: राजेंद्र चौधरी व अभिषेक मिश्र जैसे थके लोग हवा भर रहे हैं अखिलेश के झण्डे में : युवा जोश मुंह के बल धड़ाम होकर चुओ चोप में तब्दील : यह दो पीढि़यों का स्वाभाविक द्वंद्व है, जो राजनीति के ओछे जमूरों ने बाप-बेटे के बीच जानी-दुश्मनी में तब्दील करा दिया :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आज जो झण्डा अखिलेश थामे घूम रहे हैं, उसमें हवा उन्हीं लोगों ने लबालब भर दिया है, जिन पर बेहद यकीन करके मुलायम सिंह यादव ने उनको अखिलेश की सिपहसालारी थमायी थी। लेकिन हैरत की बात है कि यह यही लोग अब न केवल समाजवादी पार्टी की खटिया खड़ी करने पर आमादा हैं, बल्कि मुलायम सिंह यादव को सीधे चुनौती खुद उनके बेटे अखिलेश यादव से दिला रहे हैं। जानकार बताते हैं कि अखिलेश यादव को यही लोग इतिहास के वाहियात किस्से सुना कर युवा जोश भड़का रहे हैं, जिसमें इंदिरा गांधी को दुर्गा की अवतारी छवि दिखायी जाती है। दिलचस्प बात तो यह है कि अखिलेश के यही सिपहसालार की छवि हमेशा से ही बेहद थके, चुके और मौका-परस्तों के तौर पर ही रही है।
दरअसल, यह विवाद दो युगों-पीढि़यों के बीच फासलों का स्वाभाविक अंतर है, जो सोच और क्रियाविधि में साफ दिखायी देता है। सूत्र बताते हैं कि अखिलेश को लगता है कि समाजवादी पार्टी की छवि अब अपराध-अपराधियों से अलग होनी चाहिए, जो अब तक किसी पुश्ता स्थाई टैटू गोदना-चिन्ह के तौर पर समाजवादी पार्टी के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग पर गुदा हुआ है। अखिलेश का मानना है कि कम से कम अगले 40 साल तक की राजनीति में वे खुद को बेहद प्रभावी राजनीतिज्ञ के तौर पर देश में आगे दिखाने की क्षमता रखते हैं। इसीलिए उनका मानना है कि उनकी छवि एक प्रभावी विकास-पुरूष के तौर पर भी हो और साथ ही साथ ऐसा चेहरा बना सकें अखिलेश यादव, जिसमें अपराध और अपराधियों की तनिक भी गंदी छवि न हो।
उधर सपा के पुराने कर्णधारों को आज और अभी सत्ता चाहिए। शिवपाल सिंह यादव ऐण्ड कम्पनी के करीबी लोग इसी जुगत में हैं कि कैसे भी हो, सत्ता उनकी झोली में ही आनी चाहिए। भले ही इसके लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकानी पड़े। मुख्तार अंसारी की कौमी एकता दल और अमनमणि को चुनाव का टिकट देने का ऐलान इसी कवायद का परिणाम है। शिवपाल सिंह यादव जैसे लोगों को लगता है कि अगर अब नहीं तो कभी भी नहीं। वजह यह कि यह शिवपाल सिंह यादव ऐण्ड कम्पनी के निदेशक टाइप लोग 60 प्लस की उम्र में कांख-छटपटा रहे हैं।
सपा के साढे चार साल का वक्त तो कानून-व्यवस्था की छीछालेदर के चलते वोटों में तो निराश भाव है, इसलिए कैसे भी हो, वोटों को इस तरह जुटाया जाए, ताकि अगली सरकार सपा की ही हो। अमर सिंह, दीपक सिंहल और गायत्री प्रजापति जैसे लोगों को एकजुट करने की कोशिश इसी कवायद के इरादे से है। यह तिनके-डूबे लोगों की सांसों में 60 प्लस की हडबड़ाहट और दमा-प्रकोप जैसा लग रहा है। वे चाहते है कि सत्ता की दूसरी पारी मिल जाए, कैसे भी हो। चाहे मुख्तार हो, अमनमणि हो, या फिर कोई, बस सरकार एक बार और बन जाए। न जाने कब इस कम्पनी की सांसे थम जाएं। इसके लिए यह शिवपाल सिंह ऐण्ड कम्पनी कुछ भी समझौता करने को तैयार है। जबकि अखिलेश को लगता है कि अगर समझौता किया गया तो अब तक किया-धरा बेकार हो जाएगा। बर्बाद हो जाएगा। लेकिन सूत्र बताते हैं कि अखिलेश यादव भी गहरे भ्रम में हैं।
वजह यह कि इन सब को पता है कि दोनों ही डूब रहे हैं। अब तो केवल यही हो सकता है कि यह लोग अपनी हार का ठीकरा दूसरों के माथे पर फोड़ें, जबकि जीत अपने सिर सेहरे के तौर पर बांधे।
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