सेनेटरी-पेपर नहीं होता है रिश्‍ता, कि पोंछा और फेंक दिया

दोलत्ती

: रिश्‍ता एक सांस है, एक जीवन है, एक खुशनुमा अहसास है : रिश्‍तों को जेब में रूमाल की तरह ठूंस लेना बेकार :
कुमार सौवीर
लखनऊ : रिश्‍ता कोई प्रदर्शनीय वस्‍तु नहीं है जिसे देख लिया जाए, छू लिया जाए और उसके दाम को लेकर मोलभाव किया जा सके, और फिर काम खत्‍म। रिश्‍तों को रगड़ना और सहलाना ही पर्याप्‍त नहीं होता हो। रिश्‍ता कोई सेनेटरी-पेपर भी नहीं होता, जिसका इस्‍तेमाल किया और फिर उसे फेंक दिया।
बल्कि रिश्‍ता तो एक भाव है, जिसकी अनुभूति करनी होती है। रिश्‍ता एक सांस है, एक जीवन है, एक खुशनुमा अहसास है।
आप उसे महसूस कीजिए, सूंघिये, पहचानिये, पालिये और गर्व कीजिए कि आप के साथ जो भी रिश्‍ते बने या जुड़े हैं, वे आपकी हैसियत के साथ पूरी ताकत-शिद्दत के साथ न केवल मौजूद हैं बल्कि लगातार मजबूत ही होते जा रहे हैं।
सिर्फ औपचारिकताओं के लिए रिश्‍तों को जेब में रूमाल की तरह ठूंस लेना बेकार होता है। उससे बेहतर हो, कि आप ऐसे रिश्‍तों को कूड़ेदान में फेंक दें। कम से कम तब टेंशन तो दूर हो जाएगा।

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