सवाल यह कि युवतियां कैसे फंस जाती हैं ऐसे बाबाओं के झांसे में

मेरा कोना

: बेटियों पर नहीं, बाबाओं के प्रति अन्‍ध-भक्ति ही है ऐसे हादसों की जड़ : अधिकांश हादसों में सभी पीड़िताओं की सहमति तथ्य के भ्रम या क्षति करने का भय जमा कर हासिल की जाती है : हमारे समाज में अभिभावक बेटियों की सोच को परिपक्व नहीं होने देते : कामुक-संन्‍यासी- दो :

शिवानी कुलश्रेष्‍ठ

लखनऊ : मन में एक प्रश्न उठा रहा है कि आखिर महिलाएं/ लड़कियां बाबा लोगों के चक्कर में क्यों पड़ जाती हैं? जैसा कि कुछ समय से देखने को मिल रहा है कि धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले बाबा लोग बलात्कार के आरोप में जेल में बंद है। अभी दो दिन पहले ही राम रहीम को बलात्कार के आरोप में दोषी ठहराया गया है। इससे पहले आसाराम पर भी कई महिलाओं के यौन शोषण का आरोप लगा। जिस कारण वह अभी जेल में बंद है। रामपाल पर भी इसी तरह का आरोप है। दुर्भाग्य की बात यह है कि यह आरोप किसी साधारण व्यक्ति पर नहीं बल्कि धर्म का प्रचार-प्रसार करने वाले लोगों पर हैं, जो यह कहते हैं कि आत्म संयम रखिए। इंद्रियों पर को वश में रखिए और तमाम सारी सत्य की राह पर चलने की बात करते हैं फिर यह खुद ही इन कामों में लिप्त क्यों पाए जाते हैं?

भारत की सबसे बड़ी संस्था सीबीआई ने राम रहीम पर लगे आरोपों का अन्वेषण किया, तो कहीं से भी यह कहना उचित नहीं कि तथ्यों के साथ छेड़छाड़ हुई होगी। उस पर हमारे भारत की ईमानदार न्यायपालिका ने भी दोषी ठहरा दिया। पूरा मामला संक्षिप्त में यह है कि एक साध्वी के साथ राम रहीम ने यौन शोषण किया। लेकिन मन में रह रह कर यही प्रश्न उठ रहा है कि यह पीड़िता आश्रम तक कैसे पहुचीं? आखिर जरूरत ही क्या है, किसी भी आश्रम में जाने की? मैने सभी खबरों का विश्लेषण किया और यह जाना कि तमाम सारी साध्वियों के परिवार वाले बाबा के भक्त थे तथा उनके द्वारा अंधी भक्ति के कारण अपनी बेटियों को आश्रम में भेजा गया। इन सभी पीड़िताओं की सहमति तथ्य के भ्रम या क्षति कारित करने के भय मे ली गई।

राम रहीम केस में पीड़िता का यह बयान सामने आया कि बाबा ने मुझे रात में सेवक द्वारा बुलाया और मैं बाबा की भक्त थी तो इस कारण चली गई। वहां देखा कि एक अश्लील फिल्म चल रही है और बाबा शराब पी रहे हैं। साथ में उनके पास बंदूक भी रखी थी। महिला का यह बयान सुनकर कई प्रश्न मन में जरूर आते हैं लेकिन जब उस जगह खुद को रख कर देखते हैं तो पाते हैं कि जीवन सबको प्यारा होता है। किसी के पास बंदूक हो तो सहमति इस इस भय में दी जा सकती है। इस तरह के प्रकरण में सबसे ज्यादा दोषी बेटी के परिवार वाले होते हैं। वह अपनी बेटियों को इन आश्रम में पहुंचाते हैं।

हमारे भारतवर्ष में अभिभावक गण बेटियों को सोच और वैचारिक तौर पर उन्‍हें  परिपक्व नही होने देते।  उन्हें निर्णय लेने की आजादी नहीं होती है। वह अपने परिवार के दबाव के चलते काम करती हैं। हम साधारण तौर पर यह सोच सकते हैं कि सब कुछ स्वेच्छा से हो रहा है। वह आश्रम स्वेच्छा से जा रही है लेकिन अपनी अंतरात्मा से पूछ कर देखिए कि  बेटियों को स्वेच्छा से सांस लेने की भी इजाजत नहीं होती है। जब हम उन परिस्थितियों में खुद को पाते हैं तब इस बात का आंकलन अच्छे से कर सकते हैं। जिस परिवार पर बेटी की सुरक्षा का भार होता है यदि वही परिवार बाबाओं के बिस्तर तक पहुंचा रहे हैं तो फिर क्या किया जा सकता है? भले ही बाबा लोगों को बलात्कार के आरोप में सजा हो जाए लेकिन बेटी की अस्मिता को वापस नहीं किया जा सकता है। समाज में उसको पुनर्वासित नहीं किया जा सकता है। यह सब परिवार की अंधभक्ति का परिणाम है।

मठों-आश्रमों में चलने वाली घटिया और घिनौनी करतूतों को प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम अब सिलसिलेवार प्रकाशित करने जा रहा है। शुरूआत तो साक्षी महराज से होगी, क्‍योंकि उन्‍होंने ही सबसे पहले रामरहीम को क्‍लीन चिट देकर सार्वजनिक रूप से ऐसे दुराचारियों को बचाने का मोर्चा सम्‍भाल कर खुद को ऐसे रेपिस्‍ट बाबाओं-संन्‍यासियों को एक सूत्र में पिरोने का अभियान छेड़ दिया है। यह रिपोर्ट श्रंखलाबद्ध होगी, जो प्रतिदिन प्रकाशित की जा रही है। इसकी अन्‍य कडि़यों को पढ़ने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

कामुक-संन्‍यासी

(फिरोजाबाद से आकर लखनऊ बसीं शिवानी कुलश्रेष्‍ठ मूलत: वकील हैं। विभिन्‍न विषयों पर रेखांकन करना उनकी मूल प्रवृत्ति है, जहां वे ऐसे मसलों पर कानूनी नजरिये से गढ़ती हैं।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *