वेदव्यास, जीसस और कर्ण। सभी महान हरामी

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

अन्‍तर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च पर विशेष लेख श्रंखला- चार
भगवान, पराशर और सूरज मियां को कोई अतापता हो तो बताना
द्वार की महानतम शख्सियतें थीं कृष्ण द्वैपायन और दानवीर कर्ण 
मौत से बेहाल जीसस ने पीड़ा भूली, बोला: इन्हें क्षमा करो ईश्वर

कुमार सौवीर

लखनऊ : द्वापर की बात है। कुरू और पाण्डु वंश के दाहिने, बायें, सीधे, पीछे, नीचे, ऊपर वाली डगर के पूर्वज थे ऋषि पराशर। एक मल्लाह की पुत्री मत्‍स्‍यगंधा यानी सत्यवती से उनका प्रेम हुआ और फिर पराशर मियां अर्न्तधान हो गये। ठीक उसी तरह, जैसे दायित्वहीन पुरूष की प्रवृत्ति होती है। नतीजा निकला वेद व्यास। वही वेद व्यास, जिसने कुरू और पाण्डु वंश की नींव रखी और भीष्म की लाज बचा ली। हां, बालू में रहने के चलते वेद व्यास बहुत काले हो गये थे। इससे नाम पड़ गया कृष्ण द्वैपायन व्यास। लेकिन बेहद डरावने काले कृष्ण द्वैपायन को देख कर पाण्डु की पत्नी भयभीत हो कर पीली हो गयी और उसी के चलते—-

खैर, छोडि़ये। यह तो सभी जानते हैं कि वेद व्यास यानी कृष्ण द्वैपायन व्यास ने महाभारत के वंशजों को पैदा होने का मौका दिया, आज की जीवन-शैली की चिंतन-मनन का विभूति ग्रंथ महाभारत लिख डाला। लेकिन पराशर जी कहां हैं, कोई नहीं जानता।

जीसस, यानी ईसा, यानी मसीहा ईसू ईश्वर का पिता माना जाता है। यह वही शख्स है जिसने पूरी ईसाइयत को चंगाई दिलाने के लिए प्राण तक दे दिये। अपनी ही मौत का सामान यानी सलीब लेकर खुद पहाड़ी तक पहुंचा। पूरी दुनिया को प्रेम और शांति का संदेश देता रहा। मरने के चालीस दिन बाद अचानक फिर से जीवित हो गया, ताकि बचे हुए शांति-संदेश सभी इसाइयों तक पहुंचा दे पाये। लेकिन मरने से पहले अपने हत्यारों को क्षमा करने की प्रार्थना भी कर गया ईश्वर से कि इन लोगों को क्षमा करना। क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं। इसके साथ ही अपने प्राण त्या्ग देने वाले इस शख्स ने पूरी इसाई कौम को एकजुट करने का मार्ग दिखा दिया। शांति के इस दूत की मां थीं मरियम। कुंवारी मां थीं मरियम यानी मदर मेरी। लेकिन आज इसपर चर्चा नहीं किया जाएगा कि जीसस के परमपिता कहां हैं।

कुन्ती का नाम एक महान मां के तौर पर मशहूर है। हमारे हिन्दू ग्रंथों कोई सूरज नाम का एक व्यक्ति था शायद। उससे कुन्ती का क्षणिक-प्रेम हो गया। इस प्रेम का नतीजा एक शिशु के तौर पर आया, तो कुन्ती  और उसके शुभेच्छु्ओं ने उस बच्चे को जल-प्रवाहित करने के लिए एक पत्ते पर उसे नदी में बहा दिया। वह तो एक सूत यानी सेवक की नजर नदी में नहाते वक्त इस शिशु पर पड़ी। नि:संतान सूत दम्पत्ति बच्चे को अपने साथ ले आये। लेकिन बात कैसे छिपती। मामला राजभवन का था। पता चल गया कि राजा की पुत्री को बच्‍चा हुआ, लेकिन अब लापता है, जबकि सूत के यहां एक लावारिस बच्‍चा बरामद हुआ है।

तो फिर कहानियां गढनी शुरू हो गयीं। अफवाहों को रोकने के लिए तर्क गढने शुरू हो गये। कथा सुनायी गयी कि कुन्ती् ने अपने कान से इस बच्चे को उत्पन्न किया था, जो भगवान भास्कर यानी सूर्य का प्रसाद था। बच्चे का नाम कर्ण ही पड़ गया। राजमहल का मामला था, इसलिए मामला इस तरह दबा दिया गया। मगर दुनिया-जहान को तो खूब पता ही था।

खैर, महाभारत युद्ध में कर्ण ने अपनी वीरता के झण्डे  गाड़े। अपनी वीरता ही नहीं, अपनी दानशीलता, विनम्रता, आक्रामकता, युद्धकला वगैरह में भी उसकी गजब पकड़ थी। पाण्डव खानदान का होने के बावजूद कर्ण को पाण्डवों के विरोधी खेमे के तारनकार तौर पर पहचाना जाता है। उसने बर्बाद रिश्तों को नये सिरे से व्यवस्थित कर जीत के नये मायने-आयाम स्थापित किये। अपने गुणों को अपनी मौत का सहारा बना डाला कर्ण ने। लेकिन चाहे कुछ भी हो, सूरज का पता इतिहास नहीं खोज पाया। नतीजा, उसे हमेशा-हमेशा के लिए ब्रह्माण्ड के उर्जा-केंद्र के तौर पर स्थापित कर लिया गया।

मैं गिना सकता हूं ऐसे हरामियों का नाम और पेश कर सकता हूं उनकी महान हरामीपन का बखानयुक्त सूची। अपने आसपास टटोल लीजिए। आपको कहीं भी वेदव्यास, जीसस और कर्ण की भरमार मिलेगी। अगली कड़ी में हम कबीर, भरत और मकरध्वज जैसे अनेक-सहस्र-अनन्त हरामी महानुभावों पर चर्चा करेंगे, जो वाकई सभी महा हरामी निकले। एक से बढ़ कर एक। लाजवाब।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *