वोट दिखा कर रकम उगाहने वाला धंधा तो लखनऊ में खूब हुआ

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: राज्‍यसभा में अहमद पटेल और लखनऊ में महापौर दाऊजी की जीत में गजब साम्‍यता : गुजरात में दो विधायकों ने खुला वोट दिया, लखनऊ में भी दो सभासदों ने : यहां 70-70 हजार में बिके थे सभासद, वहां उगाही करोड़ों की डील पर निपटी :सुब्रत के सामने तो डिमांड तीन लाख तक उचकी : नंगा-वोट एक :

कुमार सौवीर

लखनऊ : राज्‍यसभा में गुजरात से सांसदों के चुनाव को लेकर देश भर में हल्‍ला-हंगामा चल रहा है। कोई इसे भाजपा के तथाकथित कुशल रणनीतिकारों के चेहरे पर करारा तमाचा के तौर पर देख रहा है, तो कोई कांग्रेस की दलाल-संस्‍कृति की पर गालियां देता घूम रहा है। मतदान के दौरान अपने मत को भाजपा के पक्ष में दिये गये वोट का सार्वजनिक घोषणा और प्रदर्शन को लेकर मची थू-थू के साथ ही देश की राजनीतिक हालातों-बदहाली पर भी खूब सियापा और तबर्रा पढ़ाया जा रहा है। लेकिन सच यह है कि लोकतंत्र में भारी-भरकम रकम वसूल कर खुली वोटिंग का ऐलान करने की यह कोई अनोखी घटना नहीं है। गुजरात में आज जो हुआ है, इसके पहले भी ठीक यही हू-ब-हू घटना लखनऊ में भी हो चुकी है।

करीब 28 साल पहले की घटना है यह। घटना स्‍थल है लखनऊ। तब लखनऊ में नगर निगम नहीं, बल्कि नगर महापालिका हुआ करती थी। सन-89 के पहले पिछले लम्‍बे समय से नगर महापालिका सदन के लिए चुनाव ही नहीं थे। इस तब के निर्वाचित नगर महापालिका का सदन 60 सभासदों का था। तब महापौर का चुनाव आम जनता से नहीं, बल्कि यह काम जीते हुए सभासद ही मिल कर निपटाते थे। यानी जब का किस्‍सा मैं आपको सुना रहा हूं, उस समय महापौर के चुनाव की तैयारियां और भागादौड़ी शुरू हो चुकी थी।

चुनाव में कांग्रेस और भाजपा की ही लड़ाई होनी थी। हालांकि इसके पहले सहारा इंडिया वाले सुब्रत राय को महापौर बनने का शौक चर्राया। सभी सभासदों को एक भव्‍य दावत दे डाली सुब्रत ने। महंगे उपहार दिये गये। उसके बाद गुपचुप मिल-मुलाकातों का दौर शुरू हो गया। मोटा आसामी समझ कर सभासदों की भूख भड़क गयी, उन्‍होंने अपनी कीमत का ऑफर देना शुरू कर दिया। तब सभासद रहे व्‍यक्ति ने बताया कि जीते ही सारे सभासदों में लालच भड़क गया। दाम तीन लाख तक पहुंच गया। सुब्रत राय की छींके निकलने लगीं। वह अपनी लंगोट छोड़ कर भाग निकले।

फिर बचे दो लोग। भाजपा की ओर से लालजी टंडन और कांग्रेस की तरफ से डॉ दाऊजी गुप्‍ता। चूंकि टंडन जी पहले भी सभासद रह चुके थे, इसलिए उनकी दावेदारी ज्‍यादा थी। उधर कांग्रेस में धाकड़ और जिला पंचायत अध्‍यक्ष ज्‍योति कौल की करीबी दाऊजी गुप्‍ता से ज्‍यादा थी। लेकिन वोटों की हालत बराबर की ही थी। टक्‍कर वाली। सरकार थी कांग्रेस की, एनडी तिवारी मुख्‍यमंत्री थे। सिंचाई मंत्री थे लोकपति त्रिपाठी। उन्‍होंने कांग्रेस और अपने समर्थक खेमे के सभासदों को सिंचाई विभाग के गेस्‍टहाउस में बुलाया। बंधक शैली में। एक सभासद बताते हैं कि खाने-पीने की धांसू व्‍यवस्‍था की गयी और सभी को 70-70 हजार रूपयों की गड्डियां थमायीं गयीं। नकद। तब सभासद रह चुके और आज वायस ऑफ लखनऊ के जीएम सुशील दुबे बताते हैं कि इस दौरान रकम के आदान-प्रदान की उन्‍हें कोई जानकारी नहीं है। केके दुबे भी तब सभासद थे और आज श्रीन्‍यूज ग्रुप के अध्‍यक्ष हैं। वे बताते हैं कि पैसा तो खूब चला था, लेकिन चूंकि उनके निजी रिश्‍ते डॉ गुप्‍ता से थे, इसलिए उन्‍होंने कोई भी आर्थिक लाभ नहीं लिया।

उधर भाजपा के 29 सभासदों को बंधक शैली में बसों में लाद कर आगरा ले जाया गया, जहां रहने-खाने की व्‍यवस्‍था थी। सुबह-शाम सभी को खिचड़ी और दही खिलाया जाता था। ताकि मेदा दुरूस्‍त रहे। सूत्र बताते हैं कि कांग्रेसी सभासदों की ही तरह उनमें से प्रत्‍येक को भी भारी मोटी रकम थमाई गयी। हालांकि तब साथ रहे सभासद डॉ अजय दत्‍त शर्मा इस बात को खारिज करते हैं कि भाजपा ने अपने सभासदों को नोट दिया था।

गुजरात में राज्‍यसभा निर्वाचन की प्रक्रिया के दौरान वहां मतदान के समय विधायकों ने जिस कमीनगी का प्रदर्शन किया, वह बेहद शर्मनाक तो है, लेकिन अजूबा हर्गिज नहीं। लखनऊ के नगर निगम निर्वाचन के दौरान भी इसी तरह की नंगी हरकतें करके सभासद इसी तरह की अपनी नंगी हरकतों का प्रदर्शन कर चुके हैं। लखनऊ में हुए कांड की खबरें हम आपको श्रंखलाबद्ध तरीके से देने की व्‍यवस्‍था कर रहे हैं। यह पूरी खबर करीब पांच किश्‍तों में आपकी सेवा में पहुंचेगी। आशा है कि आप इस खबर को पसंद भी करेंगे। अगर आपके पास तनिक भी समय हो, तो इस खबर को लाइक करें या शेयर कर लें। अथवा उस पर अपनी प्रतिक्रियाओं से भी अवगत करा दें।

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