कलंकित लोकतंत्र: शर्मिला इरोम को 90 वोट, माफिया मुख्‍तार की ताज-पोशी

सैड सांग

: वारी जाऊं जनता, तुम वाकई निहायत बेवफा निकलीं : इस तरह तो जनाजा ही निकल जाएगा लोकतंत्र का : मुख्‍तार अंसारी को क्‍लीन-चिट देने वाली भाजपा ने इरोम की ओर झांका तक नहीं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आम आदमी की सुरक्षा के लिए पूरे 16 साल तक जिस शख्‍स ने आमरण अनशन कर दुनिया में इतिहास रच डाला, उस शख्‍स को उसी क्षेत्र की जनता ने पूरी तरह नकार दिया। अपने राज्‍य को एक नये अंदाज में सजाने का संकल्‍प लेने वाले इस शख्‍स ने अपने आंदोलन के बल पर पूरी दुनिया में अपने नाम का डंका तो बजा लिया, लेकिन जब उसने अपने आंदोलन के लिए जन-आधार खोजने की कोशिश की, तो उसे जनता ने औंधे मुंह रौंद डाला। उधर जिस शख्‍स ने केवल अपराध के बल पर अपनी जिन्‍दगी में माफिया के सारे तमगे अपनी जिन्‍दगी में टांक लिया और उसी कोशिश के परिणामस्‍वरूप बीस बरस तक जेल में अपनी जिन्‍दगी बिता दी, उसे उसकी जनता ने करीब एक लाख से ज्‍यादा वोट देकर सीधे विधानसभा भेजने के लिए ताज-पोशी कर डाली।
जी हां, यहां बात हो रही है मणिपुर की जाबांज शर्मिला चानू इरोम के बारे में। 44 साल की इरोम चानू शर्मिला इंफाल के
कोंगपाल में 14 मार्च 1972 को जन्‍मी थी।  इरोम ने अपनी भूख हड़ताल तब की थी जब 2 नवम्बर-2000 को इंफाल के मालोम में असम राइफल्स के जवानों के हाथों 10 लोगों की मौत का विरोध किया और दो दिन बाद ही आमरण अनशन पर चली गयी। उसकी मांग थी कि 1958 से अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, असम, नगालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा में और 1990 से जम्मू-कश्मीर में लागू आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (एएफएसपीए) को तत्‍काल हटा लिया जाए। उसका कहना था कि उसका यह आंदोलन महात्मा गांधी के नक्शेकदम पर चल है।
आपको बता दें कि पूर्वोत्तर राज्यों के विभिन्न हिस्सों में लागू इस कानून के तहत सुरक्षा बलों को किसी को भी देखते ही गोली मारने या बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार है। शर्मिला इसके खिलाफ इम्फाल के जस्ट पीस फाउंडेशन नामक गैर सरकारी संगठन से जुड़कर भूख हड़ताल करती रहीं। सरकार ने शर्मिला को आत्महत्या के प्रयास में गिरफ्तार कर लिया था। क्योंकि यह गिरफ्तारी एक साल से अधिक नहीं हो सकती अतः हर साल उन्हें रिहा करते ही दोबारा गिरफ्तार कर लिया जाता था। नाक से लगी एक नली के जरिए उन्हें खाना दिया जाता था तथा इस के लिए पोरोपट के सरकारी अस्पताल के एक कमरे को अस्थायी जेल बना दिया गया था।
अनशन के 16 बरस के बाद शर्मिला ने 9 अगस्त-16 को लगभग अनशन तोड़ा तथा राजनीति में आने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि वे मणिपुर की मुख्यमंत्री बनना चाहती हैं। लेकिन शर्मिला की यह डगर शुरू से ही कठिन दिखने लगी। सबसे पहले तो मणिपुरी लोगों ने शर्मिला की मोहब्‍बत को ठोकर मारी, और साफ कहा कि अगर शर्मिला अगर किसी गैर-मणिपुरी से विवाह करेगी, तो उसका अंजाम बहुत बुरा होगा। लेकिन शर्मिला इन धमकियों से नहीं डरी। वह कार के बजाय सायकिल पर अपना चुनाव प्रचार करने निकली। लेकिन शर्मिला के इन प्रयासों को तब जबर्दस्‍त धक्‍का लगा, जब आज मणिपुर विधानसभा चुनाव के आये मतदान के परिणाम में शर्मिला इरोम को सिर्फ 90 वोट ही मिल पाये। शर्मिला ने थाउबल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। इस क्षेत्र में कुल 27271 लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था, जिसमें से कांग्रेस के इकरम इबोबी सिंह ने 18649 वोट हासिल कर जीत हासिल की है। दूसरे नम्‍बर पर रहे भारतीय जनता के पार्टी के लइतेनथेम बसन्‍त सिंह, जिन्‍हें 8179 वोट मिल पाये।
इस चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के लिशनगथेम सुरेश सिंह ने भी अपनी किस्‍मत चमकाने की कोशिश की थी, लेकिन उनका भविष्‍य सिर्फ 144 वोटों तक ही सिमट गया। निर्दलीय ही चुनाव लड़ गयीं शर्मिला इरोम चानू को महज 90 वोट मिल पाये, जबकि एक अन्‍य निर्दलीय अकोईजम मंगलेमजाओ सिंह पर 66 मतदाताओं ने अपनी आस्‍था जाहिर की। हैरत की बात है कि किसी को भी वोट न देने का संकल्‍प ले चुके मतदाताओं की तादात 143 तक पहुंच गयी।
अब जरा नजारा देखिये यूपी के मतदाताओं की मानसिकता का। यहां के मुख्‍तार अंसारी को बहुजन समाज पार्टी ने अपना प्रत्‍याशी बनाया था, और इस चुनाव में मुख्‍तार अंसारी को 96793 मतदाताओं ने विजय-श्री दिला दी। दूसरे नम्‍बर पर रहे महेन्द्र राजभर जो सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रत्‍याशी के तौर पर 88095 वोट हासिल कर दूसरे नम्‍बर पर रहे। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की जुगलबन्‍दी वाले प्रत्‍याशी के तौर पर अल्‍ताफ अन्‍सारी को 72016 मतदाताओं ने तीसरे नम्‍बर पर भेज दिया।
लेकिन कहानी केवल यहीं तक नहीं रही। मुख्‍तार अंसारी के खिलाफ उस भारतीय जनता पार्टी ने अपना प्रत्‍याशी ही नहीं खड़ा किया था,  जो राजनीति में अपने शुचिता, अपराधियों की विरोधी और स्‍वस्‍थ राजनीति का दम भरती है। मगर इसी भाजपा ने मणिपुर में शुचिता, अपराध-विरोध और स्‍वच्‍छ प्रशासन के संकल्‍प के लिए जब शर्मिला इरोम को तनिक भी तवज्‍जो नहीं दी। काश भाजपा इस सीट पर शर्मिला इरोम चानू को समर्थन दे देती, तो शायद इस चुनाव की तस्‍वीर कुछ और होती। भले ही वह चुनाव न जीत पाती, लेकिन कम से कम उस जैसी जबर्दस्‍त जिजीविषा वाली महान आंदोलनकारी महिला की इतनी छीछालेदर तो नहीं होती।
अब सवाल यह है कि ऐसी हालत में ऐसी बेशर्म और तोता-चश्‍म जनता के भरोसे सुधार के लिए कोई कैसे और क्‍यों भिड़ेगा।

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