: एक ऐसा राजा, जिसने राजाओं के किले ढहा डाले : बड़े-बड़े आइएएस अफसर कांप उठते थे, मंत्री-संत्री तक पैर छूते थे : शालीन गुण्डागर्दी के ढेरों आरोप लगे, पर कभी धेले भर का भी भ्रष्टाचार का दाग नहीं लगा : बेहद हैंडसम और मिज़ाज कड़क, गजब भौकाल था शशांक शेखर का :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यह सन-10 का किस्सा है। दिन था अम्बेदकर जयंती का। मायावती मुख्यमंत्री थीं, और दिन सुबह साढ़े सात बजे गोमती नगर स्थित विशालकाय अम्बेदकर पार्क की चमचमाते महंगे पत्थर जड़ी फर्श पर डॉ अम्बेदकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने गयी थीं। पूरा इलाका अफसरों और पुलिसवालों के चुस्त-चौबंद अंदाज में मौजूद था। सायरन बजाती फ्लीट में बीच की कार की पिछली सीट की बायीं ओर मायावती थीं, जबकि उनकी दाहिनी ओर एक दुबला-पतला, स्लिम, जवां बांका सुदर्शन व्यक्तित्व का स्वामी व्यक्ति बैठा था। उस व्यक्ति के साथ ही मायावती ने डॉ अम्बेदकर की प्रतिमा को प्रणाम किया, फूल चढ़ाये और उस स्थल का भ्रमण करने के लिए हाथियों वाले गलियारे की ओर कार पर बैठ गयीं। वह व्यक्ति भी कार पर मायावती के साथ बैठा था। कार धीमी रफ्तार से चल रही थी।
आप सोच रहे हैं कि इस पूरे वृतांत में असल कहानी तो कुछ है ही नहीं। लेकिन आप गलत है। खबर यह है कि जब मायावती उस व्यक्ति के साथ हाथी-गलियारे में कार से गुजर रही थीं, उस कार के पीछे-पीछे यूपी के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक समेत पचासों बड़े आईएएस-आईपीएस अफसर भी दौड़ रहे थे।
जी हां, यहां हम बात कर रहे हैं मायावती सरकार के सर्वेसर्वा रहे कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह की। वो देश के एक मात्र गैर आइएएस अफसर थे जो कि किसी भी प्रदेश सरकार में मुख्य सचिव से भी ऊपर कैबिनेट सचिव की कुर्सी पे पूरे पांच साल तक ठसक से काबिज़ रहे। मूलत: एअर फोर्स के अफसर रहे शशांक शेखर 1989 में उत्तर प्रदेश सरकार में बतौर पाइलेट प्रतिनियुक्ति पर आये और वीर बहादुर सिंह की कृपा से उड्डयन विभाग के सचिव बन गये। फिर देखते ही देखते उनकी एन्ट्री बतौर सचिव उत्तर प्रदेश सचिवालय में हो गई और फिर उन्होंनें कभी पीछ़े मुड़कर नही देखा। सन् 2007 में उनकी किस्मत ने ऐसा उछ़ाल मारा की मायावती सरकार में उनको मुख्य सचिव से भी ऊपर बतौर कैबिनेट सचिव नियुक्त कर दिया गया। पूरे प्रदेश की नौकरशाही उनके अधीन कार्य करने लगी। दबी ज़ुबान में इसका खूब विरोध भी हुआ पर किसी ने भी इसका खुलकर विरोध नही किया।
यह शशांक शेखर की कार्यशैली ही थी कि पूरे पांच साल तक मायावती शासन में कानून-व्यवस्था चाक-चौबंद रही। पुलिस-प्रशासन तो शशांक शेखर के नाम से थर-थर कांपते थे। खौफ एसा की पूरे पांच बरस तक चपरासी से लेकर अफसरों तक की रीढ़ की हड्डी सीधी रही। कहा जाता है कि कई बार तो लोगों ने शशांक शेखर के दफ्तर में कई बड़े अफसरों यहां तक कि मंत्रियों तक को भी उनके पैरों पर गिड़गिड़ाते देखा था। गुंडई व अफसरों से बत्तमीजी के तमाम आरोप शेखर पर लगे पर, कभी भी कोई भ्रष्टाचार का आरोप उन पर नही लगा। पूरे पांच साल स्वर्गीय शशांक शेखर का जलवा-जलाल देखने लायक था।
