मुगल-ए-आजम यानी सपा का फ्लॉप-शो जारी, जिन्‍दाबाद-मुर्दाबाद

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: मुलायमी-कुनबे में कैकई भी है, मंथरा भी, उधर निराधार भांड़ों की भी भारी-भरकम फौज : सब ने उड़न-हवा भर कर आसमान में बेसहारा उड़ा दिया अखिलेश यादव के सपनों का गुब्‍बारा : अखिलेश यादव की बिग्रेड में भरमार है दगे और रद्दी कारतूसों की : बाप ने तो बेटे को सारी जागीर सौंप दी थी, अखिलेश को मुलायम का सम्‍मान करना चाहिए :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आपने मुगल-ए-आजम फिल्‍म देखी है। अगर हां, तो भी आप मुलायम सिंह यादव के विशालतम कुनबे को तिनका-तिनका बिखरने और उसके स्‍थाई पराभव की चरण-बद्ध प्रक्रिया-प्रक्रम को ठीक तरीके से नहीं समझ पायेंगे। इसके लिए आप को मुगल-ए-आजम के साथ ही त्रेता-युग और द्वापर-युग की घटनाओं को भी देखना-समझना पड़ेगा। हां, मुगल-ए-आजम से आपको केवल इशारा ही मिलेगा, सिवाय इसके, कि यहां नाचने वाली रक्‍कासा की भूमिका में सत्‍ता आ चुकी है और सलीम की भूमिका अखिलेश यादव निभा रहे हैं। मुलायम सिंह यादव अब इस फिल्‍म में परदादा की भूमिका में हैं, जो सलीम खानदान के कम, द्वापर के धृतराष्‍ट्र जैसे ज्‍यादा लगते हैं, किसी झण्‍डू-बॉम की तरह, जिसे बार-बार मलना ही पड़ता है।

अकबर की भूमिका सीधे शिवपाल सिंह यादव ने थाम रखी है, जो त्रेता-द्वापर युग के शकुनि के तौर पर अमर सिंह, जरासंध की तरह कौमी एकता दल के मुख्‍तार अंसारी और शिशुपाल-दुर्योधन की तरह दीपक सिंघल की तरह हवा भर रहे हैं।  विद्रूप-करेक्‍टर्स की तरह कैकई-मन्‍थरा की भूमिका में साधना और अम्‍बी बिष्‍ट शामिल हो चुकी हैं। राजपूताना से अरविंद कुमार सिंह बिष्‍ट ने भी अपनी सींग घुसेड़ रखी है और सलीम के दोस्‍तों की भूमिका में राजेंद्र चौधरी और आरएसआर यादव और अभिषेक मिश्र जैसे धूल-झाड़ फुंकनी-टाइप निराधार लोग बमचिक मचा रहे हैं, जिन्‍हें अपनी हवा के लिए दूसरों तक के एयर-पम्‍प पर निर्भर रहना पड़ता है। बाकी करेक्‍टर्स में प्रतीक यादव भी हैं जो हमेशा मनोज-चौक के पास वाले अपने जिम्‍नेजियम और मुलायम सिंह यादव की सम्‍पत्तियों को तरीके से बटोरने-सहेटने तक ही सीमित है।

लेकिन सपा में चल रही प्राणघातक आंधी के बावजूद उसकी पत्‍नी अपर्णा की पचासों होर्डिंग्‍स सपा मुख्‍यालय के आसपास ही टंगे-टंके है। शिवपाल का बेटा कभी अपने पिता के साथ ही बगावती रूख अपनाये रखता है, लेकिन कभी अखिलेश को अगला मुख्‍यमंत्री साबित करने के दावे में जुटा है। बावजूद इसके, अखिलेश यादव की आंख में अब शिवपाल और उनका बेटा आदित्‍य यादव किसी तीखे कंकड़-किरकिरी के तौर पर शामिल हो चुका है। वैसे आदित्‍य कभी अपने पिता के साथ गलबहियां करते हुए अखिलेश यादव के खिलाफ खड़ा दिखता है तो कभी ऐलान करते दिखता है कि अगला मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव  ही होंगे। गनीमत है कि आदित्‍य की पत्‍नी राजलक्ष्‍मी फिलहाल खामोश है।

उधर अखिलेश यादव उस गुब्‍बारे की तरह है, जिसे उड़न-गैस भर कर पूरे जोश के साथ हवा में उड़ाने की साजिश की गयी है। इनमें लोगों की लिस्‍ट में उन लोगों का नाम है, जो पार्टी और मंत्रिमंडल में केवल इस शर्त पर शामिल हुए कि उनके पिता मुलायम के मुंहलगे आईएएस अफसर रह चुके हैं। कुछ लोग मुलायम की जूतियों पर पॉलिश किया करते थे, जबकि कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो सहकारी सेवा से आये और अब पार्टी के सहकार-भाव की हत्‍या में जुट गये हैं। एक ही थाली के बैंगन की तरह इधर-उधर लुढकने के अभ्‍यस्‍त इन लोगों ने अखिलेश को अब ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है, जहां से वापस हो पाना अब मुमकिन नहीं लगता है।

यानी रणभेरी बज चुकी है, युद्ध अवश्‍यम्‍भावी है। (क्रमश:)

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