एक शाम महान किलकारियों के साथ, सूरज ऐसे ही उगता है

मेरा कोना

: अब तो विलुप्‍तप्राय प्राणियों में शुमार कर लिया जाना कि संजय सिंह और जनार्दन यादव जैसे लोग और उनका खानदान : संजय का पूरा घर किलकारियां मारता है, या पत्‍नी, क्‍या बेटी, और क्‍या घरेलू दिक्‍कतें : मुस्‍की का अंदाज ही बता सकता है कि कौन सी मुस्‍की किस राह से आयी है : जनार्दन  की पत्‍नी, बेटी समेत पूरा खानदान किलकारियां मारता है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : कुछ ऐसे-ऐसे लोग होते हैं कि बिलकुल ऐसे-वैसे ही होते हैं, आैैर जैसे होते हैं, ठीक वैसी ही मुस्‍की मारते हैं। कुछ की मुस्‍की बहुत पॉलिटकल होतीी है, तो कुछ की ब्‍योरोक्रेटिक। कोई सोश्‍योलॉजिकल एप्रोच के साथ होतीी है तो कुछ में साइकॉलॉजी टच। कई में रियलिस्टिक एप्रोच होती है तो कुछ में स्पिरिचुअल डिमाण्‍ड दिखती है। किन्‍हीं में हिस्‍टॉरिकल फीलिंग होती है, तो किन्‍हीं में सेक्‍सोलॉजिकल एप्रोच महसूस होती है। कुछ में पैसिव अंदाज महसूस होता है तो किन्‍हीं में एक्टिव। कुछ एप्रीशियेट करते हैं तो कुछ सीधे-सीधे खारिज करते रहते हैं। कुछ हल्‍की मुस्‍की मार कर काम तमाम कर देते हैं तो कई ऐसे होते हैं जो केवल एक या एकाधिक ठहाके लगा कर आापकी जिन्‍दगी को जिन्‍दादिल बना देते हैं। कुछ खिस्‍स्‍स्‍स से हंस देंगे तो कुछ खिल्‍ल्‍ल से।

लेकिन बहुत कम लोग होते हैं आपके आसपास, जो आप से मुलाकात होते ही किलकारी मार देते हैं। शिशुवत। आपसे मुलाकात होते ही ऐसी किलकारी मारेंगे, मानो आपसे मिल कर आपको पूरी दुनिया-जहान की सारी खुशियां मिल गयीं। ठीक उसी तरह, जैसे किसी दुधमुंहे बच्‍चे को अपनी मां का दूध भरा स्‍तन मिल गया हो और उसके बाद उसका व्‍यवहार मिल जाता है जैसे उसके बाद उसे किसी की भी जरूरत नहीं। “भाड़ में जाए दुनिया, हम बजायें हरमोनिया।”

लेकिन आपको अपनी पूरी जिनदगी में केवल ऐसे दो-चार लोग ही मिल पायेंगे जिन्‍हें देख कर आपको अहसास हो कि उनका और आपका जीवन केवल उन्‍हीं लोगों के लिए ही है। बाकी सब जगद्-मिथ्‍या। वाकई। ऐसे लोगों की शरीरिक स्‍टाइल ठुमकने के अंदाज में होती है। कंधे उचकते दिखेंगे। उनकी चालढाल भले ही आपको बहुत एप्रेशियेट नहीं करे, लेकिन उनकी बातचीत से आपका दिल संतुष्‍ट हो जाएगा।

ऐसे लोग हंसते नहीं, किलकारियां मारते हैं। गजब है। दिव्‍य और आश्‍चर्यजनक।

संजय कुमार सिंह ऐसे ही लोग किलकारियों के थोक विक्रेता की भूमिका में दिखते हैं। सोलसेल डीलर, जिसका मकसद केवल खुद के लिख किलकारियां लगाना और दूसरों को किलकारियां दिखाते-सिखाते अपना और बाकी लोगों की जिन्‍दगी खुशनुमा करते रहना।

मूलत: छपरा के रहने वाले हैं संजय कुमार सिंह। पूरा व्‍यक्तित्‍व और बैठना, बोलना, स्‍वागत करना और हर बात को समझना-समझाना करने का उनका अंदाज किसी सद्य-स्‍तनपायी शिशु की तरह है जो अपनी मां की गोद में स्‍तनपान कर रहा है, लेकिन उसका पेट भर चुका है। वह अब केवल अपनी मां के स्‍तनों के साथ ही खेल रहा है। कभी इस स्‍तन तो कभी उस स्‍तन। अचानक कोई उसके आसपास पहुंच कर उससे संबोधित करते हुए पुकारे:- “अले इधल भी तो देखो।”

ऐसे में वह बच्‍चा उस शख्‍स की ओर अपनी मां के स्‍तनों को छोड़ कर उस पुकारने वाले शख्‍स की ओर झटका से देखना शुरू करेगा। मुस्‍कुराते हुए। लेकिन इसी उपक्रम में उसके मुंह में भरा अपनी मां का दूध की छींटें आपके चेहरे पर बिखर जाएंगे। ऐसे में आप उस बच्‍चे को नहीं चूम सकेंगे। हां, उसके प्रति आपका नजरिया बिलकुल बदल जाएगा।

ठीक ऐसे ही हैं संजय कुमार सिंह। पिछले दिल्‍ली प्रवास में मैं उनके घर धमका। पाया कि पूरा का पूरा खानदान ही मस्‍त है।

पढ़ाई जमशेदपुर में हुई। ख्‍वाहिश थी कि अपना खुद का अखबार शुरू करते, अपना प्रेस लगाते। लेकिन तब तक दिल्‍ली के दैनिक जनसत्‍ता में नौकरी मिल गयी। तब से दिल्‍ली में ही जमे हैं। 2002 में नौकरी गयी, मुआवजा मिला तो उससे नोएडा में एक अपार्टमेंट ले लिया। तय किया कि अब नौकरी नहीं करेंगे। अब अनुवाद का धंधा पकड़ लिया है। सोशल साइट पर हमला-गोलीबारी करते हैं। खबरों के प्रति तीखी नजर और पकड़ तो है ही।

संजय सिंह अलग मस्‍त, उनकी बिटिया गजब मस्‍त, जबकि उनकी पत्‍नी बिलकुल अलहदा लेकिन बेमिसाल खुशी की प्रतीक। मै तो निहाल हो गया। लेकिन तब वह हैरत हुई जब इन किलकारियों में एक नाम और जुड़ गया, वह है बीएसएफ के जनार्दन यादव। न जाने किस चक्‍की का आटा खाते हैं जनार्दन यादव, कि हमेशा किलकारियां ही देते हैं। दिल खोल कर लिखते हैं ओर दिमाग खोल कर अपनी मुस्‍कुराती डगर को मजबूत कर देते है जनार्दन। संजय सिंह की ही तरह जनार्दन यादव का परिवार हमेशा किलकारी लेता रहता है।

मैंने संजय की सपरिवार फोटो खींचने की तैयारी की तब तक जनार्दन यादव कूद कर उस ग्रुप में शामिल हो गये। संजय सिंह, बीच में बिटिया आखिर में भाभी जी। पीछे हनुमान की तरह मुस्‍की मारते बलियाटिक जनार्दन यादव। बस गदा की कसर रही, वरना पूरा रामचरित मानस कम्‍प्‍लीट हो जाता।

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