पगडंडियों पर धूल फांकती हैं अंजू सिंह
महिला सशक्तिकरण की जीती जागती मिसाल है जौनपुर की यह महिला
स्वयं सहायता समूह द्वारा हजारों गरीब महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर
गरीबों की मदद के लिये रहती है तैयार, भ्रूण हत्या को रोकने की चला रही हैं मुहिम
यूपी के जौनपुर में महिला सशक्तिकरण एक नये और अनोखे दौर में है। आज हम इक्कीसवीं सदी में पहुंच गये है और पूरा विश्व महिला सशक्तिकरण की बात कर रहा है और वो भी तब जब आज ही के दिन जब पूरा विश्व महिला दिवस मना रहा हो ऐसे में हमारा भी फर्ज है कि उन महिलाओं को वो दर्जा दिया है जिसके लिये उन्होंने ना सिर्फ अपने परिवार को समय देने के साथ साथ समाज के लिये भी कुछ कर दिखाया। इन्हीं में से एक है डाक्टर अंजू सिंह। कहने को तो वे सिंगरामऊ जमींदार परिवार से जुडी है पर उनकी समाजसेवा व महिलाओं को आत्मनिर्भर करने की ललक ने ना सिर्फ उन्हें यहां की हवेली से निकलकर गांव की पगडंडियों पर चलने पर मजबूर किया। बल्कि उन्होंने हजारों गरीब महिलाओं व दलितों का उत्थान कर उन्हें आत्मनिर्भर बना दिया जिसके चलते आज उनके परिवार में दो वक्त की रोटी के साथ साथ समाज में सर उठाकर चलने की आदत बना दी है।
जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर सिंगरामऊ जमींदारी में राजा हरपाल सिंह की बहू के रूप में डा. अंजू सिंह वर्ष 1984 में यहां पहुंची तो उन्होंने कुछ सपने सजो रखे थे। वो चाहती थीं कि भारत में जब 21वीं सदी की बात होती है और महिलाओं को आत्मनिर्भर करने के लिये तमाम कार्यक्रम चलाये जाते है पर ना जाने क्यों आज भी महिलाओं को वो मुकाम नहीं मिल पाता जिसकी वे हकदार होती है। ऐसे में उन्होंने अपनी हवेली से ही जनसेवा की गंगोत्री बहाने का फैसला किया और निकल पड़ी महिलाओं को आत्मनिर्भर करने के लिये आज उनके प्रयास से ना सिर्फ सिंगरामऊ में बल्कि पूर्वांचल के हजारों महिलाओं ने उनके साथ मिलकर ना सिर्फ समाज में अपना मुकाम हासिल किया बल्कि महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिये उनकी मुहिम सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिये उनकी मुहिम में शामिल हो गयी।
एक जनवरी 1962 को जन्मी डा. अंजू सिंह के पिता श्री विरेन्द्र नारायण सिंह बिहार के छपरा में वरिष्ठ अधिवक्ता है और बार काउसिंल के अध्यक्ष भी रह चुके है। हालांकि वे छपरा जिले की रहने वाली है पर उनका परिवार पटना में ही रहता है। चार बहनों व एक भाई में तीसरे नम्बर पर रहने वाली रानी डा. अंजु सिंह जब सिंगरामऊ पहुंची तो उन्होंने अपने गांव की उन गरीब महिलाओं का दर्द देखा जिन्हें ना सिर्फ काम काज से रोका जाता था बल्कि शिक्षा से वंचित रखा जाता था। पर इन महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिये उन्होंने हवेली को छोड़ा और निकल पड़ी गांव की पगडंडियों पर धूल फांकने के लिये। यही वजह है कि यहां शासन का नहीं बल्कि सामाजिक आर्थिक प्रयास की चमक गांव के लोगों में देखी जा सकती है।
डा. अंजू सिंह ने बताया कि उनके पिता श्री विरेन्द्र नारायण सिंह ने उन्हें जो संस्कार दिये वे उसे आज पूरे समाज को बांटने के लिये निकल पड़ी है और इसमें लोगों का बहुत बड़ा सहयोग मिल रहा है। उन्होंने कहा कि उनका भाई लंदन में आर्थोसर्जन है और तीन बहने अपने ससुरालों में खुशी के साथ जीवन बीता रही है। सिंगरामऊ घराने की अंजू सिंह ने अपनी पढ़ाई मुजफ्फरपुर विश्वविद्यालय से की थी जबकि मेडिसिन में कलकत्ता विश्व विद्यालय से की थी जबकि मेडिसिन में कलकता विश्वविद्यालय से उन्होंने डिग्री हासिल की और श्रीलंका से उन्होंने मेडिसिन में डाक्टरेट की उपाधि हासिल की। रानी डा. अंजू सिंह को कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है। उनका कहना है महिलाओं को आत्मनिर्भर करने के लिये समाज को मिलकर काम करना होगा। तभी हम भ्रुण हत्या दहेज व सामाजिक बुराईयों को दूर कर सकेंगें। जिसके चलते आज भी महिलाओं को नीचा दिखाया जाता है जरूरत है उन महिलाओं को आत्मनिर्भर करने की जिनके पास कुछ कर गुजरने की तमन्ना है पर उनके परिवार वाले उन्हें रोकते है।
डा. अंजू सिंह ठाकुरवाणी महिला विकास समिति के जरिये ना सिर्फ गरीबों की मदद करती है बल्कि गांव के बेसहारा व बीमार लोगों का इलाज करने के लिये हमेशा तैयार रहती हे यहीं वजह है कि आस पास के लोग उनका बहुत सम्मान करते है। देखा जाय तो आज के इस युग में जिस तरह से राजनीति के सहारे सत्ता के कुर्सी पर पहुंचे लोग गांव के पैदल चलने से गुरेज करते है वहीं हवेली की शानों शौकत व आराम को छोड़कर रानी डा. अंजू सिंह समाज की निःस्वार्थ भाव से सेवा कर रही है ऐसे में उनसे लोगों से सबक लेना चाहिये जो लोग सत्ता के गलियारों में बैठक हजारों करोड़ों रूपया जनता का अपने ऐसों आराम में बरबाद कर देते है। संशोधनों के साथ राष्ट्रीय सहारा से साभार