देवी आराधना का वक्त है। भक्त बनो, नियन्ता नहीं
कुमार सौवीर
लखनऊ : मामला चाहे भारत माता की जयकारा का हो, पहाड़ों वाली दुर्गा-काली का अथवा फिर आपकी खुद की माता की जैजैकारा का, जरूरत तो सबसे पहले ईमानदारी की है। अरे यार, आप जयजय कहने के बजाय उस देवी को अपने कारा से मुक्त तो कीजिए। झूठे संकल्पों, बेहूदे नारे और आक्रामकता को त्याग दीजिए। आप अगर यह कर सकते हैं कि तो फिर समझ लीजिए कि आपके संकल्पों-श्रद्धा और आस्थाओं की जयजयकार हो चुकी।
लेकिन खुद की पीठ ठोंकने के बजाय आप कुछ चन्द कसौटी पर खुद को खरा देने की कोशिश कीजिए। आज से नौ दिनों तक की सारी रातें लाउडस्पीकरों पर लोगों की नींद हराम करने और विन्याचल, कामाख्या अथवा वैष्णो पर्वत की ओर भागमभाग के बजाय बेहतर हो कि आप आपने आसपास उन देवियों को खोजने की कोशिश कीजिए, जिनमें देवियों से श्रेष्ठतम भाव, क्षमता और संकल्प मौजूद हैं।
शैलपुत्री यानी सद्यस्तनपायी, ब्रह्मचारिणी यानी छोटी बच्ची और चंद्रघंटा जो बिलकुल रजस्वला होने वाली है या हो चुकी है। अब आप बताइये कि आपने और आपके समाज ने ऐसी कितनी देवियों को लिंग-परीक्षण के बाद या तो मां की पेट में मार दिया है, या फिर स्कूल में पढ़ने वाली प्यारी बच्चियों के साथ बलात्कार और उसके बाद हत्या की है। आपने नहीं की है, यह तो हम भी जानते हैं। लेकिन ऐसी कितनी बच्चियों के साथ हुए ऐसी जघन्य और नृशंस घटनाओं पर आप ने खुल कर आवाज उठायी है, कितनी बार पुलिस और प्रशासन की करतूतों पर बेपर्दा किया।
कूष्माण्डा को हासिल करने के लिए तुम और तुम्हारे समाज के लोग दहेज मांगते हैं। गर्भस्थ् शिशु कार्तिक स्वामी की स्कंदमाता को लिंग-परीक्षण के लिए जबरिया भेजते हो, और जब उसी स्कन्दमाता के गर्भ में कोई शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा और कूष्माण्डा की आशंका तुम्हें और तुम्हारे समाज को दिखती है तो तुम ही उसका भ्रूण-समाधान यानी एबार्शन की सर्वोच्च प्राथमिकता खुद पर लाद लेते हो। बुरा न मानो, लेकिन हकीकत यह है कि कात्यायनी का तो तुम ही लोगों ने जीना हराम कर रखा है।
और जब वही देवी कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री बन जाती है, तो तुम्हारी हवा सटक जाती है। फिर डर के मारे पूजन-फूजन में जुट जाते हो।
तो दोस्तों। अब मां का ऐसा खोखला जय-जयकारा लगाना बंद कीजिए। या फिर अगर आपको ऐसा लगता है कि ऐसा करना आपके दायित्वों में है, तो फिर उसकी शर्तों को भी लागू कीजिए, मानिये और फिर देखिये कि ऐसी देवियां आपके घर, पड़ोस, समाज, देश और पूरे विश्व को कैसे जागृत कर देती हैं।
उठो, चलो। देवी आराधना का वक्त आ गया है। भक्त बनो, नियन्ता नहीं। नियन्ता तो देवी होती है।
है कि नहीं ?