राजनीतिक हादसों में अखबारों की पौ-बारह, विज्ञापनों के तोहफों की बारिश

सैड सांग

: क्‍या मथुरा और क्‍या कैराना, कोई भी हादसा हो तो विज्ञापनों के रेला दबा देता है खबरें : अखबार संपादकों को घर-बैठे मिल रही है रोजी-रोटी, मालिक भी गदगद : अब तो चुनाव तक लगातार चाटते और चटवाते रहेंगे अखबार और सरकार :

कुमार सौवीर

लखनऊ : पिछले कोई पचीस बरसों से यूपी में किसी भी राजनीतिक की सरकार ने प्रशासन नहीं किया। केवल जोड़तोड़ हुई, सपने पूरे किये गये, खुद और अपनों की जेब भरी गयीं और सात पुश्‍तों तक का आलीशान भविष्‍य सुरक्षित कर दिया गया। नेताओं के ऐसे सपनों और उनकी जमीनी हरकतों से आम आदमी त्रस्‍त होता रहा। लेकिन आम आदमी की दिक्‍कतों पर सरकार ने कोई भी कदम नहीं उठाया। हां, अपने चेहरे पर मेकअप न बिगड़े, इसलिए हर उस दरार-खाई को दबाने की कोशिश की, जो सार्वजनिक होता रहा। चाहे वह शाहजहांपुर में सरकार के मंत्री वर्मा का मामला है, जिसमें एक पत्रकार जागेंद्र सिंह ने मंत्री और वहां के कोतवाल पर कत्‍ल की साजिश का बयान दिया और मौत को गले लगा दिया। इस मामले में मंत्री और कोतवाल पर आरोप है कि जागेंद्र की हत्‍या में वे शामिल हैं। लेकिन सरकार खामोश रही। जागेंद्र के परिजनों को भारी मुआवजा और विज्ञापन की बारिश करके अखबारों की जुबान बंद कर दी गयी। और मंत्री को साफ बचा लिया। एखलाक के मामले में भी यही हुआ। बिना हकीकत जाने हुए ही सरकार ने एखलाक के परिजनों को 45 लाख रूपयों का तोहफा दे दिया।

मथुरा में जो हादसा हुआ उसके मूल षडयंत्रकारी के बारे में पूरे देश-प्रदेश को पता है, लेकिन सरकार ने कोई भी कार्रवाई नहीं की। दो पुलिस वालो की मौत का खामियाजा वसूलने के लिए पुलिस ने 31 आम आदमियों को मौत के घाट उतार दिया। इस पर जब हंगामा हुआ तो सरकार ने अखबारों की जुबान बंद कर दी। कैराना के मामले में भी यही हुआ।

अब आप देखिये सरकार का रवैया।

कोई भी हादसा होगा और उसमें सरकार की पूंछ दबी दिखेगी, तो सरकार का खजाना अखबारों के एकाउंट में जाने लगेगा। आप पिछले कई महीनों के अखबार उठा लीजिए, आपको यही अंदाज दिखायी पड़ेगा। हादसा होते ही अखबारों को आठ-दस पेज के विज्ञापन दे दिये जाएंगे। ऐसे में जब अखबारों पर विज्ञापन ही विज्ञापन दिखेंगे तो खबरें कहां जाएंगी। खबरें तब किसी बचे कोने-कुतरे में छिप जाएंगी। सरकार का काम हो जाएगा। हादसों की खबर रोकने में सरकार सफल जा जाएगी।

तुर्रा यह कि भारी-भरकम विज्ञापन पाकर संपादक और मालिक भी मस्‍त हो जाएंगे। वे उपकृत हो जाएंगे। इस दौरान सारे अखबारों में अखबारों का चरित्र ही बदल गया है। वे यो तो खबर ही नहीं छापते हैं, और अगर छापते हैं तो उसे उलट-पुलट कर ताकि खबर भी छप जाए, और सरकार भी खुश हो जाए। यूपी के अखबारों में यही गोरखधंधा चल रहा है।

इसमें राष्‍ट्रीय पत्रिकाएं भी पीछे नहीं हैं। अभी खबर आयी है कि आजतक न्‍यूज चैनल की पत्रिका इंडिया टुडे को सरकार ने करीब आधा दर्जन पेज का विशाल विज्ञापन पैकेज लूट लिया है। इस विज्ञापन का शीर्षक है राइजिंग उत्‍तर प्रदेश। विश्‍वस्‍त सूत्र बताते हैं कि यह पैकेज इस समय प्रेस में है और अगले अंक में प्रकाशित किया जाएगा। इसे खबर के तौर पर पेश किया जा रहा है। लेकिन समस्‍या यह है कि इसे पढ़ेगा कौन। सरकारी विज्ञापन की शैली से पाठक पहले से ही आजिज आ चुका है।

लेकिन कम से कम इतना तो होगा ही यूपी में राजनीतिक संकट से सरकार उबर जाएगी और जो खबरें यूपी की जमीनी हकीकत के तौर पर दिख सकती है, उसे विज्ञापन के कुत्‍ते नोंच-कत्‍ल कर देंगे।

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