौवीर

लखनऊ : गाजीपुर से सटा और यूपी की पूंछ की तरह दिखने वाले जिला है बलिया। वहां बाटी-चोखा, सेतुआ के लेस्‍सी और वहां के कुख्‍यात नेशनल-गेम के अलावा पत्रकारों की करतूतें खौखियाते बंदरों की तरह खासी गुलाटियां मारने में माहिर मानी जाती हैं। चूंकि बाटी-चोखा और सेतुआ के लस्‍सी तो ग्राहक की भूख और उसकी आर्थिक क्षमताओं के साथ उसके दूकानदार के रिश्‍ते पर आश्रित होती है। लेकिन नेशनल-गेम के बारे में चर्चाएं तो खूब होती हैं, मगर एक खेल किसी इकाना स्‍टेडियम में आयोजित न हो कर सम्‍पूर्ण एकांतिक रण-क्षेत्र तक ही सीमित होता रहता है, इसलिए खबरें अक्‍सर मिलती ही रहती है सार्वजनिक सड़कों पर। मगर अभी एक पत्रकार की हत्‍या और इसी महीने तीन पत्रकारों को जेल में भेजने की कवायदों के पीछे जिस तरह डीएम ने फैसला किया था, उससे प्रशासन के साथ ही पत्रकारों की भी नंगई पूरी तरह खुल कर नंगी हो गयी है।

बार संघ व व्यापार मंडल नेताओं ने कहा: #@&^*% है मधुकर तिवारी 

जिस तरह की खबरें सामने आने लगी हैं, उससे पता चला है कि पेपर-लीक को लेकर पत्रकारों ने ही जिला विद्यालय निरीक्षक ब्रजेश मिश्र को फोन कर बताया था और कहा था कि वे इस खबर को दबा सकते हैं। बताते हैं कि ब्रजेश मिश्र ने डीएम वीरविक्रम सिंह को बताया। डीएम ने दांव खेल कर पहले तो पत्रकारों से वाट्सऐप पर वह पेपर मंगवाया, और फिर पेपर लीक करने के आरोप में पत्रकारों को जेल भेज दिया। लेकिन हैरत की बात है कि इस मामले में पत्रकारों को जेल भेजने के बावजूद प्रशासन ने पेपर-लीक कांड में किसी लेन-देन का कोई भी खुलासा अब तक नहीं किया है। और तो और, अगर इस तर्क को मान लिया जाए कि पत्रकारों से डीआईओएस ब्रजेश मिश्र की लेन-देन की कोई फोन-टॉक हुई थी, और ब्रजेश मिश्र ने उसकी सूचना डीएम को दे कर कार्रवाई की गुजारिश की थी, तो डीएम इंद्र विक्रम सिंह ने डीआईएएस को भी जेल क्‍यों भेज दिया। इतना ही नहीं, हालांकि दोलत्‍ती संवाददाता को बलिया के ही एक पत्रकार ने बताया कि अजीत ओझा सरकारी स्‍कूल के शिक्षक नहीं हैं, बल्कि उनका नाम एक वित्‍तविहीन स्‍कूल में शिक्षक के तौर चलता है। 

देखो-देखो। बात-बात पे आंसू टपकाने वाला डीएम, और दांत चियारने वाला पत्रकार

आइये, जरा गाजीपुर की ओर घूम लिया जाए, जो गाजीपुर में गर्व का विषय लाट-साहब का कब्र ही नहीं, बल्कि अफीम का पानी पीकर मस्‍त रहने वाले बंदरों का शहर है। लेकिन वहां के पत्रकार सजग ही रहते हैं। ऐसे ही हैं एक सल्‍लू। खासे परिश्रमी हैं, और दायित्‍व-बोध से सराबोर भी हैं। मिश्रा बाजार में सड़क पर अपनी गुमटी है सल्‍लू की। दूकान है बारबर-शॉप। सिर के बाल और दाढ़ी संवारने का शिल्‍प कोई सल्‍लू से सीखे। दायित्‍व-बोध तो इतना कूट-कूट कर भरा हुआ है सल्‍लू पर कि एक दिन डीएम के घर ही पहुंच गये।

बहरहाल, दूसरी ओर पर गाजीपुर से सटा है जिला जौनपुर। वहां हैं एक मधुकर तिवारी, जो अपनी पत्रकारिता की दूकान चकाचक एक मधुकर तिवारी। वे ठीक से लिखने की तमीज भी नहीं रखते, लेकिन पूर्वांचल यूनिवर्सिटी में चूंकि नकद भुगतान कर पीएचडी डिग्री झटकने वालों में वे भी शामिल हैं, इसलिए अपने नाम के आगे डॉक्‍टर भी लिखते हैं। बाकी गाजीपुर के सल्‍लू की विशेषज्ञता के दूसरे ही सही, लेकिन अपने ग्राहक के बाल सजाने-संवारने में खासे माहिर माने जाते हैं मधुकर तिवारी। शातिर इतना, कि पिछले पचीस बरसों से सरकार, डीएम और बीएसए को दिखा-दिखा कर ताल ठोंकते घूमता है, कि जिस पर दम को मधुकर तिवारी का उखाड़ ले।

माना कि बलिया का डीएम चोर है। लेकिन तुम क्‍या हो पत्रकार जी ?

