ब्रह्म का स्थूल आकार है शिवलिंग। स्त्री के साथ पुरूष
स्त्री और पुरूष में कोई बराबरी नहीं, सिर्फ एक-दूसरे के पूरक
कुमार सौवीर
लखनऊ : मेधा-शिखर यानी ब्रह्म के सकर्मक स्थूल और साकार के दो हिस्से होते हैं, उनमें एक है स्त्री और दूसरा है पुरूष। इन दोनों टुकड़ों में कोई भी स्थूल समानता नहीं है। कोई बराबरी नहीं। कोई भी सानी नहीं होता है उन एक-दूसरे में। न कोई छोटा, और न कोई बड़ा।
हां, यह दोनों ही टुकड़े एक-दूसरे के पूरक होते हैं।
ठीक इसी व्याख्या का सदियों पहले शिव-अस्तित्व में खोजा और परिभाषित किया जा चुका है।अर्द्ध-नारीश्वर।
और इसी व्याख्या का साकार अवसर है महाशिवरात्रि।
लेकिन अगर किसी ने शिव को पुरूष कह दिया तो समझो अर्थ का अनर्थ कर दिया। पूजा-पाठ अपनी जगह है, लेकिन इस पर्व को बेहतर समझ लीजिएगा कि यह पुरूष-मर्द के शीर्ष-व्यक्ति का नाम नहीं है शिव। बल्कि यह बाकायदा अर्द्ध-नारीश्वर का साकार प्रतीक है। सम्पूर्णता में शिव है।
और यह भी समझ लीजिए कि शिव-लिंग का अर्थ किसी दिव्य देवता के गुप्त अंग का नाम नहीं होता है। समझने के लिए दिल, दिमाग और आंखें खोलिये। जाइये, शब्दकोष-डिक्शनरी खोलिये। लिंग का अर्थ शरीर यानी देह-यष्टि। साफ लिखा है। इसीलिए शिव-लिंग की कल्पना में शिव के साथ गौरी भी हैं। हां, अब अगर आप शिवलिंग का प्रचलित अर्थ देखना चाहें तो किसी भी मंदिर में शिवलिंग को गौरी-योनि अरघे में स्थापित प्रतिमा को देख लीजिए। शांत हो जाएंगे आप। लेकिन सच यही है कि यह सतही सकारात्मकता का प्रतीक है। असली शिवलिंग तो औरत और मर्द के दिव्य-सम्मेलन में है जिसका प्रतीक है शिवलिंग।
यानी शिव का लिंग साक्षात अर्द्धनारीश्वर है जिसमें स्त्री और पुरूष अपनी अनिवार्य-शाश्वत आवश्यकता के साथ बाकायदा मौजूद हैं। यही तो है शिव-लिंग।
अगर आप समझ चुके हैं तो बोलो
हर हर महादेव, हर हर शम्भू