बेशर्म सरकार ने 7, डीएम ने 30, जबकि मेडिकल कालेज प्रशासन ने 29 लाशें गिनीं

सैड सांग

: स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने कहा कि आज भी मौजूद हैं ऑक्‍सीजन के सिलेंडर : दर्जनों मासूमों की हत्‍यारा कौन है। सरकार या डॉक्‍टर : जिला प्रशासन ने माना कि 30 मौतों का जिक्र किया, लेकिन वजह लापरवाही पर नहीं थोपा : मेडिकल कालेज की बुलेटिन में मौतों के आंकड़े बुरी तरह उचके दिख रहे :

कुमार सौवीर

लखनऊ : जनता के नाम पर कलंक बने और कीड़ों-मकोड़ों की तरह दम तोड़ने वाले जनता के दर्जनों बच्‍चों की मौत को जनता की सरकार ने पूरी तरह खारिज कर दिया है। सरकार का कहना है कि गोरखपुर मेडिकल कालेज में 11 अगस्‍त को कुल 7 बच्‍चे मरे हैं, लेकिन  यह सब के सब अपनी ही मौत मरे हैं। उनकी मौत में सरकार या गोरखपुर के मेडिकल कालेज के डॉक्‍टरों का कोई भी हाथ नहीं है। उधर जिलाधिकारी ने उस दिन 29 बच्‍चों की मौत कुबूली है, लेकिन डीएम ने भी साफ कह दिया है कि कोई भी मौत लापरवाही के चलते नहीं हुई है। गजब यह है कि इसी मामले में ठीक उसी वारदार के दिन मेडिकल कालेज ने अपने यहां कुल 29 बच्‍चों की मौत की बात कुबूल रखी है। लेकिन इसके बावजूद लखनऊ से लेकर गोरखपुर के बीच लाशों की गिनती का क्रूर मजाक चलता ही रहा। वैसे इस सामूहिक हत्‍याकांड को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां बढने लगी हैं।

उधर मेडिकल कालेज प्रशासन इस मामले में लगातार झूठ और बेशर्मी पर आमादा दिख रहा है। कालेज प्रशासन ने एक बयान में कहा है कि मेडिकल कालेज में 11 जुलाई को जितनी संख्‍या में लोगों की मौत हुई है, वह मौतें अक्‍सर यहां मेडिकल कालेज में रोजाना होती रहती हैं। बेशर्मी की बात है कि कालेज की बुलेटिन में उस दौरान पांच दिनों में वहां मरे लोगों की मौत की संख्‍या अपने आप में निहायत भयावह ही है। सबसे बड़ी शर्मनाक तो इस बात पर है कि कालेज में 29 लाशें को जिलाधिकारी ने 30 बना दिया था, और लखनऊ तक यह आंकड़े किन आधार पर कुल सात लाशों में तब्‍दील हो गये, हुत शर्मनाक ही कहा जाएगा।

एक अन्‍य घटनाक्रम में पता चला है कि जिलाधिकारी ने कालेज में हुई मौतों की जांच के लिए एडीएम स्‍तर के एक अधिकारी समेत चार अफसरों की एक जांचटीम बनायी है। लेकिन जानकार बताते हैं कि यह कदम अपने आप में बेहद शर्मनाक और मूर्खतापूर्ण है। सवाल है कि जब सरकार और प्रशासन ने पहले ही निर्णय सुना दिया था कि ऑक्सीजन की कमी से किसी भी मरीज की मौत नहीं हुई है, ऐसी हालत में जांच कमेटी गठित करने का औचित्य क्या था। हैरत तो इस बात की भी है कि जब प्रथमदृष्‍टया प्रमाणित हो चुका है कि ऑक्‍सीजन खत्‍म हो चुकी थी, और उसका कारण लम्‍बे समय से भुगतान न किया जाना ही है, फिर उस मामले को जांच की बिन्‍दु में शामिल क्‍यों नहीं किया जा रहा है।

इस मामले को लेकर यूपी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री आशुतोष टंडन ने अपने बयान में कहा कि सभी मौतें पहले की हैं, आज सिर्फ 7 मौतें हुई हैं. हॉस्पिटल में आज भी 100 सिलिंडर मौजूद हैं. ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई. आज जो भी मौत हुई हैं उनकी न्यायिक जांच के आदेश दे दिए गए हैं. सरकार ने डीजीईएम को जांच के लिए भेज दिया गया है.

