श्रमिक ट्रेन में पांच दिन सड़ती रही युवक लाश

दोलत्ती

: बस्ती के युवक का शव किसी को पता ही नही, प्रशासन में हड़कंप : झांसी से 23 मई को इसी ट्रेन से बस्ती अपने घर पहुंचने के लिए सवार हुआ था युवक :

बीएन मिश्र

बस्ती ; मुसीबतों का पहाड़ तोड़कर प्रवासी मजदूरों के घर वापसी का सिलसिला लगातार जारी है। और ऐसे में उनके साथ कोई अनहोनी हो जाए तो कई दिनों तक उनकी सहायता करने वाला भी कोई नहीं है। ऐसा ही मानवता को शर्मसार करने वाला एक मामला झांसी रेलवे स्टेशन का सामने आया है। बस्ती जिला निवासी प्रवासी मजदूर का शव पांच दिनों तक श्रमिक स्पेशल ट्रेन के शौचालय में पडा सड़ता रहा और जिम्मेदारों को इसकी भनक को कौन कहे दुर्गन्ध तक नहीं पहुंची।झांसी से गोरखपुर के लिए 23 मई को रवाना हुई श्रमिक स्पेशल ट्रेन वापस झांसी पहुंच गई उसमें युवक का शव पड़ा रहा इसकी जानकारी पांच दिन बाद तब हुई जब ट्रेन को सेनेटाइज किया जा रहा था। शव मिलने की सूचना के बाद रेलवे स्टेशन पर हड़कंप मच गया। यहां रेलवे के सुरक्षा व्यवस्था के सारे दावे फेल साबित हो रहे हैं। ऐसे में ट्रेनों की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठना लाजमी है। अब लापरवाही के जांच की मांग भी उठने लगी है।

बतादें कि 23 मई को स्पेशल श्रमिक ट्रेन से गोरखपुर जाने के लिए बस्ती का प्रवासी मजदूर सवार हुआ था। गोरखपुर से 27 मई को लौटी 04168 श्रमिक स्पेशल ट्रेन को शाम के वक्त अगली यात्रा के लिए रेलवे यार्ड में तैयार किया जा रहा था। सेनेटाइज के समय एसई 068226 बोगी के शौचालय से बदबू आने से जाकर  रेलकर्मियों ने 38 वर्षीय युवक का शव देखकर सन्न रह गए। तत्काल  जीआरपी और आरपीएफ को सूचना दी गई।तलाशी के दौरान युवक की जेब से मोबाइल फोन, 27282 रुपये नगद, आधार कार्ड, पैन कार्ड, एटीएम के अलावा 23 मई का झांसी से गोरखपुर जाने का यात्रा टिकट मिला।

आधार कार्ड में मृतक का नाम मोहन शर्मा पुत्र सुभाष शर्मा निवासी हलुआ थाना गौर जिला बस्ती लिखा था। इसकी जानकारी जीआरपी ने परिजनों को दी। जीआरपी ने शव को कब्जे में लेकर कोरोना जांच और पोस्टमार्टम कराने के लिए भेज दिया। सूचना पाकर मौके पर पहुंचे मृतक के फूफा कन्हैया लाल शर्मा, साढू भाई और चाचा शुक्रवार सुबह जीआरपी थाने पहुंच गए। उधर पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण स्पष्ट नहीं है जिसके लिए जीआरपी पुलिस ने विसरा सुरक्षित रख लिया है और कोरोना की जांच रिपोर्ट भी नहीं मिल पाई है।
परिजनों ने बताया कि मृतक मोहन के पिता का काफी पहले ही मौत हो चुकी है। पत्नी व चार मासूम बच्चों की परवरिश के लिए वह कमाने मुंबई गया था। जहां चिप्स फैक्ट्री में मोटर वाहन चलाने का काम कर रहा था। लाक डाउन के कारण फैक्ट्री बंद हो गई जिसके कारण वह बेरोजगार होने से घर वापस लौटने के लिए झांसी से बस्ती आने के लिए श्रमिक ट्रेन में सवार हुआ था। परिजनों ने बताया कि वह मुंबई से झांसी तक बस से आया पहुंचा था। यह बात मृतक मोहन मोबाइल के जरिए काल कर परिजनों को बताया भी था। जीआरपी वालों ने शव को परिजनों के सुपुर्द कर दिया। और परिजनों ने झांसी में ही दाह संस्कार कर दिया है।

अब सवाल यह उठता है कि पांच दिन शव ट्रेन के शौंचालय में इतनी गर्मी में पड़ा रहा उसमें से बदबू नहीं आई। और ट्रेन की सुरक्षा व्यवस्था में लगे भारी भरकम सुरक्षा कर्मियों को इसकी भनक तक नहीं लगी। इन तमाम सवालों से रेलवे स्टेशन पर खड़ी होने वाली ट्रेनों की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिया हैं। क्या ट्रेन पहुंचने के बाद उसकी सुरक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे छोड़ दी जाती है। यदि नहीं तो ट्रेन लेकर जाने वाले आरपीएफ के जवान क्या कर रहे थे। इसके बाद ट्रेन झांसी पहुंचने के बाद उसकी सुरक्षा में लगे आरपीएफ जवान स्टेशन के थानों पर रहने वाली जीआरपी कहां चली गई थी। जिनको पता ही नहीं चला और स्टेशन पर ही शव ट्रेन के टॉयलेट में सड़ता रहा। इसकी जांच आवश्यक हो गई है। ऐसे ही रहा तो ट्रेनों में  किसी बड़ी अनहोनी से इंकार नहीं किया जा सकता है।

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