लतखोर पत्रकार, यानी पिछाड़ी पे लात बिना-नागा

मेरा कोना

: कभी चीनी मिल में तो कभी गैंसड़ी में उनके विरोधियों ने सरेआम उनका जय-श्रीराम करा दिया : सुबहोशाम, यानी नाश्‍ता से लेकर लंच से लेकर डिनर तक कहीं भी, कभी भी :  अपने सहपाठियों को भी यही हुनर सिखा चुके हैं यह पत्रकार जी :

मेरी बिटिया डॉट कॉम संवाददाता

बलरामपुर : आइये, हम आपको आज रिजार्ज कूपन वाले स्वयंभू पत्रकार के छात्र जीवन से ही शुरु हुए लातखान कला से परिचय कराते हैं। लातखान, यानी लतखोर जी। यह इनकी सबसे बड़ी कला हैं । जिससे भी यह अपना पिछवाड़ा तोड़े, जोड़े बाज नहीं आते हैं। कुछ भी हो जाए, मगर उससें बिना लातखान कला कराके ही दम लेते , बिना उसके इनका मन ही नहीं भरता । फिर अपने सिखाये कला का कुछ दिन तक फेसबुक वाट्सएप पर जमकर बखान करते हैं कि कैसे मैने यहां खाया कैसे मैने अपने आका को इस कला का प्रदर्शन करने के लिए मजबूर किया।

बताते हैं कि यह शौक रिजार्ज कूपन पत्रकार को कालेज के दौरान ही लग गया था। एमएलके पीजी कालेज उनके इस कला का गवाह रहा हैं जिसमें यह लगभग दस सहपाठियों को इस कला को सिखा चुके थे। यही से इनको इस कला की लत लग गई। कालेज लाईफ के बाद कुछ दिन यह इस कला से दूर हुए तो बीमार रहने लगे। इनको लगा कि बिना इसके जीवन अधूरा है। अचानक एक पुराने दोस्त से इनकी बहुत दिन बाद मुलाकात हुई तो उसको रिचार्ज कूपन की परेशानी का कारण पूछा और उसको दया आई तो उसने कुछ इसको पत्रकारिता का मंच मुहैया करा दिया। फिर जनाब की कला चल निकली और अपने इस धंधे मे आने के बाद इनको यह गुमान हो गया कि अब मैं राजा बन गया और बाकी लोकतांत्रिक लोग मेरे गुलाम।

और इसी हनक में जनचर्चा के मुताबिक एक नेता जी पुराने जमींदार से पंगा ले बैठे मनसबदार चालक निकले खुद तो सामने नहीं आये लेकिन उनके गुर्गों ने इनको चीनी मिल के सामने लातिया डाला। बाद में यह बहुत फड़फड़ाये, लेकिन उसी मनसबदार के सामने साष्टांग दंडवत हो गया। लेकिन उसका फायदा यह हुआ कि यह बड़े अखबारों में अपना नाम लिखा ले गए। तब इसको लगा कि लातियाये भले गए लेकिन प्रसिद्धि भी मिली और पत्रकारों के जमात मे खुद शामिल कराने में सफलता मिल गई हैं। तब से यह बड़े अखबारों के प्रभारियों का चरण चुंबन करनें लगा और तमाम जगहों पर इसका धौंस भी गाठनें लगा।

गैसड़ी के प्रमुखी चुनाव मे एक यह नव धनकुबेर के पाले मे चले गए और उनको जिताने का बीड़ा उठा लिया और पहुंच गए। मतदान स्थल पर वहां इनकी हरकत आब्जर्वर वाली थी। जो सत्ताधारी प्रत्याशी के समर्थकों को नागवार गुजरी। ऐसी में लोगों ने इनको जमकर कूट दिया। बाद में यह धरना प्रदर्शन आत्मदाह समेत तमाम हथकंडे अपनाये लेकिन मामला आकर रिचार्ज लेकर ही निपटा।

यह लातखोर नव धनकुबेर के मैनेजमेंट पर बड़े अखबारों के स्थानीय अगुवा इसके साथ रहे। और यह रिचार्ज ले गायब। दो मामले में इसकी कुटाई और सिरेंडर की वजह से सभी बड़े अखबार इसके बवाल करने के असली वजह को समझ चुके थे। इसी वजह से दो अन्य कुटाई मे इसके साथ नहीं खड़े हुए। गल्ला मंडी मे हुई कुटाई और कलेक्ट्रेट मे टेंडर के दौरान विवाद मे इसका साथ देने से बचते रहे।

अब यह फोन पर भी लोगों को इस कला को सिखाने के लिए आमंत्रित करते हैं लेकिन जब देखता हैं कि कलाकार हमसे भी बड़ा हैं और वह इनकी करनें लगता हैं यह तो पिछाड़ी खा लेते हैं। खैर कहावत है कि रेत का महल ज्यादा दिनों तक नहीं टिकता हैं और उसकी शुरुआत पिछले दो मामलों से हो चुका है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *