: हिजड़ा पर खूबसूरत की छौंक अगर ईमानदारी से हो, तो बेमिसाल : गुलाम ने शर्की सल्तनत खड़ी की, तुमने तबाह कर डाला विश्वास : सिर्फ जुल्फी से नहीं चलता है शासन, बड़ी बात होती है ईमानदारी : हिजड़ा गुलाम की बात छोड़ो, तुम क्या कर रहे हो जौनपुर वालों : तब राग-जौनपुर बना, आज के गुलाम जुटे राग-ए-फर्जी बनाने में :
कुमार सौवीर
जौनपुर : एक वह गुलाम हिजड़ा था। नाम था मलिक सरवर, जो एक महान शर्की वंश की स्थापना और उसके लिए अपनी बेमिसाल ईमानदारी और बहादुरी का मिसाल बन गया। और हैं यह इसी जौनपुर के गुलाम वंश के प्रतिनिधि सरकारी नौकर, और उसी जौनपुर के लोग। आज आठ सौ साल बीत चुका है, लेकिन हालात लाजवाब होने के बजाय, अब बदबू मारने लगे हैं। जिस गुलाम मलिक सरवर ने अपने वंश की स्थापना और इसके लिए बेशुमार विकास कार्य किये ताकि जौनपुर की जनता को मुखर बनाया जा सके, लेकिन उसके सैकड़ों साल बाद उसके वंशजों ने उसकी कोशिशों को अधिक मजबूती दिलाने के बजाय उन कोशिशों को जिन्दा फूंक डाला। इस अन्त्येष्टि-समारोह का दमघोंटू धुंआ पूरे जौनपुर ही नहीं, बल्कि पूर्वांचल तक कोहरे की तरह फैला हुआ है, लेकिन न तो जौनपुर की जनता ने करवट लेने की जरूरत समझी है, और न पुलिसवालों और प्रशासन को कोई शर्म।
आपको बता दें कि 17 फरवरी-16 की रात को जौनपुर में सड़क पर मिली एक बेहोश बच्ची की जितनी भी छीछालेदर पुलिस और प्रशासन के आला अफसरों के इशारे पर की गयी, वह बेमिसाल है। महिला अस्पताल की डॉक्टरों ने भी उस मासूम बच्ची को तबाह करने की भी कसर नहीं छोड़ी। न तो उस बच्ची की पुलिस रिपोर्ट दर्ज हुई, न उसकी स्लाइड आदि बनाने की कोशिश की गयी जिससे पता चल सकता कि उसके साथ बलात्कार हुआ या नहीं।
यह जानते हुए भी कि वह बच्ची लावारिस है और अपने पर हुए शारीरिक हादसों के चलते सकते-हादसे में है, पुलिस और प्रशासन ने कितना बेहूदा तर्क दिया कि इस बच्ची की ओर से कोई भी शख्स रिपोर्ट लिखाने ही नहीं आया, ऐसे में कार्रवाई किया जा पाना मुमकिन ही नहीं है। यह तब, जबकि मैंने आईजी, एसपी, सीओ सिटी, सिटी मैजिस्ट्रेट आदि तक से कह दिया था कि अगर केवल रिपोर्ट लिखाने वाला ही नहीं मिल पा होने की दिक्कत हो तो वह रिपोर्ट मैं खुद लिखाने आ जाऊं। लेकिन मेरे इस प्रयास को भी इन अफसरों ने रद्दी मान कर फेंक दिया।
यह तब हुआ जब यूपी की समाजवादी पार्टी वाली अखिलेश सरकार का दावा है कि महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। लेकिन यहां के पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने इस पूरे मामले में अपनी जुल्फी ही झटकते हुए इस पूरे दर्दनाक और वीभत्स काण्ड को दफ्न करने की हरचंद साजिश कर डाली। हैरत की बात है कि जौनपुर के एक बड़ा हिस्सा ने हिजड़ा गुलाम मलिक सरवर के इन वंशजों की करतूतों का विरोध करने के बजाय, गुलाम मलिक सरवर की सिर्फ उस अक्षमता को आत्मसात कर लिया जो उसके हिजड़ा होने को लेकर थी।
जरा इतिहास की परतें तो खोलिये। अद्भुत भारत के लेखक, अंतर्राष्ट्रीय इतिहासकार और एएल बाशम ने दुनिया की लगभग सभी यूनिवर्सिटी में शर्की-डाइनेस्टी पर बेशुमार शोध ग्रंथ लिखे और लिखाये हैं। इसके अलावा टीडी पीजी कालेज के पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर अरूण कुमार सिंह, प्रमुख समाजसेवी और जेसीज क्लाब के शीर्ष कार्यकर्ता मिर्जा दावर बेग, शरदेंदु और सलाहुद्दीन आदि लेखकों ने भी गुलाम मलिक सरवर और शर्की-वंश का गुणगान किया है। ग्रंथों के अनुसार तब उस गुलाम मलिक सरवर ने अपने समर्पण और ईमानदारी से कुरूक्षेत्र, आगरा, निचला नेपाल, कन्नौज, उत्तराखंड, झारखण्ड, ऊपरी उड़ीसा और बिहार तक के पूरे इलाके तक कुछ इस तरह शर्की-वंश को फैलाया, कि जनता उस पर मोहित हो गयी। और आज के एक यह सरकारी गुलाम-वंश की नयी पीढी वाले नौकर-चाकर हैं, जो अपनी बेईमानी, अनैतिकता, कर्तव्यहीनता, अराजकता और उत्पात और संवेदनहीनता का प्रदर्शन करते हुए नग्न-नर्तन कर रहे हैं। मूलत: जौनपुर के रहने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने जौनपुर वालों की इस खामोशी पर कुछ इस तरह कटाक्ष किया:- ऐसा लगने लगा है कि आज के जौनपुर के लोगों पर गुलाम मलिक सरवर की आत्मा का असर अभी तक है।
लेकिन हैरत की बात है जौनपुर के लोग सबकुछ जानते-समझते भी इतनी भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं कि ऐसे गुलामों-नौकरों की करतूतों का जवाब दे सकें।
है न, हैरत की बात ?