खैर, तो पहली बात तो सल्‍लू से ही होगी। यह किस्‍सा सुनाया है कमलेश चतुर्वेदी ने। कमलेश करीब ढाई दशकों से पत्रकारिता में हैं और हिन्‍दुस्‍तान और आज समेत कई अखबारों में सेवाएं दे चुके हैं। आजकल वे काशी पत्रकार संघ के उपाध्‍यक्ष के पद पर भी हैं। कमलेश से सल्‍लू का किस्‍सा सुनाया। वे बताते हैं कि बहुत पहले से आज अखबार का ब्‍यूरो चीफ के पद पर गाजीपुर गये थे। एक सुबह बाल कटवाने के लिए उन्‍होंने एक से पता पूछा, तो उसने सड़क पर अवैध रूप से खड़ी गयी एक गुमटी की ओर इशारा कर दिया। पूरे सम्‍मान के साथ सल्‍लू से उनका स्‍वागत किया। ऊंची कुर्सी पर बिठा कर उनके कांधे पर एक तौलिया रख कर पहले तो पानी का स्‍प्रे किया, फिर कैंची को चैं-चैं किया। बातचीत हुई तो सल्‍लू भी गदगद। खुद ही बता गये कि वे भी पत्रकार हैं। अखबार है खुल्‍लमखुल्‍ला नामक समाचारपत्र। कार्ड भी दिखाया जो संपादक ने जारी किया था।

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खाली वक्‍त पर सल्‍लू जी कचेहरी के आसपास की खबरें भी लिख कर खुल्‍लमखुल्‍ला में छापते हैं। एक दिन उन्‍होंने कचेहरी के भीतर सांडा का तेल बेचने वाले दूकानदार की खबर लिख दी। सल्‍लू का तर्क था कि कचेहरी में सांडा या कोई भी सामान बिना प्रशासन के कैसे कोई बेच रहा है। इतना ही नहीं, शाम को सल्‍लू वह अखबार लेकर डीएम के दफ्तर जा पहुंचे। साथ में सांडा का तेल की एक शीशी भी थी। सल्‍लू ने डीएम को सांडा तेल की शीशी दी और अखबार दिखाया, तो डीएम नाराज उन्‍होंने धमकाया कि अब न आइंदा कोई सांडा का तेल बेचेगा, और न ही वह आइंदा खबरें लेकर मेरे पास आना। इतना ही नहीं, डीएम ने घंटी बजा कर चपरासी से हुक्‍म दिया कि सांडा तेल की शीशी किसी नाले पर फेंक दो। और इस सल्‍लू को भी यहां से भगाओ।

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अब सुनिये जौनपुर का किस्‍सा। यही रहता है पत्रकारिता जगत का सबसे बड़ा धंधेबाज, जिसने केवल सरकार ही नहीं, बल्कि डीएम, एसपी और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी तक की नाक काट रखी है। और सच बात तो यह है कि इस धंधेबाज से अपनी नाक काटवाने के लिए जिले के अफसर भी लालायित होते हैं। करीब पचीस बरस पहले मधुकर तिवारी की नौकरी सरकारी प्राथमिक विद्यालय में सहायक शिक्षक के तौर पर हुई, लेकिन इसके बाद इसने नौकरी के नाम पर खजाने से वेतन के तौर पर रकम तो नियम से उगाही है, लेकिन स्‍कूल कभी भी नहीं गया। तब से ही वह जिले के जिलाधिकारी जैसे अफसरों के अलावा मंत्रियों और नेताओं के आगे-पीछे रहता है। बोर्ड फ्लैक्‍स की एक बड़ी फैक्‍ट्री भी खोल दी है। सरकारी विद्यालय के खजाने से सवा लाख रुपया महीना अलग से मिलता है। इतना ही नहीं, कई अखबारों में तो यह बाकायदा नौकरी हासिल कर वेतन भी झटकता रहा।

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कुछ भी हो, बलिया के डीएम ने तीन पत्रकारों को जेल भेज दिया, सल्‍लू को भले ही गाजीपुर के डीएम ने घर से भगा दिया, लेकिन जौनपुर के डीएम समेत सारे अफसरान लोग इस धंधेबाज के साथ नियमित धंधेबाजी करते हैं। जौनपुर के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों की संख्‍या शर्मनाक तरीके से गिरती जा रही है। जिसका मूल कारण है मधुकर तिवारी जैसे शिक्षकों का व्‍यवहार, जो कभी स्‍कूल में जाते ही नहीं। वे अफसरों के आगे-पीछे घूमते हैं। डीएम खुश, तो बीएसए भी खुश। कुछ महीना पहले कुछ बवाल हुआ, तो मामला निपटाने की गरज से बीएसए ने मधुकर तिवारी को सस्‍पेंड कर दिया। लेकिन जांच अब तक धेला भर नहीं कर पाये यह डीएम और बीएसए लोग।

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लेकिन शर्म की बात है कि डीएम जानते-समझते हुए भी इस अपराधी के सामने बाकायदा सीना तान कर प्रशासन और पुलिस की निंदा करते वाले ज्ञापन से कुबूल करता है। अपराधी अपनी फोटो खिंचवाता है और डीएम उन पत्रकारों को पूरे सम्‍मान के साथ जलपान कराता है। जाहिर है कि डीएम भी खुद स्‍कूलों की बदहाली का जश्‍न मना रहा है और उसके इस कुकृत्‍य का साक्षी बने यह तथाकथित पत्रकारगण तालियां बजा रहे हैं।

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