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जय बाबा गोरखनाथ

गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत के मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वास्थ्य मंत्री आशुतोष टंडन और पूरे विभाग को बुलाया था। बीआरडी मेडिकल कालेज में आक्सीजन की कमी से बच्चों व अन्य मरीजों की बडी संख्या में मौत के मामले में जिला प्रशासन ने एडीएम सिटी के नेतृत्व में चार अफसरों की कमेटी गठित की है। यह कमेटी जांच करेगी कि क्या बच्चों की मौत असामान्य है और लिक्विड आक्सीजन की सप्लाई करने वाली कम्पनी को भुगतान में विलम्ब क्यों हुआ ?एक तरफ डीएम राजीव रौतेला ने मीडिया से बात करते हुए इस कमेटी के गठन का ऐलान किया तो दूसरी तरफ जोर देकर यह भी कहा कि आक्सीजन की कमी से किसी भी मरीज की मौत नहीं हुई। स्वास्थ्य मंत्री ने भी यही बात कही है और राज्य सरकार के प्रवक्ता ने भी यही बात कही है।

गोरखपुर के डीएम राजीव रौतेला ने 11 अगस्त की रात आठ बजे प्रेस ब्रीफींग में नौ अगस्त को 12 बजे रात से 11 अगस्त की रात सात बजे तक 30 बच्चों की मौत को स्वीकार किया। इसमें 17 नवजात शिशुओं, आठ जनरल पीडिया के मरीजों और पांच इंफेलाइटिस से ग्रस्त मरीजों की मौत की बात स्वीकार की। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आक्सीजन की कमी से एक भी मरीज की मौत नहीं हुई।

उन्होंने यह भी कहा कि बीआरडी मेडिकल कालेज बड़ा अस्पताल है और यहां बड़ी संख्या में बच्चे भर्ती होते हैं। एईएस यानि कि एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से औसतन दस तथा नवजात शिशुओं की भी इतनी ही संख्या में मौत हो जाती है।

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मौत-गिद्ध

लेकिन बीआरडी मेडिकल कालेज के इस वर्ष के आंकड़े डीएम के दावे को झूठलाते हैं। इंसेफेलाइटिस से इस वर्ष 24 घंटे में अधिकतम मौत 5 है। इसी तरह नियोनेटल वार्ड में औसतन एक दिन की मौत पांच ही है। इस तरह से एक दिन में अधिकतम 10 से 15 के बीच ही मौतें हैं यदि अन्य बीमारियों से बच्चों की मौत का आंकड़ा भी जोड़ दिया जाए लेकिन यहां तो बकौल डीएम नौ तारीख की रात 12 बजे से 11 अगस्त की शाम सात बजे तक यानि 43 घंटों में 30 बच्चों की मौत हो गई। यही नहीं 18 वयस्को की भी मौत हो गई जिसका जिक्र ही नहीं किया गया। वार्ड संख्या 14 जो कि मेडिसीन विभाग के अन्तर्गत आता है, उसमें 10 अगस्त को 8 और 11 अगस्त को 10 लोगों की मौत हो गई। जिन लोगों की मौत हुई उनमें गोरखपुर के उमाशंकर, महराजगंज के रामकरन, गोरखपुर के रामनरेश, कुशीनगर के हीरालाल, देवरिया के अजय कमार, देवरिया की संकेशा, पूरन यादव, घनश्याम, इन्दू सिंह, विजय बहादुर आदि हैं।

खुद स्वास्थ्य विभाग ने जो आंकड़ा तैयार किया उसके अनुसार 10 और 11 अगस्त को एनआईसीयू यानि नियोनेटल इंटेसिव केयूर यूनिट में क्रमशः 14 और 3, इंसेफेलाइटिस से 3 और 2 तथा नान एईएस से 6 और 2 बच्चों की मौत हो गई। यानि 10 अगस्त को 23 और 11 अगस्त को 7 बच्चों की मौत हो गई। यहां हैरानी की बात यह है कि मीडिया ने जब मेडिकल कालेज प्रशासन ने 10 अगस्त को एईएस यानि कि इंसेफेलाइटिस से मौतों की जानकारी मांगी थी तो एक भी मौत न होने की बात कही गई थी। अब 10 अगस्त को इंसेफेलाइटिस से 3 मौतों की जानकारी दी जा रही है। यह आंकड़े ही तस्दीक करते हैं कि प्रशासन ने पिछले 24 घंटे में अत्यधिक मौतों को छुपाने के लिए उन्हें 48 घंटे में बांट दिया और सर्वाधिक मौतें 10 अगस्त में दर्ज कर लीं जब लिक्विड इंसेफेलाइटिस की आपूर्ति हो रही थी।सचाई यह है कि 10 अगस्त की रात से 11 अगस्त की शाम तक ही सर्वाधिक मौतें हुई जब लिक्विड आक्सीजन की सप्लाई ठप हो गई थी।

वैसे इस सामूहिक हत्‍याकांड को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां बढने लगी हैं। गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से हुई 30 बच्चों की मौत पर अब राजनीति शुरू हो गई है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के कहने पर चार कांग्रेसी नेता गोरखपुर का दौरा करेंगे. गुलाम नबी आजाद, राज बब्बर, संजय सिंह और प्रमोद तिवारी गोरखपुर जाएंगे. इसके अलावा स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह और चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन भी गोरखपुर जाएंगे. थोड़ी देर में होंगे रवाना.

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