: जौनपुर में चंद घंटों पहले जन्मी बच्ची को मिनटों में जल-प्रवाहित करने पर मजबूर : लाश बहायी गयी नदी में, जघन्य हत्या का अपराध रफा-दफा : डीएम-एसपी है कुम्भकर्ण, एएसपी-दारोगा धंधेपानी में बिजी, पुलिस ने बच्ची खोजने की कोशिश तक नहीं की : बेहया अफसर नंग-धड़ंग, हर कदम पर सिर्फ झूठ :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आला अफसर बंगले के भीतर मौज-मस्ती में, एएसपी और दारोगा पक्का झूठा, सरकारी डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस में, अस्पताल सन्नाटे में, नवजात गयी दम तोड़ कर गोमती नदी के जल-प्रवाह के हवाले।
यह हालत है योगी सरकार में नवजात बच्ची तक के साथ अमानवीय व्यवहार की। अभी चंद घंटों पहले ही उसका जन्म हुआ, मां-बाप ने उसे बच्ची समझ कर भार समझा और उसे गहरे पुल से नीचे फेंक दिया। उसे समाज और सरकारी व्यवस्था से उम्मीद होने के बाद सिर्फ दर्दनाक मौत ही मिली। सबसे शर्मनाक हरकत तो सरकारी अफसरों और डॉक्टरों ने की। सच बात तो यही है कि इन लोगों ने ही मिल कर उस बच्ची की सांसों का दम घोंट कर उसे मौत के घाट उतार दिया।
यह हालत है जौनपुर में नन्हीं, और नवजात बच्चियों की। आला अफसर बंगले में दुबके, दारोगा पक्का झूठा, सरकारी डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस में, अस्पताल सन्नाटे में। नतीजा यह कि सरकारी अस्पताल पहुंचायी गयी उस नवजात को इलाज ही नहीं मिला। सरकारी अमले की बेशर्मी की हालत यह रही कि जिला अस्पताल के पड़ोसी पुलिस चौकी का इंचार्ज अपने हमराहों के साथ मौके तो गया, लेकिन नवजात को बचाने की कोशिश करने के बजाय उस बच्ची को सरकारी अस्पताल के बजाय निजी डॉक्टरों के पास ले जाने की सलाह दे कर मौके से निकल गया। सरकारी अस्पताल में कोई डॉक्टर था ही नहीं, लेकिन अस्पताल के किसी भी कर्मचारी ने पुलिस को मेमो भेजने की अनिवार्य जरूरत को समझा ही नहीं। जौनपुर के ऐसे हैवानों-शैतानों की इन वहशियों की इस दरिंदगों के चलते मुख्यमंत्री योगी के दावों का झूठापन बेपर्दा हो गया और वह नवजात बच्ची चंद घंटों में ही दम तोड़ गयी।
बेशर्मी की हालत देखिये। कलीचाबाद के नहर पुल से 30 फीट नीचे फेंकी गयी इस बच्ची को जब कुछ लोग बचा कर सुबह साढ़े आठ बजे सरकारी जिला महिला अस्पताल ले गये, तो काफी देर तक वहां कोई डॉक्टर ही नहीं मिला। पता चला कि वहां ग्यारह बजे तक कोई डॉक्टर नहीं मिलेगा। इसी बीच बच्ची के साथ अस्पताल ले गये कुछ लोग जब सरकारी महिला अस्पताल से 50 मीटर दूर बनी पुलिस चौकी पहुंचे, तो दो-एक सिपाहियों के साथ पुलिस का दारोगा रोहित मिश्र अस्पताल पहुंचा। मौके पर उसने बच्ची के साथ आये लोगों को सलाह दी कि जिला अस्पताल में रुकने का कोई मतलब नहीं होगा, इसलिए बेहतर हो कि वे लोग उस बच्ची को लेकर प्राइवेट डाक्टर के अस्पताल में ले जाएं।
