सब ने मिल कर सरेआम मार डाला एक गबरू शेर, मगर वजह कोई नहीं बताता

सैड सांग

: चूंकि सब के सब साहित्यकार नंगे हैं, इसलिए खामोश हैं शकील के मसले पर : साहित्य  के कागजी शेरों को केवल ठकुर-सुहाती ही पसंद है : ऐसा तो केवल बोको-हरम या तालिबानी जंगजू ही करते हैं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : कितनी हैरत और कितनी शर्म की बात है कि लखनऊ समेत पूरे प्रदेश और देश के वीर-भोग्या वसुंदरा-टाइप महानतम शेरों की मौजूदगी में एक अदने-पिद्दी भर के एक मेमने को जिबह-कत्ल कर दिया गया, बाद में उसका कटा सिर इधर से इधर नुमाइश की तरह घुमाया गया। लेकिन आज तक किसी भी साहित्यकार ने इस मामले पर कोई भी जुबान नहीं खोली कि आखिर इस मकतूल शेर का गुनाह क्या था। इस सवाल पर सब के सब कागजी शेरों की मांद में सन्नाटा फैला हुआ है। कोई भी जुबान तक खोलने को तैयार नहीं।

यह मामला है शकील सिद्दीकी को लेकर। शकील सिद्दीकी को प्रो रूपरेखा वर्मा ने अपने एनजीओ साझी दुनिया में उपाध्‍यक्ष बनाया था। यह शुरूआत की बात है जब प्रो वर्मा ने अपना एनजीओ बनाया था। वर्मा का तर्क था कि चूंकि शकील के जीवन के प्रमुख मकसदों में महिला हक-हुकूक शामिल हैं, इसलिए उनके महिला मसलों पर उनके नजरिये का इस्‍तेमाल करके एनजीओ साझी दुनिया को मजबूत किया जा सकता है। इसलिए उन्‍होंने शकील को इस एनजीओ में दूसरी हैसियत अता फरमायी थी। लेकिन हैरत की बात है कि हाल ही रूपरेखा वर्मा ने अपने एनजीओ से उन्‍हें हमेशा-हमेशा के लिए घर-बदर कर दिया है। फरमान जारी गया है कि अब आइन्‍दा शकील इस एनजीओ के आसपास भी नहीं फटकें। इतना ही नहीं, रूपरेखा वर्मा ने इस मामले में सीधे प्रगतिशील लेखक संघ से बातचीत की और संघ से भी शकील को लतिया कर बाहर कर दिया गया। आम लेखक-साहित्‍यकार शकील के साथ हुए इस हादसे को शर्मनाक, अपमानजनक और निजी खुन्‍नस के तौर ही देख रहा है। इसकी निन्‍दा और भर्त्‍सना की कर रहा है, लेकिन जुबान खोलने की हैसियत कोई भी नहीं जुटा पा रहा है।

आपको बता दें कि शकील सिद्दीकी करीब पचास साल से साहित्य, कविता, आलोचन, अनुवाद और जमीनी मसलों पर किसी जुझारू सेनापति की तरह बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, कवियों और महिला आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर आते-दिखते रहे हैं। साझी दुनिया तो खैर एक एनजीओ है, लेकिन प्रगतिशील लेखक संघ में भी उनका बेशुमार सम्‍मान और ओहदा है। देश-विदेश में भी अदब के मंचों पर शकील अक्‍सर बुलाये और सम्‍मानित किया जाते रहे हैं।

लेकिन आश्‍चर्य की बात है कि कोई भी साहित्‍यकार, कवि, लेखक भी इस मामले पर खामोश है। न तो कोई यह बता रहा है कि शकील सिद्दीकी को साझी दुनिया से क्‍यों बर्खास्‍त किया गया, और न ही यह कोई बता रहा है कि प्रगतिशील लेखक संघ से भी शकील की रूखसती का सबब क्‍या रहा है। यह भी कोई भी नहीं बता रहा है कि साझी दुनिया और प्रगतिशील लेखक संघ के बीच क्‍या रिश्‍ते हैं जिसके चलते साझी दुनिया जैसे एनजीओ के साथ ही साथ प्रगतिशील संघ जैसे साहित्‍य-जगत से भी शकील को निकाला गया। क्‍या वजह है कि प्रलेस पर एनजीओ साझी दुनिया ने किस आधार पर दबाव डाला और किस मजबूरियों के चलते प्रलेस ने शकील को संघ से बर्खास्‍त कर दिया गया।

सवाल तो मूलत: यह है कि शकील पर हुई इस कार्रवाई के मूल कारण क्‍या था। क्‍या शकील ने कोई जघन्‍य अपराध किया था। अगर किया था वह अपराध क्‍या है और उसका खुलासा करने से साझी दुनिया और प्रलेस वगैरह क्‍यों नहीं कर रहे हैं। क्‍यों लगातार इस मामले को दबाया-दफ्न करने की साजिशें की जा रही हैं। हैरत यह भी शकील सिद्दीकी भी खामोश बैठे हैं, वह भी अपने ऊपर हुई कार्रवाई का खुलासा करने में आगे नहीं आ रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ा अपराध और षडयंत्र तो यह बुना जा रहा है कि मामले पर राख डाल दो।

सब के सब खामोश हैं, अपनी जुबान सिले हुए हैं। जाहिर है कि शंकाएं-संदेह लगातार बढ़ती ही जा रहे हैं। फिर यह सवाल उठने लगा है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हम्‍माम में पूरी तरह  नंगे इन सब साहित्‍यकारों और एनजीओकर्मियों को इस मामले का खुलासा करने पर अपने के ही सार्वजनिक तौर पर नंगेपन के प्रचार का भय लग रहा है।

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