शशांक शेखर सिंह हाथ-पांव से नहीं, दिमाग से काम करते थे। पंचम तल तक पर शाहंशाही चलाने वाले शशांक शेखर सिंह को सार्वजनिक रूप से कभी भी किसी अफसर या मंत्री को हड़काते नहीं देखा, लेकिन सच यही था कि शशांक शेखर का बुलावा सुनते ही अच्छे-अच्छे अफसर अपनी सीट से उचक कर अपनी पैंट ऊपर चढ़ा कर बेल्ट कसना शुरू कर देते थे। एनेक्सी भवन के पीछे समाधि-स्थल को और विस्तृत करने के लिए वहां के आसपास की जमीन को अधिग्रहीत करने की योजना सरकार ने बनायी थी। जाहिर है कि यह योजना शशांक शेखर सिंह के दिमाग की उपज थी। वहीं पर समाजवादी पार्टी के एक एलएलसी और आज भाजपा में शामिल हो चुके यशवंत सिंह की जमीन थी। लेकिन शशांक शेखर सिंह ने यह काम तब के मुख्य सचिव अतुल गुप्ता और प्रमुख सचिव शैलेष कृष्णा को सौंप दिया। बाद में यशवंत सिंह ने शैलेष कृष्ण से हुई बातचीत का ऑडियो-क्लिप मुलायम सिंह यादव की प्रेसकांफ्रेंस में पत्रकारों को सुनाया था।
अपनी किसी भी प्रेस-कांफ्रेंस में शशांक शेखर सिंह कोई भी विवाद नहीं खड़ा किया। अटपटे मसलों पर भी वे मामला वहां मौजूद किसी भी सम्बन्धित अफसर पर नहीं थोपते थे, जवाब खुद ही देते थे शशांक शेखर सिंह। हर सवाल का जवाब वे मुस्कुराते हुए ही देते थे। यही वजह थी कि पत्रकारों में उनका खासा सम्मान था। शशांक शेखर सिंह ने कई बार प्रेस-कांफ्रेंस में चाय-नाश्ते के दौरान मुझे कमर से लिपटाया। मुस्कुराते हुए वे अक्सर यही बात कहते थे:- सौवीर जी, आपके सवालों से तो मैं दहल जाता हूं।
हालांकि जितने कड़क शशांक सचिवालय में थे निजी ज़िंदगी में उतने ही सभ्य थे। नित्य हर मंगलवार वो लखनऊ के हनुमान सेतु मंदिर अपनी निजी गाड़ी से बिना किसी लाव-लश्कर के जाते थे और लाइन लगकर दर्शन करते थे। अपने करियर के चरम पर भी उन्होंने अपने पुराने मित्रों का साथ बनाये रखा। कहने की ज़रूरत नहीं की उनकी किस्मत से कोई भी रश्क करेगा। जिस व्यक्ति ने कभी आइएएस की परीक्षा भी न पास की हो, वो पूरी जिंदगी एक ताकतवर राजा की तरह जिया और सत्ताविहीन होते ही साल भर के भीतर ही 13 जून 2013 को ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारी से लड़ते हुए दिवंगत भी हो गया। उनकी मृत्यु पर तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विशेष विमान भेजकर उनके पार्थिव शरीर को दिल्ली से लखनऊ बुलवाया और पूरे सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार भी हुआ।
आज अचानक उनकी याद आ गयी। और इसके साथ ही मैं मान गया कि वो राजा की तरह ही पैदा हुआ था और राजा की तरह ही दिवंगत हुआ। शायद ही कभी उत्तर प्रदेश को ऐसा कड़क प्रशासक दुबारा नसीब हो।