लेकिन हैरत की बात है कि रोहित मिश्र इस बात पर साफ इनकार कर रहा है कि उसकी भेंट बच्ची और उसके साथ आये लोगों से मुलाकात हुई थी। वह सिरे से मुकर रहा है, और साफ कहता है कि जब वह महिला अस्पताल गया था, उस समय तक वह बच्ची के साथ आये लोग अस्पताल से चले गये थे। लेकिन कहां गये, इसकी जानकारी रोहित मिश्र नामक दारोगा को नहीं है। यह पूछने पर कि एक घायल बच्ची के अस्पताल पहुंचने के बाद तो अस्पताल के लोगों को उसकी आमद की सूचना का मेमो पुलिस चौकी को देना जरूरी क्यों नहीं समझा, रोहित मिश्रा मूर्खता बात करने लगा।
दोलत्ती का कहना था कि एक मरणासन्न को जिला अस्पताल ले जाने और वहां से कहीं और ले जाने की खबर उसने पुलिस के रजिस्टर पर क्यों दर्ज नहीं की। यह भी जवाब पूछा गया कि एक नवजात को तीस फीट नीचे मौत के मुंह में फेंकने की नृशंस हरकत को संज्ञेय अपराध के तौर पर दर्ज न करने के लिए उसने क्या कार्रवाई की, रोहित मिश्र ने फोन काट दिया। दोबारा फोन मिलाने पर रोहित मिश्र भी दोलत्ती के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे पाया। यह पूछने पर कि इंसान के तौर पर आप एक अनोखे व्यक्ति हैं, लेकिन वर्दी पहनते ही इतने क्रूर, नृशंस और अमानवीय कैसे हो जाते हैं, रोहित मिश्र ने दोबारा फिर फोन काट दिया।
हैरत की बात है कि एक ओर तो भंडारी पुलिस चौकी का दारोगा रोहित मिश्र उस बच्ची और उसकी देखभाल देखने वालों से मुलाकात तक नहीं कर पाने का दावा कर रहा है, वहीं तीमारदारों का कहना है कि सरकारी महिला अस्पताल से हताश होकर उस बच्ची को लेकर जब वे लोग जा रहे थे, सब्जी मंडी में उनकी भेंट अपर पुलिस अधीक्षक डॉ संजय कुमार से हुई थी। उन लोगों ने संजय कुमार की गाड़ी को रोक कर बच्ची की बदहाली का जिक्र किया था, तो बताते हैं कि डॉ संजय कुमार ने उन लोगों को सलाह दी थी कि वे लोग इस बच्ची को लेकर शिशु निकेतन ले जाएं। लेकिन यह बताने की जरूरत नहीं समझी संजय कुमार ने कि वह शिशु निकेतन कहां है और उस मरणासन्न बच्ची को पुलिस ने अपनी कस्टडी में लेकर उसे इलाज करने के अपने दायित्व को उठाने के बजाय दूसरों को शिशु निकेतन तक भिजवाने की सलाह देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला क्यों झाड़ा।
हालांकि सुबह जब दोलत्ती ने डॉ संजय कुमार से इस बारे में बातचीत की, तो संजय का कहना था कि उन लोगों को उधर-इधर भटकने के बजाय सीधे 118 नम्बर पर एम्बुलेंस बुलानी चाहिए। संजय सिंह यह नहीं बता पाये कि यह काम संजय कुमार ने खुद क्यों नहीं किया। और इसकी अपेक्षा मरणासन्न बच्ची की देखभाल के लिए जहां-तहां भटक रहे लोगों की जिम्मेदारी पर क्यों थोप दिया। संजय कुमार से दोलत्ती ने इस बारे में जब पूछा तो उसका कहना था कि वह इस बारे में जानकारी हासिल करके बतायेगा। लेकिन उसके साढ़े तीन घंटों तक तक भी अपर पुलिस अधीक्षक डॉ संजय कुमार ने यह जानकारी देने की जरूरत नहीं समझी कि उस बच्ची के मामले में पुलिस का अगला दायित्व क्या है।
हालांकि इस बारे में बीती रात ही वाट्सऐप पर दोलत्ती डॉट कॉम ने इस बारे में सूचना डीएम और एसपी को दे दी थी। लेकिन यह सूचना भेजने के बाद भी न तो डीएम ने इस पर संज्ञान लिया और न ही पुलिस कप्तान ने। फोन नहीं उठाना तो इन कामचोरों की फितरत में शामिल हो चुका है।