: चाहे वक्फ हो, नजूल, या फिर ग्राम समाज के पोखरे-झील, आंखें मूंद लेते हैं कलेक्टर, एसडीएम और तहसीलदार : कागजों में हेरफेर करने में बेमिसाल हैं जिलों के रेवन्यू अफसर : हजारों याचिकाएं दायर हैं हाईकोर्ट में, सुप्रीम कोर्ट भी सख्त है, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : बचपन में हर ग्राम वासी लोगों को चेतावनी देता घूमता था कि पोखरा-झील गंदा करोगे, पेड़ काटोगे तो तुम्हारा बेटा की अकाल मौत हो जाएगी। गांवों में तो पोखरा, झील या तालाब को गंदा करने या उसे पाटने अथवा हरे पेड़ काटने वालों के मददगार लोगों को भी घोर-कुम्भीपाक नर्क या रौरव-नर्क जाने वाला शख्स माना जाता है। ऐसे घृणित और नीच कर्म करने वाले या उसका साथ देने वालों को समाज से बहिष्कृत करने की भी व्यवस्था है। ऐसे लोगों को नीच माना जाता है।
लेकिन आज के दौर में यह ऐसा नराधम-नीच करने वालों की पौ-बारह है। न केवल ऐसा घटिया काम करने वालों को, बल्कि उनका सहयोग करने वालों की भी चांदी रहती है। चाहे वह दबंग हों, अपराधी हों, या फिर उसकी शह देकर अथवा उस ओर से आंख मूंद देने वाले अफसर हों। ऐसे धंधे में शामिल लोग आजकल राजभोग कर रहे हैं। बहती गंगा में पुलिसवालों की भी पांचों उंगलियां और सिर कड़ाही में ही रहता है।
कहने की जरूरत नहीं कि आज गांव और शहर में पोखरों-झीलों का लुप्त हो जाने अथवा उन्हें बेहद सिकोड़ डालने की हालत तक पहुंचा दी गयी है। नतीजा है कि भू-गत जल लगातार जमीन से मीटर-दर-मीटर सरकता ही जा रहा है। पोखरों-झीलों के सूखने-पाटने की हालत के चलते हैंडपम्प बेकार होते जा रहे हैं, कुएं तो न जाने कहां के पट चुके थे। परिणामवरूप शहरों में पीने के पानी की बेहद किल्लत होती जा रही है।
आइये, हम आपको दिखाते हैं कुछ विशाल तालों-झीलों-पोखरों की तस्वीर।
बनारस का लहरतारा :
जन्म के तत्काल बाद कबीर को जिस तालाब की सीढि़यों पर छोड़ दिया गया था, उस तालाब का नाम है। बनारस के इतिहास को जानने वाले लोग बताते हैं कि यह तालाब नहीं, बल्कि किसी समुद्र या विशाल झील ही हुआ करता था। इस झील का रकबा करीब पांच सौ एकड़ हुआ करता था। यहां धार्मिक लोग-साधु ध्यान-स्नान आदि के लिए दिन भर जमे रहते थे। स्वामी रामानन्द एक दिन तड़के जब स्नान करने के लिए इस तालाब की सीढि़यों से उतर रहे थे, कि उनकी नजर कबीर पर पड़ी थी। आज सिगरा, कैंट स्टेशन, रेलवे कालोनी, मड़ुआडीह, सिगरा, महमूरगंज जैसे विशाल इलाके इसी तालाब में बने हैं। वाराणसी नगर निगम मुख्यालय से ठीक सटा हुआ करता था यह तालाब। इस मुख्यालय का भूतल इस तालाब के पानी से डूब जाता है।
लेकिन अब यह तालाब 99 फीसदी तक पट चुका है। नगर निगम के कई मौजूदा और पूर्व सभासदों पर आरोप हैं कि उनकी करतूतों के चलते मौत के घाट उतार दिया गया यह तालाब। दबंग प्रापर्टी डीलर्स और अपराधियों ने भी इसमें खूब अपना हिस्सा बांटा। इसको लेकर अब तक हजारों अर्जियां प्रशासन तक पहुंची, लेकिन प्रशासन और उसके कारिंदे केवल नोट ही गिनते रहे और यह तालाब लगातार पटता ही रहा।
गाजीपुर में आमघाट का पोखरा :
बेहद गहरा और करीब एक हेक्टेयर क्षेत्रफल का है यह वक्फ का पोखरा। पूरे साल यहां पानी भरा रहता था, जिससे जलसंरक्षण होने के साथ-साथ उसके पानी का प्रयोग पशु-पक्षी भी करते थे। लेकिन अचानक कुछ दबंगों की नजर इस पर पड़ी। लेखपाल को सेट किया गया और उसका नवैयत व नाम परिवर्तन करा लिया। आज यह पूरा ताल पट चुका है, और उस पर बाकायदा प्लाटिंग हो रही है।
हैरत की बात है कि पोखरी संख्या 273/2, 273/4 एवं 273/2 अब्दुल्ला ऊर्फ असदुल्ला व महाल जलालुददीन व महाल उम्दा बीबी की आराजी मिल्कियत सरकार के नाम है। लेकिन तहसीलदार और एसडीएम की मिलीभगत से यह अफजालुल्लाह अंकित कर दिया गया, जो सिर्फ मुतवल्ली थे। हैरत की बात है कि इस धोखाधड़ी की खबर तहसीलदार, एसडीएम, एडीएम और कलेक्टर तक को की गयी। लेकिन अब तक कोई भी कार्रवाई नहीं हुई। इससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात रही कि एक तहसीलदार ने अपने फैसले में साफ लिख दिया था कि यह धोखाधडी-कूटरचित है।
लखनऊ के तालाब :
आईएएम के पास एक तालाब पर एक बड़े तालाब पर एक दबंग ने कब्जा कर उस पर प्लाटिंग करना शुरू किया, तो प्रदीप दीक्षित नामक एक स्थानीय किसान ने उसकी शिकायत तब के डीएम राजशेखर से फोन व वाट्सअप पर की। लेकिन यह कब्जा लगातार होता रहा। प्रदीप ने जब कई बार डीएम को फोन किया तो एक दिन एसडीएम का फोन प्रदीप के पास आया। पूछा कि कब्जा करने वाला किस जाति का है। प्रदीप ने जवाब दिया:- यादव।
बस यह सुनते ही उस एसडीएम ने प्रदीप को डांटा और कहा:- इडियट हो क्या। साले, यह यादवों की सरकार है। उसको पता चला कि तुम उसकी शिकायत कर रहे हो तो तुम्हें इसी तालाब में डुबो देगा। आइंदा फोन करना मुझे चूतिये।
इंदिरा नगर के सेक्टर-ई में भी कोई सात एकड़ की झील थी, जिसे अब पाट कर बाकायदा एक कालोनी बना दी गयी है। इस बारे में मैंने जब आरटीआई में जानकारी चाही, तो अधिकारियों ने माना कि यह तालाब अब पट चुका है। किसी बिल्डर ने उस पर कालोनी भी बना ली है। लेकिन इससे ज्यादा कोई भी जानकारी मुझे नहीं दी गयी।
लेकिन इतना जरूर है कि इस झील के पट जाने से आसपास के सारे हैंडपम्प हमेशा-हमेशा के लिए सूख गये।
अब आप बताइये, एसडीएम साहब। क्या इन सब के संरक्षण का जिम्मा आपने आखिरकार चंद रूपयों के लिए क्यों बेच दिया?
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